Move to Jagran APP

हुंडई को नहीं मिली हाईकोर्ट से राहत

प्रतिस्पर्धा रोधी गतिविधियों में शामिल कंपनियों की सूची में हुंडई का नाम आने पर उसने हाईकोर्ट में जांच का दायरा बढ़ाने के सीसीआइ के आदेश को चुनौती दी

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 29 Jul 2018 01:49 PM (IST)Updated: Sun, 29 Jul 2018 03:05 PM (IST)
हुंडई को नहीं मिली हाईकोर्ट से राहत
हुंडई को नहीं मिली हाईकोर्ट से राहत

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। हुंडई मोटर इंडिया लिमिटेड को स्पेयर पार्ट्स की बिक्री और बिक्री उपरांत सेवाओं में प्रतिस्पर्धा रोधी गतिविधियों के मामले में मद्रास हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। हाईकोर्ट ने हुंडई की उस अपील को खारिज कर दिया जो उसने कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीसीआइ) के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की थी। इस आदेश में प्रतिस्पर्धा रोधी गतिविधियों में कथित संलिप्तता की जांच करने को कहा गया है।

loksabha election banner

जस्टिस हुलुवाडी जी रमेश और आरएमटी टीका रमन की डिवीजन बेंच ने कंपनी की अपील की खारिज कर दिया। कंपनी ने हाईकोर्ट की एकल जज वाली बेंच के चार फरवरी 2015 के फैसले को चुनौती दी थी। एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि आरोपों की जांच का दायरा बढ़ाने के सीसीआइ के आदेश को बदला नहीं जा सकता है क्योंकि सीसीआइ के डायरेक्टर जनरल ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जांच का आदेश दिया है।

क्या है मामला?

यह मामला 2011 का है जबकि नई दिल्ली के शमशेर कटारिया ने सीसीआइ में शिकायत दर्ज कराई थी और देश की तीन कार निर्माता कंपनियों पर प्रतिस्पर्धा रोधी गतिविधियां अपनाने का आरोप लगाया था। इसके बाद सीसीआइ के एडीशनल डायरेक्टर जनरल ने 2011 में जांच में पाया कि कुछ अन्य कार निर्माता भी इसी तरह के तरीके अपनाते हैं। इसके बाद जांच का दायरा बढ़ाने का सीसीआइ ने आदेश दिया।

प्रतिस्पर्धा रोधी गतिविधियों में शामिल कंपनियों की सूची में हुंडई का नाम आने पर उसने हाईकोर्ट में जांच का दायरा बढ़ाने के सीसीआइ के आदेश को चुनौती दी। कंपनी का कहना था कि सीसीआइ के एडीशनल डायरेक्टर जनरल के पास उन कंपनियों के खिलाफ जांच करने का अधिकार नहीं है जो शिकायत में शामिल नहीं थी। लेकिन एकल जज की पीठ ने कंपनी का यह तर्क खारिज कर दिया।

एकल जज की पीठ के फैसले को बरकरार रखते हुए डिवीजन बेंच ने कहा कि अगर सीसीआइ ने 26 अप्रैल 2011 को निर्देश नहीं दिया होता तो डायरेक्टर जनरल सभी निर्माता कंपनियों के खिलाफ जांच नहीं कर सकता था। कमीशन द्वारा 26 अप्रैल 2011 को दिया गया निर्देश आदेश के समान ही है। इसलिए कार्यक्षेत्र में अतिक्रमण का कोई सवाल नहीं उठता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.