विलफुल डिफॉल्टर्स के खिलाफ वसूली प्रक्रिया जारी, कर्ज माफी और बट्टा खाता में ये है फर्क
आरबीआइ के विलफुल डिफॉल्टर्स की जिस सूची पर राजनीति तेज हो गई है उनमें से ज्यादातर मामलों में विभिन्न एजेंसियां पहले से कार्रवाई कर रही हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। आरबीआइ के विलफुल डिफॉल्टर्स की जिस सूची पर राजनीति तेज हो गई है, उनमें से ज्यादातर मामलों में विभिन्न एजेंसियां पहले से कार्रवाई कर रही हैं। नीरव मोदी और मेहुल चोकसी तथा जतिन मेहता जैसे मामलों में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी और केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआइ समेत कई अन्य एजेंसियों द्वारा प्रत्यर्पण से लेकर रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने तक की कार्रवाई हो चुकी है और रिकवरी के लिए उनके खिलाफ अन्य कानूनी कार्रवाई की जा रही है।
आरटीआइ कार्यकर्ता साकेत गोखले द्वारा मांगी जानकारी में आरबीआइ ने जिन 50 विलफुल डिफॉल्टर्स के नाम पिछले दिनों बताए हैं, उनमें से अधिकतर के खिलाफ वसूली प्रक्रिया जारी है। दिलचस्प यह भी है कि विपक्ष की तरफ से लोन राइट ऑफ करने यानी बट्टा खाते में डालने को कर्ज माफ करने की तरह पेश किया जा रहा है, जबकि कारोबार की भाषा में दोनों बिल्कुल अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं।
वर्ष 2016 में सरकार द्वारा इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड यानी आइबीसी को क्रियान्वयन में लाने का मकसद यही था कि कर्जदारों द्वारा कर्ज नहीं चुका पाने की स्थिति का जल्द से जल्द पता लग जाए और उनके खिलाफ वसूली की कानूनी प्रक्रिया शुरू की जाए।
कर्ज माफी और राइट ऑफ में ये है अंतर
कर्ज माफी: कर्ज माफी वह प्रक्रिया है जिसके तहत सरकार या बैंक कर्जदार की वित्तीय स्थिति का आकलन करने और यह सुनिश्चित करने के बाद कि कर्जदार ने मजबूरी में कर्ज नहीं चुकाया या नहीं चुका सकता, उसके कर्ज को माफ कर देते हैं। इसका मतलब यह है कि उसकी देनदारी खत्म मान ली जाती है, उससे वसूली प्रक्रिया रोक दी जाती है और उसकी भरपाई अधिकतर मामलों में सरकार करती है। भूकंप, बाढ़ या अन्य प्राकृतिक आपदाओं समेत किसानों के समक्ष पेश होने वाली मुसीबतों में सरकार अक्सर कर्जदारों के किसी वर्ग का कर्ज माफ करती है। कई बार बिल्कुल समय पर कर्ज चुकाने वालों द्वारा बहुत सी किस्तें चुका दिए जाने के बाद बैंक आभार के तौर पर उनकी कुछ किस्तें माफ कर देते हैं।
राइट ऑफ या बट्टा खाता: किसी कर्ज को बट्टा खाते में डालने का मतलब यह है कि बैंक को उस कर्ज का अब कुछ भी मूल्य मिलने की उम्मीद नहीं है और वसूली के लिए कानूनी प्रक्रिया की मदद लेनी पड़ेगी। इस प्रक्रिया में उसे अक्सर कुछ न कुछ रकम वापस मिल जाती है, जबकि कई मामलों में उसे पूरी रकम से हाथ धोना पड़ता है। बट्टा खाते में उन कर्ज को डाला जाता है जिनके चुकाने का सामर्थ्य तो कर्जदार में है, लेकिन वह नहीं चुकाने के तरह-तरह के बहाने बनाता और नहीं चुकाता है। विल्फुल डिफॉल्टर्स के कर्ज माफ नहीं किए जाते, बल्कि उन्हें बट्टा खाते में डाल वसूली प्रक्रिया जारी रखी जाती है।