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बकाया बिल के बदले एनबीएफसी से कर्ज ले सकेंगे एमएसएमई, स्थायी समिति ने सरकार के प्रस्ताव पर लगाई मुहर

अभी सिर्फ सात एनबीएफसी फैक्टरिंग नियम के तहत एमएसएमई को उनकी बिक्री के बकाया बिल के आधार पर कर्ज दे सकती हैं। हालांकि सभी एनबीएफसी को इस दायरे में लाने पर जालसाजी की भी आशंकाएं जताई जा रही हैं।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Tue, 16 Mar 2021 07:39 PM (IST)Updated: Wed, 17 Mar 2021 07:40 AM (IST)
बकाया बिल के बदले एनबीएफसी से कर्ज ले सकेंगे एमएसएमई, स्थायी समिति ने सरकार के प्रस्ताव पर लगाई मुहर
M S M E PC : Pixabay

नई दिल्ली, राजीव कुमार। एमएसएमई अपने खरीदार के पास बकाया के बिल के आधार पर गैर-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों (एनबीएफसी) से कर्ज ले सकेंगे। इसका मतलब यह है कि अगर कोई एमएसएमई कंपनी किसी ग्राहक को अपना सामान उधार में बेचती है, तो उस उधार के बिल के आधार पर वह एनबीएफसी से कर्ज ले सकेगी। उसके बाद खरीदार से वसूली की जिम्मेदारी एनबीएफसी की होगी। वह एमएसएमई को दिए गए कर्ज पर ब्याज लेगी। सरकार इस व्यवस्था की तैयारी कर रही है। वित्त मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति ने सरकार की इस तैयारी पर अपनी मुहर लगा दी है।

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सीमित रूप से यह व्यवस्था फैक्टरिंग कानून के तहत पहले से चल रही है। लेकिन अब सरकार फैक्टरिंग बिल में संशोधन कर इसका दायरा बढ़ाना चाहती है, ताकि एमएसएमई को उनके बकाया बिल के आधार पर सभी एनबीएफसी कर्ज दे सकें।

अभी सिर्फ सात एनबीएफसी फैक्टरिंग नियम के तहत एमएसएमई को उनकी बिक्री के बकाया बिल के आधार पर कर्ज दे सकती हैं। हालांकि, सभी एनबीएफसी को इस दायरे में लाने पर जालसाजी की भी आशंकाएं जताई जा रही हैं। संसदीय स्थायी समिति ने इस जालसाजी पर रोक के लिए आरबीआइ से नियम बनाने के लिए कहा है।

समिति ने अपनी सिफारिश में एमएसएमई की क्रेडिट रेटिंग को लेकर भी नियम बनाने के लिए कहा है। फैक्टरिंग प्रणाली के तहत कर्ज की इच्छुक एमएसएमई की रेटिंग होने से वित्तीय संस्थाओं का उन पर भरोसा बढ़ेगा और उन्हें आसानी से कर्ज मिलेंगे। समिति का मानना है कि फैक्टरिंग सुविधा का दायरा बढ़ने से एमएसएमई के टर्नओवर में बढ़ोतरी होगी और उनका लाभ भी बढ़ेगा। इससे देश में रोजगार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

सभी एनबीएफसी को बिक्री के बकाया बिल के आधार पर नकदी मुहैया कराने की सुविधा देने से घरेलू मैन्यूफैक्चरर्स से लेकर निर्यातकों को तत्काल परिचालन पूंजी की कमी नहीं रहेगी। वहीं, एमएसएमई को अपेक्षाकृत सस्ते कर्ज मिलने की गुंजाइश बढ़ेगी, क्योंकि एनबीएफसी में आपसी स्पर्धा बढ़ेगी।

एमएसएमई की नकदी की समस्या दूर करने के उपाय सुझाने के लिए वर्ष 2019 में आरबीआइ ने यूके सिन्हा कमेटी गठित की थी। इस कमेटी ने फैक्टरिंग कानून, 2011 में संशोधन की सिफारिश की थी। वित्त वर्ष 2020-21 के बजट भाषण में सरकार ने इस कानून में संशोधन की अपनी मंशा जाहिर कर दी थी।

भारत में एमएसएमई की कुल उधारी में फैक्टररिंग की हिस्सेदारी मात्र 2.6 फीसद है जबकि चीन में फैक्टरिंग प्रणाली के तहत 11.2 फीसद कर्ज एमएसएमई को दिए जाते हैं। हालांकि, तकनीक का इस्तेमाल बढ़ने से फैक्टरिंग प्रणाली में बढ़ोतरी की पूरी गुंजाइश दिख रही है। क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक तरीके से लेनदेन होने पर बिक्री का पूरा रिकॉर्ड होगा और जिसकी वैधानिक मंजूरी होगी।


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