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एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम दबाए बैठे हैं देश के विलफुल डिफॉल्टर्स

डेटा के मुताबिक देश में बैड लोन की समस्या तेजी से बढ़ रही है

By Surbhi JainEdited By: Published: Fri, 23 Feb 2018 03:30 PM (IST)Updated: Sat, 24 Feb 2018 09:38 AM (IST)
एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम दबाए बैठे हैं देश के विलफुल डिफॉल्टर्स
एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम दबाए बैठे हैं देश के विलफुल डिफॉल्टर्स

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। 30 सितंबर 2017 तक के आंकड़ों के हिसाब से 1.1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बैंकों की राशि विलफुल डिफॉल्टर्स के पास है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक 9000 ऐसे खाते हैं जिनके लिए बैंक में रिकवरी के लिए लॉ सूट फाइल किया गया है। इसमें से टॉप 11 उधारकर्ताओं के पास 1000 करोड़ रुपये (प्रत्येक) का बकाया है। यह कुल मिलाकर 26000 करोड़ रुपये की राशि बनती है।

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डेटा के अनुसार जतिन मेहता की कंपनी विनसम डायमंड एंड ज्वैलरी लिमिटेड और फॉरेवर प्रीशियस एंड डायमंड लिमिटेड के पास करीब बैंकों की 5500 करोड़ रुपये की राशि बकाया है। मेहता की कंपनियों के बाद विजय माल्या की किंगफिशऱ एयरलाइंस का नंबर आता है जिसके पास 3000 करोड़ रुपये की बकाया राशि है। इस सूची में तीसरे नंबर पर कोलकता की कंपनी REI Agro है। इस कंपनी के मालिक संदीप झुनझुनवाला हैं जो खबरों के अनुसार लंदन और सिंगापुर स्टॉक एक्सचेंज में भी लिस्ट की जा चुकी है। साथ ही यह आईपीएल टीम के को स्पॉन्सर भी रह चुके हैं। इस कंपनी के पास 2730 करोड़ रुपये की बकाया राशि है। अगले स्थान पर प्रबोध कुमार तिवारी और उनके परिवार की कंपनियां हैं। माहुआ मीडिया, पर्ल स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड, सेंचुरी कम्युनिकेशन्स और पिक्सिन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के पास बैंक की 2416 करोड़ रुपये की बकाया राशि है।

इस सूची में बैंक के अनुसार जो अन्य कंपनियां हैं जिनपर 2000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि बकाया है और वे समर्थ होने के बावजूद इसे चुका नहीं रहे हैं वे विजय चौधरी की जूम डेवेलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, नितिन कास्लीवाल की रीड एंड टेलर (इंडिया) और एस कुमार्स नेशनवाइड लिमिटेड और मीडिया के दिग्गज टी वेंकेटरमन की डेक्कन क्रॉनिकल होल्डिंग लिमिटेड शामिल है।

डेटा इस बात का संकेत देता है कि देश में बैड लोन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। बीते एक वर्ष में इन मामलों में 27 फीसद तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। बीते तीन वर्षों में इसमें क्रमश: 38 फीसद, 67 फीसद और 35 फीसद की तेजी दर्ज की गई है। वहीं, सितंबर 2013 और सितंबर 2017 के बीच यह आंकड़ा चार गुना बढ़ गया है। यह 28417 करोड़ रुपये से बढ़कर 1.1 लाख करोड़ रुपये हो गया है।

बैंकों के आधार पर अगर इस डेटा का अध्ययन किया जाए तो राष्ट्रीय बैंक इस पूरी राशि में 60 फीसद की हिस्सेदारी रखते हैं। एसबीआई और उसके सहयोगी बैंकों की इस पूरी राशि में एक चौथाई की हिस्सेदारी है। वहीं, निजी बैंकों ने भी 14000 करोड़ रुपये की विल्फुल डिफॉल्डट की घोषणा की है।


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