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अगले साल के बाद विकास दर को बनाए रखना चुनौती, फिच ने विकास दर बने रहने पर जताया संदेह

GDP Growth Rate चालू वित्त वर्ष के दौरान देश की इकोनॉमी में 7.5 फीसद से ज्यादा गिरावट के बावजूद अधिकतर एजेंसियों का मानना है कि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश की आर्थिक विकास दर काफी तेज रहेगी।

By Ankit KumarEdited By: Published: Fri, 15 Jan 2021 01:04 PM (IST)Updated: Sat, 16 Jan 2021 07:30 AM (IST)
अगले साल के बाद विकास दर को बनाए रखना चुनौती, फिच ने विकास दर बने रहने पर जताया संदेह
राजस्व संग्रह कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई है।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि अगले वित्त वर्ष में जिस तरह की विकास दर के अनुमान लगाए जा रहे हैं, उसे आगे बरकरार रखने में बड़ी चुनौतियां सामने आ सकती हैं। एजेंसी के मुताबिक विकास दर आने वाले वर्षों में 6.5 फीसद के आसपास सीमित रहेगी। भारत मध्यम अवधि में यानी दो से पांच वित्त वर्षों के दौरान सीमित आर्थिक विकास दर ही हासिल कर सकेगा। कोरोना का असर भारतीय इकोनॉमी पर लंबे समय तक रहेगा और इसकी वजह से मंदी के जो आसार बने हैं, उन्हें धीरे-धीरे नीतिगत कदमों से ही खत्म किया जा सकेगा। फिच का मानना है कि वर्ष 2021-2026 के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर 5.1 फीसद रहेगी। एजेंसी के मुताबिक देश के वित्तीय ढांचे की आधारभूत कमजोरी के चलते विकास दर नीचे रहेगी।

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चालू वित्त वर्ष के दौरान देश की इकोनॉमी में 7.5 फीसद से ज्यादा गिरावट के बावजूद अधिकतर एजेंसियों का मानना है कि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश की आर्थिक विकास दर काफी तेज रहेगी। आरबीआइ से लेकर प्रमुख आर्थिक थिंक टैंक मान रहे हैं कि अगले वित्त वर्ष विकास दर 10 फीसद से ज्यादा रहेगी। लेकिन सवाल है कि यह विकास दर इसके बाद के वर्षों में भी बरकरार रहेगी या नही। फिच ने ही कोरोना महामारी से पहले इसी अवधि में इस वृद्धि दर के औसतन सात फीसद रहने की बात कही थी।

एक अन्य प्रमुख रेटिंग एजेंसी मूडीज ने गुरुवार को एक रिपोर्ट में कहा है कि कोविड-19 की वजह से भारत जैसे सभी विकासशील देशों देशों की निर्भरता उधारी पर काफी ज्यादा रहेगी। भारत के बारे में कहा गया है कि चालू वर्ष में इसका बजटीय घाटा संयुक्त रूप (केंद्र व राज्यों को मिला कर) से 12 फीसद के करीब और अगले वित्त वर्ष में लगभग 10 फीसद रहेगा। यह घाटा उधारी लेने की वजह से ही बना है। सरकार पहले ही इस वर्ष अनुमान से सात लाख करोड़ रुपये ज्यादा उधारी (कुल 12 लाख करोड़ रुपये) ले चुकी है। राजस्व संग्रह कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई है और सरकार को उधारी पर निर्भर रहना पड़ रहा है।


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