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बैंकों पर अभी बढ़ता रहेगा NPA प्रोविजन का बोझ: इंडिया रेटिंग्स

रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स के अनुसार चालू और अगले वित्त वर्ष में बैंकों को एनपीए के मद में तीन फीसद तक का प्रावधान करना पड़ सकता है

By Surbhi JainEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 11:04 AM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 11:04 AM (IST)
बैंकों पर अभी बढ़ता रहेगा NPA प्रोविजन का बोझ: इंडिया रेटिंग्स
बैंकों पर अभी बढ़ता रहेगा NPA प्रोविजन का बोझ: इंडिया रेटिंग्स

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। भारी-भरकम फंसे कर्जों यानी एनपीए के बोझ से दबे बैंकों की स्थिति अभी सुधार की उम्मीद नहीं है। रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मद में बैंकों का खर्च वित्त वर्ष 2019-20 तक बढ़ता रहेगा। इंडिया रेटिंग्स ने अपनी मध्यावधि परिदृश्य रिपोर्ट में निजी क्षेत्र के बैंकों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में से एसबीआइ व बैंक ऑफ बड़ौदा का आउटलुक स्टेबल (स्थिर) रखा है।

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एजेंसी ने अन्य सभी सरकारी बैंकों का आउटलुक नेगेटिव (नकारात्मक) कर दिया है। एजेंसी के मुताबिक, चालू और अगले वित्त वर्ष में बैंकों को एनपीए के मद में तीन फीसद तक का प्रावधान करना पड़ सकता है। रिपोर्ट में ऊंचे क्रेडिट कॉस्ट के लिए पुराने एनपीए को बड़ी वजह बताया गया है।

इसके मुताबिक, वित्त वर्ष 2015-16 के एसेट क्वालिटी रिव्यू में पहचान लिए गए एनपीए का भी अब तक निदान नहीं निकलने और मामले के खिंचते जाने से क्रेडिट कॉस्ट बढ़ी है। इसके अलावा एनपीए के मद में प्रावधान बढ़ना और नॉन-कॉरपोरेट खातों के कर्ज वापस नहीं आना भी इसके बड़े कारण रहे।

कॉरपोरेट क्षेत्र के स्ट्रेस लोन को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो साल के दौरान कंपनियों का कुल फंसा कर्ज 20 से 21 फीसद के दायरे में बना हुआ है।

चिंता की बड़ी वजह-

रेटिंग एजेंसी के मुताबिक चिंता की बात यह है कि अब नॉन-कॉरपोरेट सेक्टर में भी एसेट क्वालिटी पर दबाव बढ़ रहा है। कॉरपोरेट मामले में फंसे कर्ज की स्थिति शीर्ष पर पहुंच चुकी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेष उल्लेख वाले खातों (एसएमए) में छोटी कंपनियों, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमियों और व्यक्तिगत, खुदरा कर्ज का हिस्सा बढ़ा है। वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले 2017-18 में इनमें वृद्धि हुई है।

पांच करोड़ रुपये तक के ऐसे कर्ज जहां 31-60 दिन की अवधि में किस्त का भुगतान नहीं किया गया, उनका हिस्सा 2017-18 में एक साल पहले के 29 फीसद से बढ़कर 40 फीसद हो गया। इसी तरह 61-90 दिन तक किस्त नहीं चुकाए जाने वाले कर्जों की हिस्सेदारी सालभर पहले के 12 फीसद से बढ़कर 68 फीसद हो गई।


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