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Jagran Dialogues: Covid-19 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए क्‍या कदम हैं जरूरी, बता रहे हैं Experts

Jagran Dialogues के ताजा एपिसोड में जागरण न्यू मीडिया के मनीश मिश्रा और अभिनव गुप्ता ने SBI की पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट Brinda Jagirdar और फाइनेंशियल कंसलटेंट अमिताभ तिवारी के साथ कोविड-19 के दौरान इंडियन इकोनॉमी को मजबूत करने के उपायों पर चर्चा की।

By Ankit KumarEdited By: Published: Tue, 25 May 2021 03:38 PM (IST)Updated: Wed, 26 May 2021 07:13 AM (IST)
Jagran Dialogues: Covid-19 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए क्‍या कदम हैं जरूरी, बता रहे हैं Experts
इस बार मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों पर काफी छूट दी गई है।

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। कोविड-19 महामारी ने दुनियाभर और खासकर भारतीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर डाला है। देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय इकोनॉमी में 23.9 फीसद का संकुचन देखने को मिला था। पिछले वित्त वर्ष की तीसरी और फिर चौथी तिमाही में आर्थिक गतिविधियां पटरी पर आ हीं रही थीं कि इस साल एक बार दूसरी लहर ने इकोनॉमी को बुरी तरह प्रभावित किया है। हालांकि, इस बार राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन नहीं लगाया है लेकिन विभिन्न राज्य सरकारों ने स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन जैसी पाबंदियां लगायी हैं। Jagran Dialogues के ताजा एपिसोड में जागरण न्यू मीडिया के मनीश मिश्रा और अभिनव गुप्ता ने इसी मुद्दे पर SBI की पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट Brinda Jagirdar और फाइनेंशियल कंसलटेंट अमिताभ तिवारी के साथ चर्चा की। 

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इस बातचीत के संपादित अंश इस प्रकार हैंः

सवालः लॉकडाउन से इकोनॉमी किस प्रकार प्रभावित हुई है? इकोनॉमी को रिवाइव करने के लिए सरकार की ओर से किस तरह के कदम उठाए जाने चाहिए?

बृंदा जागीरदारः पहला लॉकडॉउन काफी आकस्मिक था। उससे इकोनॉमी पर पूरी तरह ब्रेक लग गया था। जैसा कि डेटा आया है, पहली तिमाही में इकोनॉमी 23.9 फीसद निगेटिव में चला गया था। लेकिन उसके बाद सरकार और रिजर्व बैंक ने लगातार कई स्टेप्स लिए हैं। उससे इकोनॉमी पटरी पर आने लगी थी। लेकिन दूसरे लॉकडाउन से इकोनॉमी को फिर से झटका लगा है लेकिन इस बार पिछले लॉकडाउन की तरह की आर्थिक सुस्ती देखने को नहीं मिलेगी। इसकी वजह यह है कि सरकार ने जो कदम उठाए हैं, इसके परिणामस्वरूप मैन्युफैक्चरिंग पूरी तरह बंद नहीं है। 

इस बार मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों पर काफी छूट दी गई है। सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है- सर्विसेज। इनमें रेस्टोरेंट, होटल, थिएटर्स, मॉल, ट्रेवल, हॉस्पिटालिटी एविएशन इत्यादि बहुत बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। हमारी इकोनॉमी में सर्विस सेक्टर की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है। लेकिन इस साल के लॉकडाउन में कई तरह की छूट दी गई है। दूसरी ओर पीएलआई स्कीम और लोन वगैरह से इकोनॉमी को थोड़ा सहारा मिलेगा। तो कुल-मिलाकर कहा ये जा सकता है इस साल भी इकोनॉमी पर निश्चित रूप से असर देखने को मिलेगा लेकिन पिछले साल की तरह नहीं। स्थिति पर नजर रखने की जरूरत है लेकिन ऐसा नहीं है कि इकोनॉमी रिवर्स गियर में जा रही है। 

सवाल: कोविड की पहली और दूसरी लहर, लॉकडाउन से रोजगार पर कितना असर पड़ा है? इस समय किस तरह की स्थिति है और सरकार इसे किस तरह से डील कर रही है?

अमिताभ तिवारीः इस बार बेरोजगारी पिछले बार की तरह नहीं है। हालांकि, मई में सीएमआई की एक रिपोर्ट आई है, जिसमें कहा गया है कि ग्रामीण और शहरी बेरोजगारी दर 15 फीसद पर पहुंच गई है। यह जून, 2020 के बाद के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है। क्योंकि देश का बड़ा हिस्सा अगर लॉकडाउन में है तो यह काफी वाजिब है। इसमें असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है। इस बार सरकार ने पिछली बार की तरह के उपाय इस संदर्भ में नहीं किए हैं। पिछली बार मनरेगा का आवंटन बढ़ाया गया था। इस बार भी उसमें वृद्धि किए जाने की जरूरत है, भले ही क्वांटम उतना ना हो। इससे ग्रामीण सेक्टर की बेरोजगारी को संभालने में मदद मिलेगी। अर्बन नरेगा की भी जरूरत हो सकती है। सरकार पिछली बार की तरह नकदी सहायता राशि के बारे में भी सोच सकती है।  


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