जीएसटी की अगली बैठक में आम लोगों को राहत संभव
जीएसटी की 10 नवंबर को होने वाली बैठक में आम लोगों को राहत दी जा सकती है
नई दिल्ली (जेएनएन)। देश में गरमाए चुनावी माहौल के बीच विपक्षी दलों के जीएसटी पर तंज को सरकार और भाजपा भले ही नकार रही हो, लेकिन राजनीतिक तौर पर इससे निपटने की सोच भी तेज हो गई है। राजस्व सचिव हसमुख अढिया के उस बयान को भी इसी दिशा में देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने जीएसटी संरचना में बदलाव की बात कही है। राजनीतिक स्तर पर भी इसकी धमक सुनी जा सकती है। संभावना जताई जा रही है कि बहुत जल्द कुछ ऐसे बदलाव दिखेंगे जो आम जनता के साथ-साथ व्यापारी वर्ग को यह अहसास दिला पाएं कि जीएसटी देश के साथ साथ उनके भी हित में है। ऐसे में माना जा रहा है कि जीएसटी की 10 नवंबर को होने वाली बैठक में आम लोगों को राहत देने के लिए कुछ वस्तुओं और रेस्त्रं सेवाओं पर जीएसटी की दरें कम भी की जा सकती हैं।
हालांकि मौजूदा परिस्थिति में जीएसटी की सिंगल या डबल रेट करना कठिन होगा। वित्त मंत्रलय के सूत्र बताते हैं कि जीएसटी की वर्तमान दरें देश की सामाजिक और आर्थिक हकीकत को ध्यान में रखते हुए तय की गयी हैं। अगर जीएसटी की सिंगल रेट 18 प्रतिशत या डबल रेट 18 और 12 प्रतिशत की जाती है तो इससे कमजोर आर्थिक वर्ग के लोगों पर कर का बोझ बढ़ सकता है वहीं धनाढ्य वर्ग पर टैक्स का बोझ कुछ हल्का हो सकता है।
जीएसटी की दरों से लेकर उसके अनुपालन में व्यापारियों को आ रही दिक्कतों को भी सरकार समझ रही है। जीएसटी पर सरकारी अमला भी इस बात की संभावनाएं तलाश रहा है कि रिटर्न दाखिल करने से लेकर इनपुट क्रेडिट का रिफंड लेने की प्रक्रिया को कैसे आसान बनाया जाए।
असल में काउंसिल की पिछली बैठक में दरों के संबंध में अप्रोच पेपर को मंजूर किया गया है जिसमें बताया भी गया है कि आने वाले समय में जीएसटी की दरें तय करने का आधार क्या होना चाहिए। इसमें दलील दी गयी थी कि अब सिंगल या डबल रेट को ध्यान में रखकर ही दरें बदलनी चाहिए। ऐसे में यह चर्चा शुरू हो गयी कि सिंगल दर हो सकती है। जीएसटी की सिंगल दर होने के पीछे सबसे बड़ी दलील यह दी जाती है कि इससे जीएसटी का अनुपालन आसान हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय अनुभव भी यही बताते हैं कि जिन देशों में जीएसटी है वहां इसकी दर भी एक है। विपक्षी पार्टियां भी जीएसटी की एक दर रखने की मांग करती रही हैं। सिंगल रेट की वकालत करने वालों का कहना है कि इससे छोटे व्यापारी जैसे किराना स्टोर जैसे व्यवसायियों को बिलिंग करने और रिटर्न फाइल करने में आसानी रहेगी। दूसरी दलील यह भी है कि सिंगल रेट अगर 18 प्रतिशत रखी जाती है तो यह रेवेन्यू न्यूट्रल भी होगी। इसका अर्थ है कि इससे केंद्र या राज्य के राजस्व पर भी कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली समिति ने भी यह सिफारिश की थी।