वित्त वर्ष 2020-21 में सरकार के अनुमान से बेहतर रहेगी विकास दरः एसबीआइ की रिपोर्ट
देश की आर्थिक दशा में तेजी से सुधार हो रहा है और सुधार की गति सरकार व दूसरी एजेंसियों के अनुमानों से भी बेहतर दिख रही है। एसबीआइ की शोध रिपोर्ट बताती है कि चालू वित्त वर्ष (2020-21) में भारत की इकोनॉमी में गिरावट 7% पर सिमट जाएगी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। देश की आर्थिक दशा में तेजी से सुधार हो रहा है और सुधार की गति सरकार व दूसरी एजेंसियों के अनुमानों से भी बेहतर दिख रही है। एसबीआइ की बुधवार को जारी शोध रिपोर्ट बताती है कि चालू वित्त वर्ष (2020-21) में भारत की इकोनॉमी में गिरावट सात फीसद पर सिमट जाएगी। पहले इस एजेंसी ने 7.4 फीसद गिरावट रहने की बात कही थी। जबकि केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) का अनुमान है कि यह गिरावट 7.7 फीसद रहेगी। विकास दर के ताजा अनुमान केंद्र सरकार की तरफ से इस महीने के अंत में जारी किए जाएंगे, तब तस्वीर अधिक साफ होगी।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर में गिरावट लगभग 24 फीसद रही थी। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से मिल रहे संकेतों के आधार पर एसबीआइ ने कहा है कि दो तिमाहियों के बाद अक्टूबर-दिसंबर, 2020 की तिमाही में भारतीय इकोनॉमी की आर्थिक विकास दर 0.3 फीसद रहेगी जबकि जनवरी-मार्च, 2021 की तिमाही में यह और सुधरकर 2.5 फीसद तक पहुंच सकती है।
एसबीआइ की रिपोर्ट इकोरैप के मुताबिक इकोनॉमी के विभिन्न संकेतकों में से 51 फीसद उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन के संकेत दे रहे हैं। जबकि अगले वित्त वर्ष के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर कम से कम 11 फीसद के स्तर पर रहेगी। आरबीआइ ने हाल ही में कहा है कि यह 10.5 फीसद रहेगी। हालांकि रिपोर्ट ने यह माना है कि राजकोषीय घाटे को लेकर हालात में बहुत सुधार की गुंजाइश नहीं दिख रही।
केंद्र सरकार का कहना है कि यह मौजूदा वित्त वर्ष में 9.5 फीसद रहेगी, लेकिन एसबीआइ की रिपोर्ट में यह और अधिक रहने की बात कही गई है। एसबीआइ ने अपने अनुमान में सुधार के लिए सबसे बड़ी वजह आम बजट में असेट्स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एआरसी) और एक असेट्स मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) बनाने की घोषणा को दिया है। यह फैसला देश के बैंकिंग सेक्टर के समक्ष उत्पन्न फंसे कर्ज (एनपीए) की समस्या का काफी हद समाधान निकाल सकता है। इससे देश में कई फंसी परियोजनाओं के आगे बढ़ने का रास्ता साफ होगा और रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे। जर्मनी व मलेशिया समेत कुछ अन्य देशों में इस उपाय से बैंकों की फंसी परिसंपत्ति की समस्या को दूर करने में काफी मदद मिली है।
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