उद्योग जगत ने किया लॉकडाउन 2 का स्वागत: कहा, भारी-भरकम वित्तीय पैकेज के बिना नहीं चलेगा काम
उद्योग समूहों का कहना है कि हाल के दिनों में सरकार व आरबीआइ की तरफ से जो पैकेज दिया गया है वह नाकाफी है। इससे वे मौजूदा हालात का मुकाबला नहीं कर सकेंगे।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। छोटे व मझोले उद्योगों से लेकर बड़े बड़े उद्योग समूहों ने लॉकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ाने की पीएम नरेंद्र मोदी की घोषणा का स्वागत किया है। लेकिन इसके साथ ही इन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि उनका संकट इतना गहरा गया है कि अब भारी-भरकम वित्तीय पैकेज के बिना काम नहीं चलेगा। हाल के दिनों में सरकार व आरबीआइ की तरफ से जो पैकेज दिया गया है वह नाकाफी है। इससे वे मौजूदा हालात का मुकाबला नहीं कर सकेंगे।
उद्योग चैंबर फिक्की (FICCI) ने लॉकडाउन को आगे बढ़ाने को जरूरी मानते हुए कहा कि अभी इकोनॉमी को रोजाना करीब 40 हजार करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है जिसकी भरपाई के बारे में भी सोचना होगा। सीआइआइ (CII) का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन से जिस तरह से छोटे व मझोले उद्योगों का काम बंद हुआ है उससे उबारने के लिए उन्हें अतिरिक्त पैकेज देना ही पड़ेगा।
लॉकडाउन की अवधि बढ़ने से ऑटोमाबोइल उद्योग भी खासा परेशान है। ऑटो कंपनियां भी इस फैसले को लेकर सरकार के साथ हैं। लेकिन उन्हें भी इस बात का एहसास हो गया है कि फिलहाल उनकी परेशानी दूर नहीं होगी। इन्होंने भी सरकार से अतिरिक्त वित्तीय पैकेज का आग्रह किया है। केंद्र सरकार के साथ पिछले दो-तीन दिनों के भीतर ऑटो कंपनियों और रियल एस्टेट सेक्टर की बैठक में बैंकों की तरफ से सावधि कर्ज के भुगतान पर तीन महीने की स्थगन अवधि को बढ़ाकर छह महीने करने का प्रस्ताव रखा गया है। बैंक भी इसके लिए तैयार हैं। उन्हें लग रहा है कि जिस तरह से औद्योगिक उत्पादन बंद है, उसमें तीन महीने बाद परिस्थितियों में ऐसा कोई चमत्कारिक बदलाव नहीं होने वाला है कि लोग भुगतान करने लगेंगे। इस बारे में फैसला आरबीआइ और वित्त मंत्रालय को करना होगा।
ऑटोमोबाइल डीलर एसोसिएशन (FADA) के आशीष हर्षराज काले का कहना है कि पीएम मोदी ने कोविड-19 के खतरे को भांपकर लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने का सही फैसला किया है। लेकिन लॉकडाउन समाप्त होने के बाद बड़े वित्तीय पैकेज अत्यावश्यक हो गया है। फिक्की ने कहा है कि 40 दिनों का लॉकडाउन कोविड-19 के खतरे को काफी हद तक सीमित कर देगा। लेकिन इसकी बढ़ती हुई लागत पर भी हमें ध्यान देना होगा। पिछले 21 दिनों में देश को 7-8 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है। चार करोड़ नौकरियों पर सवाल खड़े हो गए हैं। ऐसे में तत्काल बड़े पैकेज की भी बहुत जरूरत है। सीमित दायरे में औद्योगिक गतिविधियां को भी शुरू करना जरूरी है क्योंकि आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी प्रभावित होने लगी है। सीआइआइ ने उम्मीद जताई है कि सरकार को अब जो वक्त मिलेगा उसमें वह ठप पड़े अर्थव्यवस्था के पहिए को चलाने की पक्की रणनीति बना लेगी।