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कोरोना की मार, इकोनोमी बेजार; कृषि के अलावा अन्य सभी सेक्टरों की हालत खराब

देश की इकोनोमी व रोजगार में 40 फीसद हिस्सा रखने वाले सेवा सेक्टर की स्थिति भी बेहद खराब है। (PC PTI)

By Ankit KumarEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2020 08:11 PM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2020 08:11 PM (IST)
कोरोना की मार, इकोनोमी बेजार; कृषि के अलावा अन्य सभी सेक्टरों की हालत खराब
कोरोना की मार, इकोनोमी बेजार; कृषि के अलावा अन्य सभी सेक्टरों की हालत खराब

नई दिल्ली, जयप्रकाश रंजन। सरकार ने सोमवार को इकोनोमी के जो आंकड़े पेश किये हैं उससे साफ है कि कोविड-19 महामारी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था गहरी मुसीबत में फंस चुकी है। वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के दौरान देश की अर्थव्यवस्था में 23.9 फीसद की गिरावट हुई है। अगर कृषि सेक्टर को छोड़ दिया जाए तो खनन, मैन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन जैसे रोजगार देने वाले औद्योगिक सेक्टरों में 23 से 50 फीसद की गिरावट हुई है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ें बता रहे हैं कि पहले से ही सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्र में मंदी मजबूती से पैर पसार चुकी है। रविवार को जारी प्रमुख ढांचागत सेक्टर की विकास दर और राजकोषीय घाटे के आंकड़े भी कुछ ऐसा ही बताती है। ऐसे में मंदी दूर करने के लिए सरकार को और ज्यादा कोशिश करनी होगी।

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राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक पहली तिमाही (अप्रैल-जून, 2020) में जीडीपी का आकार 26.90 लाख करोड़ रुपये रही है जबकि अप्रैल-जून, 2019 में यह 35.35 लाख करोड़ रुपये का था। इस तरह से 23.9 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है जबकि पिछले वर्ष समान अवधि की वृद्धि दर 5.2 फीसद रही थी। कोविड की वजह से लॉकडाउन लागू होने से पहले यानी जनवरी-मार्च, 2020 (पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही) में जीडीपी की वृद्धि दर 3.1 फीसद रही थी। सरकार की तरफ से दिए गए आंकड़ों से यह भी साफ होता है 24 मार्च, 2020 को राष्ट्रीय लॉकडाउन घोषित होने से पहले की आठ तिमाहियों में विकास दर लगातार कम होती रही है। यानी इकोनोमी में पहले से ही कमजोरी आ रही थी जो कोरोना काल में और सघन हो गई हैं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास पहले ही यह संकेत दे चुके थे कि इकोनोमी में गिरावट होने वाली है। कोविड महामारी की वजह से अभी तक आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से सामान्य नहीं हो सकी हैं। जिस तिमाही का डाटा जारी किया गया है उस दौरान सबसे ज्यादा पाबंदियां थी। अब खनन सेक्टर की बात करें तो अप्रैल-जून की तिमाही में 23.3 फीसद की गिरावट, मैन्यूफैक्चरिंग में 39.3 फीसद की गिरावट, बिजली-गैस-जलापूर्ति जैसी सेवाओं में 7 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। सबसे ज्यादा मजदूरों को रोजगार देने वाला सेक्टर कंस्ट्रक्शन में 50.3 फीसद की गिरावट है।

देश की इकोनोमी व रोजगार में 40 फीसद हिस्सा रखने वाले सेवा सेक्टर की स्थिति भी बेहद खराब है। ट्रेड, होटल्स, ट्रांसपोर्ट, संचार संबंधित सेवाओं में 47 फीसद और वित्तीय सर्विस सेक्टर में 5.3 फीसद और लोक प्रशासन में 10.3 फीसद की गिरावट है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों के ये विकास दर जीवीए (ग्रास वैल्य एडेड) के आधार पर ही सरकार ने उपलब्ध कराई है।

सोमवार को सरकार की तरफ से बताया गया है कि जुलाई में आठ प्रमुख ढांचागत उद्योगों में 9.6 फीसद की गिरावट हुई है। अभी भी अधिकांश राज्यों में आर्थिक गतिविधियां सामान्य नहीं है। बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में फैक्टि्रयों के काम काज पर कई तरह की बंदिशें हैं। ऐसे में मौजूदा तिमाही में भी बहुत रौशन तस्वीर की गुंजाइश नहीं है। सोमवार को सरकार की तरफ से खजाने का भी सूरते हाल पेश किया गया है जिसके मुताबिक अप्रैल-जून के दौरान ही पूरे वित्त वर्ष के वित्तीय घाटे की सीमा को पार किया जा चुका है। केंद्र सरकार के राजस्व व खर्चे का अंतर 8.21 लाख करोड़ रुपये का है जो बजटीय अनुमान का 103 फीसद है। बजट में जीडीपी का 3.5 फीसद (7.96 लाख करोड़ रुपये) का राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा गया था।

सिर्फ तीन महीने में पूरे साल राजकोषीय घाटे का पूरा होना बताता है कि सरकार वित्तीय मोर्चे पर भी काफी चुनौतीपूर्ण स्थिति में है। उधर, पीएमओ और वित्त मंत्रालय की तरफ से संकेत है कि केंद्र सरकार एक और आर्थिक पैकेज देने से जुड़े प्रस्तावों को अंतिम रूप दे रही है। मई के अंत में तकरीबन 21 लाख करोड़ रुपये का डोज इकोनोमी को दिया गया था।


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