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पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी काउंसिल में विचार-विमर्श को तैयार सरकार, मुद्दा उठाएं राज्य: सीतारमण

पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से राहत के लिए पेट्रोल व डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग लंबे समय से उठती रही है। हाल ही में वित्त मंत्री ने कहा था कि पेट्रोल व डीजल को जीएसटी की परिधि में लाने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है।

By Pawan JayaswalEdited By: Published: Tue, 23 Mar 2021 08:18 PM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 10:08 AM (IST)
पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी काउंसिल में विचार-विमर्श को तैयार सरकार, मुद्दा उठाएं राज्य: सीतारमण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण P C : ANI

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि जीएसटी काउंसिल की आगामी बैठक में अगर राज्य पेट्रोल व डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का मसला उठाते हैं, तो वे चर्चा के लिए तैयार हैं। उन्हें इसमें कोई दिक्कत नहीं है। मंगलवार को लोकसभा में वित्त विधेयक पर जवाब के दौरान वित्त मंत्री ने कहा कि सिर्फ केंद्र ही नहीं, राज्य भी पेट्रोल व डीजल पर टैक्स वसूलते हैं। इसलिए राज्यों को भी टैक्स घटाना होगा।

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उन्होंने कहा कि केंद्र को अगर 100 रुपये टैक्स से मिलते हैं तो उनमें से 41 रुपये राज्यों को दिए जाते हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि ईधन टैक्स को लेकर इतनी बातें हो रही हैं, राज्य भी इसे देख रहे होंगे। ऐसे में अगर राज्यों की तरफ से जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक में पेट्रोल व डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का मुद्दा उठता है तो वे इस पर विचार-विमर्श के लिए तैयार हैं। जीएसटी काउंसिल की बैठक में इस मुद्दे को लाना राज्यों पर निर्भर करता है।

पेट्रोल व डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से राहत के लिए पेट्रोल व डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग लंबे समय से उठती रही है। हाल ही में वित्त मंत्री ने कहा था कि पेट्रोल व डीजल को जीएसटी की परिधि में लाने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है। पिछले महीने देश के कुछ हिस्सों में पेट्रोल की खुदरा कीमत 100 रुपये प्रति लीटर के पार चली गई थी।

वित्त विधेयक के जवाब के दौरान सीतारमण ने लोकसभा में बताया कि बजट में जो एग्री इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट सेस लगाया गया है, उससे मिलने वाली पूरी राशि राज्यों को दी जाएगी। इससे फार्मयार्ड, मार्केटिंग यार्ड जैसे कृषि संबंधित बुनियादी ढांचों का विकास राज्यों में किया जाएगा।

वित्त मंत्री ने बताया कि बैंक व बीमा क्षेत्र में सरकारी कंपनियां रहेंगी और इस क्षेत्र के सभी सरकारी उपक्रमों का निजीकरण नहीं किया जाएगा। उन्होंने बताया कि भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) के विनिवेश में देश के खुदरा निवेशक हिस्सा लेंगे। इसलिए एलआइसी के विनिवेश का विदेशी निवेश से कोई मतलब नहीं है।

इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की वित्तीय व्यवस्था के लिए डीएफआई के गठन पर उन्होंने सदन को बताया कि नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर के तहत 7,000 परियोजनाएं हैं और इन्हें पूरा करने के लिए संसाधन की जरूरत है। कॉमर्शियल बैंक इतने लंबे समय के लिए इन परियोजनाओं के लिए कर्ज नहीं दे सकते हैं। इसलिए डीएफआइ के निवेशकों को सरकार टैक्स में छूट देना चाहती है।


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