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आजादी के बाद चौथी बार मंदी की हालत में देश, 5 फीसद सिकुड़ सकती है इकोनॉमी: CRISIL

भारत की इकोनॉमी इस समय आजादी के बाद चौथी बार मंदी की स्थिति में जाती दिख रही है। यह अब तक की सबसे भयावह मंदी हो सकती है।

By Manish MishraEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 09:21 AM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 09:40 AM (IST)
आजादी के बाद चौथी बार मंदी की हालत में देश, 5 फीसद सिकुड़ सकती है इकोनॉमी: CRISIL
आजादी के बाद चौथी बार मंदी की हालत में देश, 5 फीसद सिकुड़ सकती है इकोनॉमी: CRISIL

नई दिल्ली, पीटीआइ। कोरोना वायरस के चलते लागू देशव्यापी लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष अभूतपूर्व संकट पैदा कर दिया है। भारत की इकोनॉमी इस समय आजादी के बाद चौथी बार मंदी की स्थिति में जाती दिख रही है। यह अब तक की सबसे भयावह मंदी हो सकती है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (Crisil) का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में इकोनॉमी पांच फीसद की दर से सिकुड़ सकती है। इसका अर्थ है कि विकास दर शून्य से भी पांच फीसद नीचे चली जाएगी।

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क्रिसिल ने अपने अनुमान में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के दौरान जीडीपी (GDP) में 25 फीसद की दर से गिरावट की आशंका जताई है। एजेंसी का अनुमान है कि फिर से वृद्धि की पटरी पर लौटने में तीन वित्त वर्ष का समय लग सकता है। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, आजादी के बाद से भारत ने 1958, 1966 और 1980 में मंदी की सामना किया है। तीनों बार अर्थव्यवस्था में मंदी का कारण खराब मानसून रहा था, जिस कारण से कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ था। 

उस समय देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि की बड़ी हिस्सेदारी थी, इस कारण से देश को मंदी का सामना करना पड़ा था। इस बार स्थिति इसके उलट है। चालू वित्त वर्ष 2020-21 में कोरोना महामारी के कारण मंदी की स्थिति बनी है। इस दौरान बेहतर मानसून के चलते कृषि सेक्टर ही जीडीपी को थोड़ी राहत पहुंचाने की स्थिति में है। 

Crisil की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष की पहली तिमाही सबसे ज्यादा बुरी तरह से प्रभावित होगी। हालांकि शिक्षा, पर्यटन एवं अन्य गैर कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में अगली तिमाहियों में भी खास राहत की उम्मीद नहीं है। इन सेक्टर में बेरोजगारी का भी संकट गहराएगा। रेटिंग एजेंसी ने कोरोना के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों की अर्थव्यवस्था पर भी लंबे समय तक प्रभाव रहने की आशंका जताई है। 

एजेंसी का कहना है कि विभिन्न आर्थिक आंकड़े पहले के अनुमानों से कहीं ज्यादा बदतर हो रहे हैं। औद्यागिक उत्पादन में मार्च में 16 प्रतिशत की गिरावट आई थी। अप्रैल में निर्यात 60.3 प्रतिशत कम रहा। नए टेलीकॉम उपभोक्ताओं की संख्या भी सालभर पहले के मुकाबले 35 प्रतिशत कम रही है। रेलवे की माल ढुलाई में भी 35 प्रतिशत की गिरावट आई है। सख्त लॉकडाउन के चलते अप्रैल सबसे खराब महीना रहेगा।

लगातार बिगड़ रहे हालात

रिपोर्ट में कहा गया कि 28 अप्रैल के अनुमान में क्रिसिल ने चालू वित्त वर्ष के लिए 1.8 फीसद की विकास दर का अनुमान लगाया था। हालांकि तब से हालात लगातार खराब हो रहे हैं। फिलहाल गैर कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में छह फीसद की दर से गिरावट की आशंका है। हालांकि 2.5 फीसद की वृद्धि दर के साथ कृषि सेक्टर इसे थोड़ा संभालेगा।

पैकेज में सुधारों पर जोर 

क्रिसिल ने अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सरकार की ओर से घोषित 20.9 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का भी जिक्र किया। एजेंसी ने कहा कि इसमें कुछ तात्कालिक कदम उठाए गए हैं, लेकिन इसका मुख्य फोकस सुधारों पर रहा है। इनका असर कुछ समय बाद ही दिखेगा। इस पैकेज से जीडीपी पर 1.2 फीसद का ही बोझ पड़ना है। यह पहले के अनुमान से बहुत कम है।

एसबीआइ ने भी मंदी की आशंका जताई

एसबीआइ की इकोरैप रिपोर्ट में चालू वित्त वर्ष में विकास दर शून्य से 6.8 फीसद नीचे रहने का अनुमान जताया गया है। पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में विकास दर अनुमान 1.2 फीसद और पिछले वित्त वर्ष (2019-20) में पूरे साल के लिए अनुमान 4.2 फीसद किया गया है।


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