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मोबाइल फोन के क्षेत्र में दबदबे के बाद अब भारतीय ऑटो सेक्‍टर में भी बढ़ रही है चीन की धमक

स्मार्टफोन से ऑटोमोबाइल/इलेक्टिक वाहन और डिजिटल पेमेंट व कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स से सोशल मीडिया तक शायद ही कोई क्षेत्र बचा है जहां चीन की कंपनियों ने दखल नहीं बढ़ाया है।

By Manish MishraEdited By: Published: Mon, 27 Jan 2020 09:21 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 09:21 AM (IST)
मोबाइल फोन के क्षेत्र में दबदबे के बाद अब भारतीय ऑटो सेक्‍टर में भी बढ़ रही है चीन की धमक
मोबाइल फोन के क्षेत्र में दबदबे के बाद अब भारतीय ऑटो सेक्‍टर में भी बढ़ रही है चीन की धमक

नई दिल्ली, आइएएनएस। चीन की कंपनियां धीरे-धीरे लेकिन बहुत रणनीति के साथ भारत के आइटी, टेक्नोलॉजी और अन्य सेक्टर में कदम बढ़ा रही हैं। लगभग हर क्षेत्र में उद्योग दर उद्योग विस्तार करती जा रही चीनी कंपनियों की गति को चुनौती देना भारतीय कंपनियों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। स्मार्टफोन से ऑटोमोबाइल/इलेक्टिक वाहन और डिजिटल पेमेंट व कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स से सोशल मीडिया तक शायद ही कोई क्षेत्र बचा है, जहां चीन की कंपनियों ने दखल नहीं बढ़ाया है।

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एक ओर जहां अमेजन, फेसबुक और व्‍हाट्सएप जैसी अमेरिकी कंपनियों को कई बार जांच और राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ा है, वहीं चीनी कंपनियां लगातार भारतीय बाजार में अपनी दखल बढ़ाती जा रही हैं। चीन की अर्थव्यवस्था का आकार अभी 14.14 लाख करोड़ डॉलर है। 2024 तक इसने अर्थव्यवस्था को 20 लाख करोड़ डॉलर करने का लक्ष्य तय किया है। इस क्रम में चीन के लिए करोड़ों ग्राहकों के साथ भारत अहम बाजार बनकर सामने आया है। चीरी कंपनियों ने कुछ सेक्टर में भारत की घरेलू कंपनियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है।

इस क्रम में स्मार्टफोन सेक्टर का उदाहरण प्रासंगिक है। हांगकांग के काउंटरपॉइंट रिसर्च के मुताबिक, 2019 में भारत के 72 फीसद स्मार्टफोन बाजार पर चीनी ब्रांड का दबदबा रहा। सालभर पहले इसका स्तर 60 फीसद था। इसमें से अकेले 37 फीसद बाजार पर बीबीके ग्रुप का कब्जा है। ओप्पो, वीवो, रीयलमी और वनप्लस ब्रांड की मूल कंपनी बीबीके ही है। इसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी श्याओमी अपने रेडमी और पोको ब्रांड के साथ 28 फीसद बाजार पर काबिज है।

स्थानीय स्तर पर बढ़ाया उत्पादन : भारतीय बाजार में बढ़त बनाने के लिए चीन की कंपनियों ने यहां अपने मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट भी स्थापित किए हैं। ताइवान की बहुराष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स फर्म फॉक्सकॉन और सिंगापुर की फ्लेक्स लिमिटेड के साथ मिलकर श्याओमी ने भारत में अभी स्मार्टफोन मैन्यूफैक्चरिंग के सात प्लांट खोले हैं। भारत में बिकने वाले इसके 99 फीसद स्मार्टफोन स्थानीय स्तर पर ही तैयार होते हैं। इन सात प्लांट में श्याओमी ने 25,000 से ज्यादा लोगों को नौकरी दी हुई है। 

श्याओमी ने डिक्सन टेक्नोलॉजीज के साथ मिलकर आंध्र प्रदेश के तिरुपति में स्मार्ट टीवी का मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट भी स्थापित किया है। पिछले साल कंपनी ने अपने भारतीय कारोबार में 3,500 करोड़ रुपये का निवेश किया था। वीवो ने भारत में अपनी विस्तार योजनाओं पर 7,500 करोड़ रुपये के निवेश का एलान किया है। चीन की कंपनी टीसीएल भी तिरुपति में एक प्लांट में 2,200 करोड़ रुपये का निवेश कर रही है। यहां मोबाइल हैंडसेट और टीवी स्क्रीन बनाए जाएंगे।

कहां ठहरते हैं भारत के भारतीय ब्रांड? : सवाल यह है कि चीन की कंपनियों के इस तेज विस्तार के दौर में माइक्रोमैक्स, इंटेक्स, लावा और कार्बन जैसी भारतीय कंपनियां कहां ठहरती हैं? इन कंपनियों को मिल्क (एमआइएलके) ब्रांड भी कहा जाता है। आइडीसी इंडिया के रिसर्च डायरेक्टर नवकेंदर सिंह ने कहा, ‘भारत जैसे तेजी से बदलते बाजार में हम कभी भी किसी कंपनी की वापसी की संभावनाओं को खारिज नहीं कर सकते हैं। बावजूद इसके, मौजूदा हालात में भारतीय मोबाइल कंपनियों के लिए बाजार में कुछ अहम हिस्सेदारी हासिल करना पाना लगभग असंभव लग रहा है।’ पिछले कुछ समय के दौरान इन ब्रांड्स के बिक्री आंकड़े भी बहुत उम्मीद जताते नजर नहीं आ रहे हैं।

बाजार से परिचित हो गई हैं चीनी कंपनियां: चीन के ब्रांड को भारत में पांच साल से ज्यादा समय हो गया है। इस दौरान अन्य कंपनियों से बाजार हिस्सेदारी छीनने के अलावा उन्होंने भारतीय बाजार की नब्ज को भी समझा है। ग्राहकों की सोच, प्राथमिकता और मार्केटिंग रणनीतियों से चीनी कंपनियां परिचित हो गई हैं। इन कंपनियों ने अब इस दिशा में निवेश बढ़ाया है। नवकेंदर सिंह ने कहा, ‘तीन चौथाई से ज्यादा हिस्से पर पांच कंपनियां काबिज हैं। ऐसे में किसी नए या पुराने भारतीय ब्रांड के लिए इसमें जगह बना पाना लगातार मुश्किल होता जा रहा है।’

ऑटो सेक्टर में भी बढ़ रही धमक: चीन की कंपनियों की रणनीति को समझने के लिए ऑटो एक्सपो 2020 पर भी नजर दौड़ाई जा सकती है। यहां आसानी से यह देखने को मिल सकता है कि कैसे चीन की कंपनियां अपना रास्ता तैयार कर रही हैं। कार निर्माताओं और इस उद्योग के अगुआ लोगों के सालाना आयोजन में एमजी मोटर्स की ऑनर फर्म एसएआइसी, इलेक्टिक बस व बैट्री बनाने वाली बीवाईडी, चीन की सबसे बड़ी एसयूवी निर्माता ग्रेट वॉल और एफएडब्ल्यू हाइमा ने 20 फीसद हिस्सा रिजर्व कर लिया है। 

यह ऐसे समय में है, जबकि भारतीय ऑटो सेक्टर सुस्ती से जूझ रहा है। ऑटो सेक्टर की सुस्ती को धता बताते हुए एसएआइसी के एसयूवी हेक्टर को जबर्दस्त प्रतिक्रिया मिली है। जुलाई, 2019 में लांचिंग के बाद से कंपनी ने इसकी 16,000 गाड़ियां बेच ली हैं। कंपनी ने अपनी इलेक्टिक कार जेडएस ईवी भी उतार दी है। 20.88 लाख रुपये की शुरुआती कीमत वाली इस कार को 27 दिन में 2,800 बुकिंग मिली है। चीन की अन्य ऑटोमोबाइल कंपनियों को भी कमोबेश ऐसे ही प्रदर्शन की उम्मीद है। सात से 12 फरवरी के बीच होने जा रहे ऑटो एक्सपो में इसकी झलक दिख सकती है।

भारतीय कंपनियों के पास क्या है विकल्प?

सवाल यह भी उठता है कि इस परिस्थिति में भारतीय कंपनियों के पास विकल्प क्या है? आइडीसी के रिसर्च डायरेक्टर सिंह ने कहा कि अभी भारतीय कंपनियां फीचर फोन सेग्मेंट पर लक्ष्य कर सकती हैं। चीन के बड़े ब्रांडों ने इस सेग्मेंट से दूरी बनाई हुई है। भारतीय कंपनियां फीचर फोन सेग्मेंट और टीयर 2 व 3 के ग्राहकों को केंद्र में रखकर विस्तार योजना बना सकती हैं।


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