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'Tax Savings के नए तरीकों को मौजूदा कानूनों से नहीं मिल रही कोई मदद, सुधार की है जरूरत'

निवेशक जहां महंगाई दर से अधिक रिटर्न देने वाले और लंबी अवधि के निवेश की नई दुनिया की ओर जा रहे हैं वहीं कैपिटल गेन्स टैक्स को लेकर हमारा कानून अब भी पुरानी सोच में उलझा हुआ है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Sun, 26 Jan 2020 06:00 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 08:55 AM (IST)
'Tax Savings के नए तरीकों को मौजूदा कानूनों से नहीं मिल रही कोई मदद, सुधार की है जरूरत'
'Tax Savings के नए तरीकों को मौजूदा कानूनों से नहीं मिल रही कोई मदद, सुधार की है जरूरत'

नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। भारतीय बचतकर्ता और निवेशक टैक्स बचाने के नए तौर-तरीके अपना रहे हैं। मैं पहले भी लिख चुका हूं कि अब व्यक्तिगत निवेशक हर माह 8,000 करोड़ रुपये से अधिक रकम एसआइपी में निवेश कर रहे हैं। ताजा निवेश का यह प्रवाह काफी स्थिर है और राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) एवं कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) की रकम को भी जोड़ लें तो यह भारतीय इक्विटी मार्केट का मजबूत आधार बन गया है।

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निवेशक जहां महंगाई दर से अधिक रिटर्न देने वाले और लंबी अवधि के निवेश की नई दुनिया की ओर जा रहे हैं, वहीं कैपिटल गेन्स टैक्स को लेकर हमारा कानून अब भी पुरानी सोच में उलझा हुआ है। भारत में इक्विटी पर कैपिटल गेन्स टैक्स का स्ट्रक्चर बढ़ती अर्थव्यवस्था के बजाए काफी हद करीब पांच दशक पहले के अमीर विरोधी विचार पर खड़ा है। इसके अलावा यह ऐसे निवेशकों के हितों के खिलाफ काम कर रहा है जो अपने रिटर्न को बढ़ाना चाहते हैं और बड़ी रकम जुटाना चाहते हैं।

इस समस्या की मूल वजह यह है कि टैक्स कानून कैपिटल गेन्स यानी पूंजीगत लाभ होने को ट्रांजैक्शन मानता है। म्यूचुअल फंड निवेश में जब भी निवेशक फंड की यूनिट बेचता है तो उसको होने वाला मुनाफा या गेन्स को टैक्स कानून के तहत कैपिटल गेन्स माना जाता है। अगर फंड में निवेश बनाए रखने की अवधि एक साल से कम है तो यह शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स है और निवेश बनाए रखने की अवधि एक वर्ष से अधिक है तो यह लांग टर्म कैपिटल गेन्स है। इक्विटी फंड में लांग टर्म कैपिटल गेन्स 2005 में खत्म कर दिया गया था और 2018 तक यह शून्य था।

वर्तमान टैक्स कानून कुछ इस तरह का है कि वह लंबी अवधि के निवेशकों को दंडित करता है जबकि यह लंबी अवधि के निवेशकों को प्रोत्साहित करने वाला होना चाहिए। लंबी अवधि में एक ऐसा समय आता है जब निवेशक को लगता है कि उसने जिस म्यूचुअल फंड में निवेश किया हुआ है, उससे बेहतर विकल्प बाजार में आ गया है। ऐसे में अगर निवेशक उस फंड में निवेश बेचकर रकम दूसरे फंड में लगाता है तो उसे पहले फंड से मिलने वाले मुनाफे पर कैपिटल गेन्स टैक्स देना होगा। तो इससे या तो उसका रिटर्न कम होता है या निवेशक टैक्स देने से बचने के लिए कम रिटर्न के साथ ही समझौता करे। निवेशक अपने निवेश का पूरा फायदा उठा सके इसके लिए जरूरी है कि इक्विटी म्यूचुअल फंड का निवेश बेचकर दूसरे इक्विटी फंड में निवेश करने को ट्रांजैक्शन नहीं माना जाए। यह मांग लंबे समय से की जा रही है। एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स ऑफ इंडिया (एम्फी) ने भी वित्त मंत्री के सामने यह मांग रखी थी। वर्ष 2018 के पहले लोग इस मांग को लेकर ज्यादा मुखर नहीं थे क्योंकि लांग टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स शून्य था। हालांकि मैं यहां शून्य टैक्स से अलग बात कर रहा हूं। मैं कह रहा हूं कि अगर कोई अपना निवेश रकम खर्च करने के लिए भुनाता है तो उस पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगना चाहिए। लेकिन लंबी अवधि के निवेश को भुनाकर दूसरे फंड में निवेश करने पर टैक्स नहीं लगना चाहिए।

दिलचस्प बात यह है कि कुछ इसी तरह का प्रावधान टैक्स कानून में पहले से है। सेक्शन 54 में प्रावधान है कि लांग टर्म कैपिटल गेन्स को अगर कम अवधि में आवासीय प्रॉपर्टी खरीदने में लगाया जाए तो टैक्स नहीं लगेगा। हालांकि, अजीब बात यह है कि टैक्स कानून में आवासीय प्रॉपर्टी को ऐसा असेट टाइप माना गया है जिसमें रकम को लगाया जाना चाहिए। सेक्शन 54 के तहत आप लंबी अवधि के निवेश को बेचकर मिलने वाली रकम से एक घर खरीद सकते हैं और अगर आप इस घर को तीन साल से अधिक समय तक रखते हैं तो आपको टैक्स नहीं देना होगा। यह विशेष सुविधा किसी और तरह के निवेश पर उपलबध नहीं है।

यह नियम पुराने जमाने में ठीक था। उस समय घर ही लंबी अवधि का निवेश माना जाता था। बड़ी रकम वाले वित्तीय निवेश बहुत कम होते थे। लेकिन अब कोई बचतकर्ता अपने पर्सनल फाइनेंस को इस तरह से नहीं देखता है। चाहे इस बजट में किया जाए या बाद में, सेक्शन 54 का फायदा दूसरी तरह की बचत और असेट्स को भी मिलना चाहिए जिनमें लोग पैसा लगा रहे हैं।

वर्तमान टैक्स कानून लंबी अवधि के निवेशकों को दंडित करता है, जबकि उसे लंबी अवधि के निवेशकों को प्रोत्साहित करने वाला होना चाहिए। इसकी मूल वजह यह है कि टैक्स कानून कैपिटल गेन्स को ट्रांजैक्शन मानता है। लंबी अवधि के निवेश में एक ऐसा समय आता है जब निवेशक को लगता है कि उसने जिस म्यूचुअल फंड में निवेश किया हुआ है उसका बेहतर विकल्प आ गया है। दिक्कत यह है कि अगर निवेशक उस फंड से निवेश बेचकर रकम दूसरे फंड में लगाता है तो उसे पहले फंड से मिलने वाले मुनाफे पर कैपिटल गेन्स टैक्स देना होगा। ऐसी टैक्स व्यवस्था में निवेशकों को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है।

(लेखक वैल्यू रिसर्च के सीईओ हैं।)


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