इकोनॉमी की राह में रोड़ा बन रहा किसान आंदोलन, CII और Assocham ने हालात को बताया चिंताजनक
सीआइआइ के उत्तरी क्षेत्र के चेयरमैन निखिल चौहान का कहना है कि इस आंदोलन का जल्द से जल्द समाधान निकलना जरूरी है। यह सिर्फ आर्थिक प्रगति को ही प्रभावित नहीं कर रहा है बल्कि बड़े व छोटे सभी तरह के उद्योगों की सप्लाई चेन पर असर दिखने लगा है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कोरोना प्रभाव से देश की इकोनॉमी को उबारने की राह में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जारी किसान आंदोलन ने बड़ा अवरोध पैदा कर दिया है। इस आंदोलन की वजह से कच्चे माल और तैयार उत्पादों की ढुलाई में भारी परेशानी होने लगी है। उद्योग जगत का कहना है कि सामानों की ढुलाई की लागत 10 फीसद तक बढ़ गई है। आने वाले दिनों में कई उद्योगों के लिए कच्चे माल की दिक्कत को देखते हुए देश के दो प्रमुख उद्योग संगठनों सीआइआइ और एसोचैम ने हालात को चिंताजनक बताया है। संगठनों के अनुसार रोजाना 3,000-3,500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। उद्योग चैंबरों ने सभी पक्षकारों से आग्रह किया है कि आंदोलन को जल्द से जल्द खत्म किया जाए, नहीं तो इकोनॉमी को वापस पटरी पर लाने की कोशिशों को झटका लग सकता है।
सीआइआइ के उत्तरी क्षेत्र के चेयरमैन निखिल चौहान का कहना है कि इस आंदोलन का जल्द से जल्द समाधान निकलना जरूरी है। यह सिर्फ आर्थिक प्रगति को ही प्रभावित नहीं कर रहा है, बल्कि बड़े व छोटे सभी तरह के उद्योगों की सप्लाई चेन पर असर दिखने लगा है। सीआइआइ ने कहा है कि किसान आंदोलन की वजह से दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के कई क्षेत्रों में आवागमन प्रभावित हो रहा है। देश के दूसरे हिस्सों से पंजाब, हरियाणा व दिल्ली-एनसीआर में सामान पहुंचाने में औसत से 50 प्रतिशत ज्यादा समय लगने लगा है। हरियाणा, उत्तराखंड व पंजाब के वेयरहाउस से उत्पादों को दिल्ली-एनसीआर में पहुंचाने में बाधा आ रही है। इससे लॉजिस्टिक्स की लागत में 10 प्रतिशत तक का इजाफा हो रहा है।
सीआइआइ ने कृषि उत्पादों की मार्केटिंग में आ रही दिक्कतों के बारे में भी बताया है कि इससे कई राज्यों के किसानों को नुकसान होने लगा है। इसका दूसरा असर पर्यटन पर भी दिखाई दे रहा है। कोरोना की वजह से अप्रैल, 2020 से पर्यटन सेक्टर ठप पड़ा था। अब इसमें कुछ गतिविधियां शुरू हुई, लेकिन किसान आंदोलन के चलते इसमें फिर से बाधा आ रही है।
किसानों आंदोलन से खाद्य प्रसंस्करण, कॉटन, टैक्सटाइल, ऑटोमोबाइल्स, फार्म मशीनरी जैसे उद्योग खेती से जुड़े उद्योग भी काफी प्रभावित होने लगे हैं। एसोचैम के प्रेसिडेंट डॉ. निरंजन हीरानंदानी का कहना है कि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर की संयुक्त इकोनॉमी का आकार लगभग 18 लाख करोड़ रुपये का है। अगर किसान आंदोलन का जल्द हल नहीं निकला तो इन सभी राज्यों की जीडीपी पर इसका सीधा असर दिखेगा। हम सभी को मौजूदा विवाद को मिल-जुलकर सुलझाने के लिए कदम उठाने चाहिए। आंदोलन और कृषि क्षेत्र में सुधार की राह में रोड़े अटकाने से सभी का नुकसान होगा। इससे कृषि सेक्टर में नए निवेश लाने या तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने में परेशानी होगी। उन्होंने उद्योग जगत की तरफ से किसानों को आश्वस्त भी किया है कि उनके हितों के खिलाफ कदम नहीं उठाया जाएगा।