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आर्थिक पैकेज के साथ सुधारों की फेहरिस्त, एक तीर से दो निशाने

एपीएमसी या मंडी एक्ट के नाम से भी मशहूर यह प्रावधान किसानों के लिए मुश्किलों का सबब बना हुआ है। इसमें संशोधन अथवा इसे हटाने को लेकर राज्यों का हित आड़े आता रहा है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Wed, 20 May 2020 12:44 PM (IST)Updated: Wed, 20 May 2020 05:25 PM (IST)
आर्थिक पैकेज के साथ सुधारों की फेहरिस्त, एक तीर से दो निशाने
आर्थिक पैकेज के साथ सुधारों की फेहरिस्त, एक तीर से दो निशाने

नई दिल्ली, जेएनएन। कोरोना पैकेज के वक्त सुधारों की लंबी फेहरिस्त देखकर यह सवाल उठ सकता है कि आखिर इसी वक्त क्यूं? आत्मनिर्भर भारत बनाने की कवायद एक बात है। लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि दरअसल सरकार ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। अपने पहले कार्यकाल में जीएसटी पर भारी विरोध झेल चुके प्रधानमंत्री के लिए चुनौती का काल अवसर भी लेकर आया। जितने भी सुधार किए गए हैं उसके प्रयास लंबे अरसे से होते रहे हैं, लेकिन विवादों के मकड़जाल में ऐसा घिरा कि कभी जमीन पर नहीं उतर पाया। आगे बढ़ने की चाह और होड़ में यह तय माना जा रहा है कि फिलहाल तो राजनीतिक स्तर पर इसका विरोध नहीं होगा। वहीं राज्यों में भी सुधार की शुरुआत होगी। दरअसल, ये सुधार ही आत्मनिर्भर भारत की नींव होंगे।

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आवश्यक वस्तु अधिनियम- 1955

इस कानून के पुराने पड़ चुके प्रावधानों को हटाने को लेकर पिछली सरकारों ने कभी प्रयास नहीं किया। खाद्यान्न के मामले में देश आत्मनिर्भर होने के साथ अब निर्यात भी करने लगा है। फिर भी इसकी प्रतिबंधित जिंसों की सूची में चावल, गेहूं, दलहन और तिलहन के साथ आलू व प्याज बनी हुई है। इसके चलते इन जिंसों में खाद्य प्रोसेसिंग सेक्टर, निर्यातकों और बड़े उपभोक्ताओं को जहां मुश्किलें पेश आती थीं, जिसका सीधा असर किसानों के हितों पर पड़ता है। सरकार ने इन जिंसों को बाहर करने का फैसला करके बड़े सुधार की दिशा में कदम बढ़ाया है।

एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी एक्ट

एपीएमसी या मंडी एक्ट के नाम से भी मशहूर यह प्रावधान किसानों के लिए मुश्किलों का सबब बना हुआ है। इसमें संशोधन अथवा इसे हटाने को लेकर राज्यों का हित आड़े आता रहा है। आर्थिक हितों के साथ राजनीतिक वजहें भी प्रमुख हैं। स्थानीय कमेटियों के गठन में राजनीतिक दलों के हित प्रभावित होते हैं। कृषि उपज के कारोबार में बिचौलियों का एकाधिकार बना हुआ है। वर्ष 1999 में पहली बार तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इसमें संशोधन के लिए मॉडल एपीएमपी एक्ट बनाकर राज्यों को भेजा, लेकिन राज्यों ने कोई उत्साह नहीं दिखाया। मौजूदा सरकार ने भी वर्ष 2017 में इसे पुन: संशोधित कर एक मॉडल एक्ट राज्यों को भेजा

है, जिसमें राज्यों की ओर से कोई खास रुचि नहीं दिखाई गई। लिहाजा सरकार को अब केंद्रीय एपीएमसी एक्ट बनाने की घोषणा करनी पड़ी है।  

कृषि मूल्य उपज और गुणवत्ता आश्वासन

कृषि सुधार के लिए इस तरह के कानून की अवधारणा तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान की गई थी। लेकिन लागू करने का दायित्व राज्यों पर होने की वजह से यह अभी तक लागू नहीं हो सका है। इसमें कांट्रैक्ट फार्मिंग सबसे अहम प्रावधान है। इसके लागू हो जाने के बाद उन किसानों को फायदा होगा, जो मांग आधारिक खेती पूर्व निर्धारित मूल्य पर करना चाहते हैं। इससे खेती में जोखिम कम हो जाएगा।

कोयला खदानों के इस्तेमाल की छूट

कोयला खदानों का आवंटन भारतीय राजनीति में एक संवेदनशील मामला है। इस चक्कर में यूपीए-दो को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। एक तरफ देश में कोयले का भरपूर भंडार दूसरी तरफ इसका बढ़ता आयात। निजी कंपनियों को इसका इस्तेमाल करने में पूरी आजादी देने का दो टूक फैसला लेने में तमाम अड़चनें। कोविड-19 ने जो हालात बनाये उसने इन अड़चनों को दूर कर दिया। अब कोयला खदानों को कमर्शियल माइनिंग के लिए देने का फैसला हो चुका है, यानी जो कंपनी खदान लेगी उसे इसका इस्तेमाल करने की पूरी छूट होगी। कोयला उत्पादन बढ़ेगा, आयात कम होने से विदेशी मुद्रा बचेगी।

 

टैरिफ पॉलिसी को मंजूरी

चुनावी मौसम में बिजली पर राजनीति कोई नई बात नहीं। अब जबकि कई राज्यों के चुनाव में मुफ्त बिजली एक बड़ा नारा बन कर उभरी है, तब मोदी सरकार ने कोविड-19 के काल में जो सुधार किये हैं उसमें इससे जुड़ा फैसला भी है। इसका बिजली उद्योग के साथ ही श्रमिक संगठनों व राजनीतिक दलों की तरफ से भी विरोध हो रहा था। नई टैरिफ पॉलिसी चौबीसों घंटे बिजली देगी लेकिन यह बिजली पर राजनीति को हमेशा के लिए रोक देगी। 

श्रम सुधारों को आगे बढ़ाया

जब से देश में आर्थिक सुधार लागू हुए हैं तभी से श्रम सुधार हर सरकार के लिए एक चुनौती बनी हुई है। कई समितियों और कई बार कैबिनेट नोट तैयार करने के बावजूद इस पर फैसला नहीं हो सका। मोदी सरकार ने भी पहले कार्यकाल में दम दिखाया लेकिन जमीन तौर पर फैसला अब हो पाया है। जो संकेत दिए गए हैं उसके मुताबिक मौजूदा श्रम कानून का मिजाज पूरी तरह से बदला होगा।  

बेड़ियों से मुक्त कृषि और किसान 

किसानों को लेकर गंभीर प्रयास भी हुए हैं और इतिहास में राजनीतिक ताने-बाने का आधार भी किसान रहा है। लेकिन एक बार कृषि सुधारों की राह तैयार हो गई तो यह कहा जा सकता है अब से पहले किसान कभी इतने मुक्त नहीं रहे। मनरेगा के तहत कुल एक लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसमें बजटीय प्रावधान 61 हजार करोड़ के अतिरिक्त 40 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। जल संसाधन को मनरेगा की कार्यसूची में शामिल किया गया। कृषि क्षेत्र के लिए आठ सूत्रीय घोषणा की गई है, जिसमें कृषि क्षेत्र के ढांचागत विकास, पशुपालन, डेयरी, मत्स्य, सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण, जड़ी-बूटी व मधुमक्खी पालन और आपरेशन ग्रीन जैसे क्षेत्रों पर जोर दिया गया है। 

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आजादी के बाद पहली बार स्वास्थ्य प्राथमिकता में

सरकार की प्राथमिकताओं में स्वास्थ्य भी शुमार है। पिछले साल सरकार ने जीडीपी का 1.5 फीसद स्वास्थ्य पर खर्च किया था, जिसे इस साल बढ़ाकर 1.6 फीसद किया गया। सरकार का लक्ष्य इसे 2025 तक 2.5 फीसद तक ले जाने का था। माना जा रहा है कि इस लक्ष्य को 2023 तक पूरा करने की कोशिश होगी।

रक्षा उत्पादन को मिलेगा नया आयाम

चीन के मुकाबले भारत को विदेशी निवेश का बड़ा बाजार बनाने की कवायद सिरे चढ़ने लगी है। कुछ राज्यों में जहां श्रम सुधार की शुरूआत हुई है वहीं रक्षा में 74 फीसद विदेशी निवेश ने दुनिया की बड़ी-बड़ी रक्षा कंपनियों के लिए भारत को आकर्षक बना दिया है। भविष्य में राफेल से लेकर सुखोई जैसे लड़ाकू जेट भी बनने का रास्ता खुल गया है। भारत का रक्षा आयात घटेगा जिससे विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी। रक्षा और सैन्य जरूरतों के लिए विदेशों पर निर्भरता खत्म होगी। 


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