बढ़ी कीमतों पर अंकुश लगाने केे मकसद से अब कपास बेचेगी सरकार
कॉटन की ऊंची कीमतोंं के चलतेे मुश्किल में अब भारतीय कपास निगम न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कपास कताई मिलों को बेचेगा।
नई दिल्ली, प्रेट्र : कॉटन की ऊंची कीमतों के चलते मुश्किल में फंसी स्पिनिंग मिलों के लिए राहत की खबर है। भारतीय कपास निगम (सीसीआइ) न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर खरीदा गया कपास कताई मिलों को बेचेगा। केंद्र सरकार की ओर से शनिवार को यह फैसला किया गया। सीसीआइ की ओर से यह बिक्री सूक्ष्म, लघु व मझोले उद्यमों (एमएसएमई) श्रेणी में आने वाली कताई मिलों को एमएसपी पर की जाएगी। कपास की ऊंची कीमतों और कम कमाई की वजह से स्पिनिंग मिलों में सुस्ती छाने लगी थी।
ऐसे में सस्ता कॉटन मिलने से कताई मिलों में नई जान आएगी। कपास की खेती वाले इलाकों में बंपर बारिश भी कताई मिलों के अच्छे दिन आने की उम्मीद बढ़ी है। कपड़ा मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि कीमतों में हालिया उछाल से स्पिनिंग मिलों का कच्चे माल पर खर्च काफी ज्यादा बढ़ गया। इस साल मई में कॉटन के दाम 35,000 रुपये प्रति कैंडी (356 किलो) तक पहुंच गए थे। सीसीआइ किसानों से उस वक्त कपास खरीदता है, जब बाजार में इसकी कीमतें एमएसपी से नीचे आ जाती हैं।
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मई तक निगम ने किसानों से 8,40,000 गांठ की खरीद की थी। एक गांठ में 170 किलो होते हैं। समीक्षा बैठक में हुआ फैसलाकपड़ा आयुक्त कविता गुप्ता के अनुसार सीसीआइ के पास आगामी 30 सितंबर तक कपास का स्टॉक 43 लाख गांठ रहने की उम्मीद है। कपास की बेतहाशा बढ़ती कीमतों के मद्देनजर सरकार ने एक बैठक बुलाई थी। इस बैठक में मौजूदा सूरतेहाल की समीक्षा की गई। इसमें फैसला लिया गया कि सीसीआइ समर्थन मूल्य के तहत खरीदा गया अपना मौजूदा कॉटन स्टॉक केवल एमएसएमई श्रेणी में आने वाली कताई मिलों को बेचेगा। हालांकि यह बिक्री कपड़ा आयुक्त कार्यालय में पंजीकृत स्पिनिंग मिलों की ओर से मांग-पत्र के आधार पर ही की जाएगी।
कॉटन उत्पादन का हालपिछले साल केवल 3.25 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था, जबकि अनुमान 3.60 लाख गांठों का था। इसके बावजूद सरकार ने कॉटन के निर्यात पर रोक नहीं लगाई। नतीजतन कपास की कीमत पिछले महीने तक बेतहाशा बढ़ गई। ऐसे हालात में कताई यूनिटों और मिलों को अपनी जरूरत का कॉटन आयात भी करना पड़ रहा है।
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सफेद मक्खी से नुकसान की निगरानीइस समीक्षा बैठक में मौजूद कृषि विभाग के प्रतिनिधि ने बताया कि 15 जुलाई तक 75.41 लाख हेक्टेयर में कपास की बुवाई हो चुकी है। पिछले वर्ष इसी अवधि में 78 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बुवाई हो चुकी थी। बैठक में कपास को सफेद मक्खियों से होने वाले नुकसान से बचाने के उपायों पर भी चर्चा की गई। प्रतिनिधि ने जानकारी दी कि कृषि विभाग वर्ष 2016-17 में उत्तरी राज्यों में कपास को सफेद मक्खियों के नुकसान से बचाने के लिए कई कदम उठा रहा है। इसके तहत इन मक्खियों से होने वाले संक्रमण और प्रबंधन की निगरानी के लिए एक केंद्रीय दल का गठन किया गया है। इस संबंध में राज्यों को एडवाइजरी जारी कर दी गई है।