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स्मार्टफोन इंडस्ट्री में चीन को टक्कर देने की तैयारी में हैं भारतीय कंपनियां, 3 फोन लाने वाली है Micromax

वर्ष 2015 तक भारत की चार मोबाइल फोन कंपनियां माइक्रोमैक्स लावा इंटेक्स और कार्बन की घरेलू बाजार में हिस्सेदारी 31 फीसद की थी जो वर्ष 2018 आते-आते 7 फीसद रह गई।

By Ankit KumarEdited By: Published: Tue, 07 Jul 2020 07:05 PM (IST)Updated: Fri, 10 Jul 2020 08:09 AM (IST)
स्मार्टफोन इंडस्ट्री में चीन को टक्कर देने की तैयारी में हैं भारतीय कंपनियां, 3 फोन लाने वाली है Micromax
स्मार्टफोन इंडस्ट्री में चीन को टक्कर देने की तैयारी में हैं भारतीय कंपनियां, 3 फोन लाने वाली है Micromax

नई दिल्ली, राजीव कुमार। सितंबर, 2015 में मोबाइल फोन बनाने वाली भारतीय कंपनी Micromax के फाउंडर राहुल शर्मा का हौसला इतना बुलंद था कि वह फोन के लांच पर अक्सर यह बात दोहराते थे कि उन्हें 100 करोड़ फोन बेचने के लिए बस पांच देश चाहिए। इस भरोसे के पीछे वजह भी थी। माइक्रोमैक्स ने वर्ष 2014 में रूस में अपना फोन लांच किया था और 2015 सितंबर तक रूस के फोन बाजार में इसकी हिस्सेदारी 4.5 फीसद हो गई थी। देश की दूसरी मोबाइल फोन कंपनियों कार्बन, लावा का जोश भी उफान पर था। अमिताभ बच्चन जैसे सेलिब्रेटी इनके ब्रांड एंबेसडर होते थे। लेकिन इसके बाद जो हुआ वह भारतीय मोबाइल उद्योग में चीन के वर्चस्व का इतिहास है।

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वर्ष 2015 तक भारत की चार मोबाइल फोन कंपनियां माइक्रोमैक्स, लावा, इंटेक्स और कार्बन की घरेलू बाजार में हिस्सेदारी 31 फीसद की थी जो वर्ष 2018 आते-आते 7 फीसद रह गई। अब जब सरकार से लेकर देश की जनता तक चीनी उत्पादों को लेकर रोष और सख्ती है तो भारतीय कंपनियों का जोश बढ़ने लगा है। इलेक्ट्रानिक्स में आत्मनिर्भरता की राह कठिन है लेकिन असंभव नहीं। 

भारतीय स्मार्टफोन के बाजार में अपनी 80 फीसद तक की हिस्सेदारी रखने वाली पांच में चार कंपनियां शाओमी, ओप्पो, वीवो, रेडमी चीन की हैं। यह भी ध्यान रहे कि वर्ष 2017 में भी सरकार की तरफ से इलेक्ट्रॉनिक्स व इलेक्ट्रिकल्स मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहित करने के लिए फेज्ड मैन्युफैक्चरिंग प्रोग्राम (पीएमपी) लाने की घोषणा की गई थी ताकि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स व इलेक्ट्रिकल्स का आयात घटा सके और इसका भी सबसे ज्यादा फायदा चीन की कंपनियों ने उठाया।

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मेक इन इंडिया के तहत इन कंपनियों के आने से इस सेक्टर में चीन से भारत का आयात बिल पिछले दो साल में 28 अरब डॉलर से घटकर 19 अरब डॉलर का हो गया। यह बड़ी बात है लेकिन आत्म निर्भरता का लक्ष्य केवल चीन से पीछा छुड़ाकर नहीं हासिल किया जा सकता है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक सभी देशों से होने इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में पिछले एक साल में सिर्फ 3 अरब डॉलर की कमी आई है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2018-19 में इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं का कुल आयात 52 अरब डॉलर का रहा जबकि गत वित्त वर्ष 2019-20 में यह आयात 49 अरब डॉलर का रहा।

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक चीन से भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में 9 अरब डॉलर की कमी आई है, लेकिन दूसरी तरफ हांगकांग और वियतनाम जैसे देशों से भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में बढ़ोतरी दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने वियतनाम से 2 अरब डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स आयात किया था जो गत वित्त वर्ष 2019-20 में बढ़कर 4 अरब डॉलर का हो गया। हांगकांग से पिछले वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान भारत ने 8.7 अरब डॉलर का आयात किया जबकि वित्त वर्ष 2018-19 में यह आयात 8.6 अरब डॉलर का था। 

हालांकि अभी मोबाइल फोन व अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स सामान का भारत में असेंबलिंग का काम हो रहा है। पूर्ण मैन्युफैक्चरिंग किये बगैर चीन पर निर्भरता खत्म नहीं हो सकती। अब देसी कंपनी कार्बन मोबाइल नए सिरे से भारतीय बाजार में पैर जमाने की कोशिश शुरू कर रही है।

कंपनी के एमडी प्रदीप जैन स्वीकार करते हैं कि 'चीन के वर्चस्व को तोड़ना आसान नहीं होगा लेकिन इसकी शुरुआत की जाएगी.. हम पूरी तरह से चीन की तरह सस्ते व आधुनिक मोबाइल फोन बनाने को तैयार हैं।'

माइक्रोमैक्स भी तीन स्मार्टफोन लाने की तैयारी कर रही है। इन कंपनियों की कोशिश यह है कि इस बार के त्योहारी मौसम में चीन की मोबाइल कंपनियों के मुकाबले भारत निर्मित हैंडसेट का बोलबाला हो। औद्योगिक संगठन सीआइआइ के नेशनल आईसीटीई मैन्युफैक्चरिंग कमेटी के चेयरमैन विनोद शर्मा के मुताबिक 'सभी प्रकार के इलेक्ट्रिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के घरेलू उत्पादन को आगे ले जाने का यह सुनहरा अवसर है।

चीन के खिलाफ एक वातावारण भी है और सरकारी एजेंसियों की तरफ से सहयोग भी मिल रहा है। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव देने की घोषणा हो चुकी है। हालांकि ग्राहकों को मेड इन इंडिया उत्पाद फिलहाल थोड़ा महंगा मिलेगा। इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में इस्तेमाल होने वाले छोटे-छोटे पार्ट्स अब भारत में बनने शुरू हुए हैं लेकिन ज्यादातर सामान अब भी आयात हो रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत को अब असेंबलिंग के काम को नेक्स्ट लेवल पर ले जाना होगा। इसके लिए असेंबलिंग करने वाली कंपनियों को भारत में ही सारे सामान बनाने के लिए प्रोत्साहित करने संबंधी नीति की दरकार है।

एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि एक बड़ी समस्या मास लेवल पर उत्पादन का नहीं होने से आने वाली है। चीन में बहुत बड़ी संख्या में उत्पादन होता है जिससे लागत काफी नीचे आ जाती है। इंडियन सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीइए) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में निर्माण लागत चीन और वियतनाम के मुकाबले काफी अधिक है।

रिपोर्ट क मुताबिक अगर किसी मोबाइल फोन की लागत 100 रुपए है तो भारत सरकार की तरफ से ऑफर इंसेंटिव की बदौलत लागत में 5.88-66.7 फीसद की कमी आती है। वहीं, वियतनाम में मिलने वाले इंसेंटिव से 9.4-11.5 फीसद तो चीन में मिलने वाले इंसेंटिव से 19.2-21.7 फीसद तक लागत में कमी आती है। लागत को इस स्तर पर लाये बगैर भारतीय कंपनियां चीन व विएतनाम जैसे देशों का मुकाबला नहीं कर सकते।

साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि हम सही मायने में आत्मनिर्भर हो सके, चीन की जगह किसी दूसरे देश की कंपनियां ना ले लें। इस बाजार में दक्षिण कोरियाई व ताइवानी कंपनियों की भी तूती बोलती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक चीन के खिलाफ बनते वैश्रि्वक माहौल में इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र की दिग्गज मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां फॉक्सकॉन, विस्ट्रॉन और पेगाट्रॉन चीन से बाहर अपना विस्तार करना चाह रही है, लेकिन यह तभी संभव है जब भारत की लागत को और कम करने का प्रयास किया जाएगा। दुनिया में कहीं भी तकनीकी हस्तांतरण चुटकी बजाते नहीं होती, इसमें वक्त लगता है। ठोस शुरुआत अभी करनी होगी, लक्ष्य मुश्किल है लेकिन हम हासिल कर सकते है।


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