अमेरिका में कच्चे तेल का भंडार रखेगा भारत, रणनीतिक ऊर्जा साझेदारी से जुड़ी बैठक में बनी सहमति
पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और अमेरिका के ऊर्जा मंत्री डैन ब्राउलेट के नेतृत्व में यह दोनो देशों की दूसरी साझेदारी बैठक थी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भारत और अमेरिका के प्रगाढ़ होते रणनीतिक रिश्तों की एक बानगी शुक्रवार को दोनो देशों की रणनीतिक ऊर्जा साझेदारी बैठक में दिखी। बैठक के दौरान अमेरिका में भारत के लिए रणनीतिक तेल भंडार की स्थापना के प्रस्ताव पर काफी बात आगे बढ़ी। भारत अपनी जरूरत का 84 फीसद क्रूड विदेशी बाजारों से आयात करता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों में बदलाव होने से उसे भारी अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। भारत अपनी खपत का सिर्फ 15 दिनों का रणनीतिक भंडार बना पाया है। दूसरी तरफ अमेरिका के पास विशाल भंडारण क्षमता है। वहां भारत अपना तेल भंडार रखकर अनिश्चित हालात का ज्यादा बेहतर तरीके से सामना कर सकता है।
पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और अमेरिका के ऊर्जा मंत्री डैन ब्राउलेट के नेतृत्व में यह दोनो देशों की दूसरी साझेदारी बैठक थी। बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान के मुताबिक रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार की स्थापना के लिए अमेरिकी ऊर्जा विभाग व भारत के पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय के बीच समझौता किया जाएगा।पिछले वित्त वर्ष में भारत ने अमेरिका से 900 करोड़ डॉलर यानी करीब 63,000 करोड़ रुपये मूल्य के तेल व गैस की खरीद की। यह अमेरिका से होने वाले कुल आयात का तकरीबन 10 फीसद है।
अमेरिका उन शीर्ष 10 देशों में शामिल हो चुका है जहां से भारत सबसे ज्यादा पेट्रोलियम ईंधन खरीदता है। अगले दो-तीन वर्षों में वह शीर्ष पांच आपूर्तिकर्ताओं में शामिल होने की ओर है। अभी अमेरिका के पास दुनिया की सबसे बड़ी भंडारण क्षमता है जो उसने शीत युद्ध के काल में बनाया था। इसकी क्षमता तकरीबन 80 करोड़ बैरल की है। अमेरिका अपनी राष्ट्रीय खपत के करीब एक महीने की क्षमता का इसमें भंडारण करता है, लेकिन इसका पूरा इस्तेमाल कभी नहीं हो पाया है। ऐसे में भारत इस क्षमता का इस्तेमाल कर सकता है।
अभी जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता है तो भारत इन्हें खरीदकर अमेरिकी भंडारण क्षमता में रख सकता है। वहीं, भारत सिर्फ दो वर्षो में अमेरिकी क्रूड व शेल गैस का बड़ा खरीदार बन चुका है। ऐसे में वह भारत को तमाम ऊर्जा तकनीक हासिल करने में भी मदद कर रहा है। रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में टेक्नोलॉजी अपग्रेड करने के लिए भी दोनो देशों में बड़े पैमाने पर काम चल रहा है। भारत को उम्मीद है कि सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनियों के विनिवेश में अमेरिकी कंपनियां हिस्सा लेंगी।