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MSME के लिए डिजिटल कारोबार की राह आसान नहीं, अभी सिर्फ 2.5 फीसद एमएसएमई करते हैं डिजिटल ट्रांजेक्शन

सरकार आगामी एक अक्टूबर से ई-कॉमर्स के माध्यम से बिक्री पर एक फीसद टीडीएस लगा सकती है। यह टीडीएस कुल बिक्री पर लगेगा।

By NiteshEdited By: Published: Thu, 23 Jul 2020 08:28 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jul 2020 07:55 AM (IST)
MSME के लिए डिजिटल कारोबार की राह आसान नहीं, अभी सिर्फ 2.5 फीसद एमएसएमई करते हैं डिजिटल ट्रांजेक्शन
MSME के लिए डिजिटल कारोबार की राह आसान नहीं, अभी सिर्फ 2.5 फीसद एमएसएमई करते हैं डिजिटल ट्रांजेक्शन

राजीव कुमार, नई दिल्ली। डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने की बात जरूर हो रही है लेकिन सच्चाई इससे जुदा है। चाहे अनचाहे डिजिटल ट्रांजेक्शन की राह में अवरोध ही ज्यादा हैं। यही कारण है कि देश के छह करोड़ एमएसएमई में से सिर्फ 15 लाख डिजिटल कारोबार करते हैं। सरकार आगामी एक अक्टूबर से ई-कॉमर्स के माध्यम से बिक्री पर एक फीसद टीडीएस लगा सकती है। यह टीडीएस कुल बिक्री पर लगेगा। 

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ई-कॉमर्स पर जीएसटी के तहत पहले ही एक फीसद टीसीएस कटता है। फेडरेशन ऑफ इंडियन स्माल मीडियम इंटरप्राइजेज (फिस्मे) के महासचिव अनिल भारद्वाज के मुताबिक कोविड के दौरान एमएसएमई के डिजिटल कारोबार को बढ़ाने का अच्छा अवसर था, लेकिन टीडीएस और टीसीएस की वजह से एमएसएमई के वर्किग कैपिटल पर विपरीत असर होगा। उन्होंने बताया कि डिजिटल रूप से खिलौना, किताब व इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बेचने वाले कारोबारी 1-2 फीसद मार्जिन पर काम करते हैं। इस प्रकार के दोतरफा टैक्स से उन्हें वर्किग कैपिटल की दिक्कत हो सकती है। 

डिजिटल कारोबार के लिए जीएसटी नंबर की अनिवार्यता की वजह से अधिकतर एमएसएमई ई-कॉमर्स में नहीं आना चाहते हैं। सालाना 1.5 करोड़ तक का कारोबार करने वाले एमएसएमई जीएसटी के कंपोजिट स्कीम को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि उन्हें सिर्फ अपने सालाना कारोबार का एक फीसद टैक्स के रूप में देना होता है। जीएसटी नंबर लेने एवं रिटर्न भरने जैसे काम से वे मुक्त होते हैं। सिर्फ 2.5 फीसद एमएसएमई करते हैं डिजिटल ट्रांजेक्शननीति आयोग के मुताबिक देश के 6 करोड़ एमएसएमई में सिर्फ 15 लाख एमएसएमई ही डिजिटल ट्रांजेक्शन करते हैं। 

विशेषज्ञों के मुताबिक एमएसएमई के बीच डिजिटल ट्रांजेक्शन को लेकर उदासीनता की मुख्य वजह मर्चेट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) है। यूनिफायड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) और रुपे को छोड़ डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड व अन्य किसी भी प्रकार से ग्राहकों से डिजिटल भुगतान स्वीकार करने पर एमएसएमई को 1-3 फीसद तक का शुल्क देना पड़ता है। इससे उनकी लागत बढ़ जाती है। चैंबर ऑफ इंडियन माइक्रो, स्मॉल, मीडियम इंटरप्राइजेज के प्रेसिडेंट मुकेश मोहन गुप्ता के मुताबिक सभी पेमेंट गेटवे डिजिटल भुगतान का चार्ज लेते हैं। 

पेटीएम में भी एक सीमा के बाद उन्हें चार्ज देना पड़ता है। डिजिटल लेनदेन में फ्राड होने की भी आशंका रहती है और सबसे बड़ी बात है कि पूरी तरह से नंबर एक में काम नहीं करने की वजह से भी एमएसएमई डिजिटल ट्रांजेक्शन से बचना चाहते हैं।

डिजिटल ट्रांजेक्शन पर टैक्स इंसेंटिव की सिफारिशएमएसएमई विशेषज्ञों के मुताबिक नोटबंदी के बाद ही डिजिटल ट्रांजेक्शन को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की तरफ से टैक्स इंसेंटिव की बात कही गई थी। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। हालांकि तीन दिन पहले आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भुगतान लेने वालों को टैक्स में इंसेंटिव देने की सिफारिश की है। आरबीआई ने डिजिटल ट्रांजेक्शन को प्रोत्साहित करने के लिए क्यूआर कोड पेमेंट सिस्टम को लागू करने की सिफारिश की है।


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