Move to Jagran APP

महंगाई काबू में आई तो और सस्ते होंगे कर्ज, मौद्रिक नीति समिति की बैठक का ब्यौरा जारी

ताजे आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले एक वर्ष के भीतर ब्याज दरों में औसतन 2.5 फीसद की कटौती होने के बावजूद बैंकों से कर्ज वितरण की रफ्तार 5-6 फीसद बनी हुई है। ऐसे में ब्याज दरों में और कटौती की मांग भी हो रही है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 08:18 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 05:04 PM (IST)
महंगाई काबू में आई तो और सस्ते होंगे कर्ज, मौद्रिक नीति समिति की बैठक का ब्यौरा जारी
एमपीसी में आरबीआइ गवर्नर समेत छह सदस्य हैं। (PC: ANI)

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। ताजे आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले एक वर्ष के भीतर ब्याज दरों में औसतन 2.5 फीसद की कटौती होने के बावजूद बैंकों से कर्ज वितरण की रफ्तार 5-6 फीसद बनी हुई है। ऐसे में ब्याज दरों में और कटौती की मांग भी हो रही है। लेकिन आरबीआइ के समक्ष एक बड़ी समस्या महंगाई की दर है जो लगातार 7 फीसद के उपर है। आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने कहा है कि अगर महंगाई की दर उम्मीद के मुताबिक (4 से 6 फीसद के बीच) रहती है तो ब्याज दरों में और कटौती का रास्ता निकल सकता है। डॉ. दास ने मौद्रिक नीति तय करने वाली समिति (एमपीसी) की पिछली बैठक में यह बात कही है। उक्त बैठक में ब्याज दरों को हुई चर्चा का ब्यौरा शुक्रवार को केंद्रीय बैंक ने जारी किया है।

loksabha election banner

एमपीसी में आरबीआइ गवर्नर समेत छह सदस्य हैं। बैठक में सभी सदस्यों की तरफ से इकोनॉमी की विवेचना की गई है। इन सभी का लब्बो-लुआब यही है कि कोविड-19 महामारी ने जिस तरह से आर्थिक तंत्र को तहस-नहस किया है उसके सामान्य होने की प्रक्रिया शुरू हो गई है लेकिन कोविड-19 से पहले वाली स्थिति में पहुंचने में अभी भी तीन से चार तिमाहियों का वक्त लगेगा।

सभी ने माना है कि कोविड ने घरेलू व विदेशी मांग को काफी प्रभावित किया है और आगे मांग को लेकर अनिश्चितता बरकरार रहेगी। खास तौर पर जिस तरह से कोविड महामारी के दोबारा कुछ देशों में प्रसार देखा जा रहा है उससे फिर से पटरी पर लाने की कोशिशों को झटका लगा सकता है। ऐसे में आरबीाइ की तरफ से हर कोशिश बाजार में ज्यादा से ज्यादा तरलता प्रवाह बढ़ाने की होनी चाहिए। तरलता प्रवाह बढ़ाने के लिए सिर्फ रेपो रेट में कटौती ही एक रास्ता नहीं है बल्कि दूसरे उपाय भी किये जा रहे हैं।

सनद रहे कि एमपीसी की बैठक 7 से 9 अक्टूबर के बीच हुई थी जिसमें रेपो रेट को 4 फीसद पर स्थिर रखने की सहमति बनी थी। हालांकि दूसरे उपाय किये गये थे ताकि बैंकों के पास ज्यादा फंड हो जिसे वो होम लोन के तौर पर वितरित कर सके।

एमपीसी में आरबीआइ गवर्नर के अलावा अन्य सभी पांचों सदस्यों डॉ. शशांक भिडे, डॉ. अमीशा गोयल, प्रो जयंत वर्मा, डॉ. एम के सागर और डॉ. माइकल देबब्रता पात्रा ने महंगाई से ज्यादा आर्थिक विकास दर के गिरते स्तर पर चिंता जताई है। अप्रैल-जुलाई की तिमाही में इकोनॉमी में 23.9 फीसद की गिरावट को चिंताजनक बताया गया है। आरबीआइ का कहना है कि अप्रैल-जुलाई, 2021 में इकोनॉमी की वृद्धि दर 20 फीसद से भी ज्यादा रहेगी। लेकिन यह तब होगा जब मानसून का असर दिखाई दे, वैश्विक हालात सहायक हो और घरेलू मांग में सुधार हो।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.