ये क्या अभी तक नहीं बुझ पाई कोयले की आग
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। देश के बिजली संयंत्रों को पर्याप्त व उचित दर पर कोयला देने की सरकार की एक और कोशिश असफल होती दिख रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय [पीएमओ] के हस्तक्षेप और केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठकें भी कोयला मंत्रालय व बिजली मंत्रालय के बीच की रार को खत्म नहीं कर पाई हैं। अब प्रधानमंत्री को इसमें सीधे हस्तक्षेप करना पड़ सक
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। देश के बिजली संयंत्रों को पर्याप्त व उचित दर पर कोयला देने की सरकार की एक और कोशिश असफल होती दिख रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय [पीएमओ] के हस्तक्षेप और केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठकें भी कोयला मंत्रालय व बिजली मंत्रालय के बीच की रार को खत्म नहीं कर पाई हैं। अब प्रधानमंत्री को इसमें सीधे हस्तक्षेप करना पड़ सकता है।
सूत्रों के मुताबिक आयातित और घरेलू कोयले को मिला कर उनकी कीमत तय करने पर दोनों मंत्रालयों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई है। पिछले हफ्ते आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति [सीसीईए] की बैठक में इस बारे में एक प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी गई थी। दोनों मंत्रालयों को एक महीने के भीतर नए फार्मूले के साथ आने को कहा गया था, लेकिन दोनों मंत्रालयों के बीच मतभेद बहुत ज्यादा है।
बिजली मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अब बेहतर होगा कि प्रधानमंत्री सीधे इन मामलों में हस्तक्षेप करें। यही वजह है कि बिजली मंत्रालय ज्यादा इंतजार करने के बजाय दो दिनों बाद होने वाली सीसीईए की बैठक में कोयला कीमत तय करने के मामले को फिर से पेश करने की तैयारी की है। आयातित कोयले का मूल्य तय करने का जो फार्मूला कोयला मंत्रालय बता रहा है उसको लेकर बिजली मंत्रालय को सख्त एतराज है। इस फार्मूले के तहत कोयला आयात करने की लागत पूरी तरह से बिजली कंपनियों पर डाली जानी है। इस प्रस्ताव के विरोध में कई राज्य सरकारें भी हैं, जिनका कहना है कि इससे उन्हें फिर से बिजली को महंगा करना होगा।
केंद्र के दो मंत्रालयों के बीच इस बारे में सहमति नहीं बन पाने की वजह से कई बिजली परियोजनाओं का भविष्य लटका हुआ है। जब तक कोयले की कीमत पर फैसला नहीं होगा, बिजली संयंत्रों को कोयला आपूर्ति करने का मामला नहीं सुलझेगा। इस कीमत के आधार पर ही कोल इंडिया बिजली संयंत्रों के साथ ईधन आपूर्ति समझौता [एफएसए] करेगा। इसके तहत हर हालत में कोल इंडिया को 80 फीसद कोयला बिजली संयंत्रों को देना होगा। इस वजह से बिजली क्षेत्र की अनिश्चितता बढ़ती जा रही है। इससे आने वाले गर्मी के मौसम में बिजली की दिक्कत और बढ़ सकती है।