Move to Jagran APP

मार्च-अप्रैल तक खाद्य तेल रहेंगे महंगे, आयात शुल्क में कटौती से खाद्य तेलों की महंगाई थामने में मिलेगी मदद

घरेलू मांग और विदेशों में खाद्य तेलों के उत्पादन में कमी आने से जिंस बाजार में महंगाई बढ़ गई है। माना जा रहा है कि रबी सीजन की तिलहनी फसलों के बाजार में आने तक खाद्य तेलों की यह महंगाई बरकरार रहेगी।

By Ankit KumarEdited By: Published: Sun, 22 Nov 2020 08:09 PM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 12:36 PM (IST)
मार्च-अप्रैल तक खाद्य तेल रहेंगे महंगे, आयात शुल्क में कटौती से खाद्य तेलों की महंगाई थामने में मिलेगी मदद
खाद्य तेलों की खपत का बड़ा हिस्सा आयात पर निर्भर है।

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। घरेलू मांग और विदेशों में खाद्य तेलों के उत्पादन में कमी आने से जिंस बाजार में महंगाई बढ़ गई है। माना जा रहा है कि रबी सीजन की तिलहनी फसलों के बाजार में आने तक खाद्य तेलों की यह महंगाई बरकरार रहेगी। खाद्य तेलों की खपत का बड़ा हिस्सा आयात पर निर्भर है। इसलिए खाद्य तेलों की महंगाई को रोकने का एक मात्र विकल्प आयात शुल्क में कटौती करना ही बचा है। सरकार इस पर गंभीरता से विचार कर रही है। लेकिन इससे खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की मंशा को धक्का लगेगा।

loksabha election banner

घरेलू पैदावार को प्रोत्साहित करने के से दालों की आयात निर्भरता भले खत्म हो गई हो, लेकिन खाद्य तेलों का मामला थोड़ा गंभीर है। खाद्य तेलों की घरेलू खपत का लगभग 65 फीसद से अधिक आयात से पूरा होता है। सरकार ने आत्मनिर्भरता का राग अलापते हुए जहां तिलहनी फसलों के समर्थन मूल्य में अच्छी खासी वृद्धि कर दी वहीं सीमा शुल्क बढ़ाकर आयात को हतोत्साहित करने का प्रयास किया है। लेकिन इसका विपरीत जिंस बाजार में देखने को मिला है। पिछले सालभर के भीतर खाद्य तेलों के मूल्य में तेजी का रुख बनने लगा है।

देश में सर्वाधिक पाम आयल का आयात मलेशिया और इंडोनेशिया से किया जाता है। कोरोनावायरस के वैश्विक प्रकोप से पहली छमाही में ही खाद्य तेल उत्पादन में इन देशों में पाम आयल के निर्यात में 12 फीसद तक की कमी दर्ज की गई। जबकि वैश्विक स्तर पर खाद्य तेलों की मांग में वृद्धि हुई है। लिहाजा पाम आयल के मूल्य बढ़ा दिए गए हैं। दूसरी ओर भारत में क्रूड पाम आयल पर जहां 37.5 फीसद का आयात शुल्क है तो रिफाइंड पाम आयल पर 45 फीसद। इसी तरह क्रूड सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर 35 फीसद शुल्क लगा है।

तिलहनी फसलों को प्रोत्साहन देने के लिए पिछले साल सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4425 रूपए प्रति क्ंिवटल था जिसे चालू सीजन में 4625 रूपए प्रति क्ंिवटल कर दिया गया है। इसका असर यह हुआ कि महंगे आयातित तेल के साथ घरेलू खाद्य तेल भी महंगा हो गया है। एक क्विंटल सरसों से औसतन 30 से 32 किलो तेल निकलता है जिससे एक किलो सरसों तेल का मूल्य न्यूनतम 139 से 140 रूपए पड़ेगा। बाजार में इसका मूल्य 150 से 160 रुपए प्रति किलो बिक रहा है, जिसे शुद्ध नहीं कहा जा सकता है।

शुद्ध के नाम पर बिक रहा मिश्रित सरसों तेल

बाजार में बिक रहे सरसों के तेल में अधिकतम 20 फीसद तक दूसरे तेलों के मिश्रण की छूट का प्रावधान है। यह प्रावधान स्वास्थ्य कारणों से किया गया था। इसका लाभ उठाते हुए खाद्य तेल मिलें सरसों तेल में सस्ता तेल 50 फीसद से भी ज्यादा मिलाकर बेच रही हैं। हैरानी की बात यह है कि 'शुद्ध सरसों तेल' के नाम पर बेचे जा रहे डिब्बों के ऊपर अन्य तेलों के मिश्रण का कोई विवरण नहीं दिया जाता है। किसानों को सरसों खेती को बढ़ावा देने और उपभोक्ताओं को शुद्ध सरसों उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने एक अक्तूबर से इस तरह के प्रावधान पर प्रतिबंध लगाने के लिए आदेश जारी कर दिया। लेकिन खाद्य तेल उत्पादक मिलों व व्यापारियों ने पुराना स्टॉक बेचने के लिए अदालत से स्थगनादेश प्राप्त कर लिया। अदालत में अगले महीने इस मामले पर सुनवाई है, जिसमें स्थगनादेश के हट जाने की संभावना है। माना जा रहा है कि इससे शुद्ध सरसों के तेल की उपलब्धता तो बढ़ेगी लेकिन इसके साथ मूल्य भी बढ़ जाएंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.