ऑनलाइन फार्मेसी के समर्थन में सीसीआई, कहा बढ़ेगी स्पर्धा
कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीआइआइ) ने कहा है कि दवाइयों की बिक्री में स्पर्धा बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग अच्छा विकल्प है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। ऑनलाइन दवाइयों की बिक्री पर देश भर के केमिस्ट और दवा विक्रेता कड़ा विरोध कर रहे हैं और इसे बंद करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन कारोबार में प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने वाले कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीआइआइ) ने कहा है कि दवाइयों की बिक्री में स्पर्धा बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग अच्छा विकल्प है।
सीसीआइ का कहना है कि नाजायज तौर पर अत्यधिक मार्जिन होने के कारण देश में मरीजों को दवाइयां महंगी मिल रही है। सीसीआइ ने मेकिंग मार्केट्स वर्क फॉर अफोर्डेबल हेल्थकेयर शीर्षक वाली एक नीतिगत रिपोर्ट में यह भी कहा है कि बड़े अस्पतालों में स्थित केमिस्ट शॉप प्रतिस्पर्धा से पूरी तरह अछूती हैं। वहां मरीजों को बाहर की केमिस्ट शॉप्स से दवाइयां खरीदने तक की इजाजत नहीं दी जाती है। सीसीआइ के नोट में कहा गया है कि अस्पतालों को स्पष्ट निर्देश होने चाहिए कि वे मरीजों को बाहर से स्तरीय दवाइयां व इलाज सामग्री खरीदने की अनुमति दें। सीसीआइ हेल्थकेयर क्षेत्र में अनुचित कारोबारी गतिविधियों पर बरत रहा है। सरकार भी उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कदम उठा रही है।
सीसीआइ के पॉलिसी नोट में कहा गया है कि देश में दवाइयां महंगी होने की एक बड़ी वजह विक्रेताओं का मार्जिन अत्यधिक है। कंपनियां ऊंचा मार्जिन देने के अलावा अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन भी देती हैं। यही नहीं व्यापारिक संगठनों के द्वारा स्वनियमन भी काम नहीं कर रहा है। ये संगठन समूचे दवा बाजार पर नियंत्रण रखते हैं। ऐसे में वे प्रतिस्पर्धा घटाने का काम करते हैं।
ऑनलाइन दवा बिक्री पर नोट में कहा गया है कि दवाइयों की इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग अच्छा विकल्प हो सकता है। इनका समुचित नियमन होना चाहिए। इससे समूचे दवा बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है और पारदर्शिता आ सकती है। कुछ श्रेणियों के उत्पादों पर यह असर दिखाई देने लगा है। जेनेरिक दवाइयों पर सीसीआइ का कहना है कि ब्रांडेड दवाइयां ऊंची कीमत पर बिकती हैं। इसके पीछे एक वजह क्वालिटी का आश्वासन है जो ब्रांड के साथ जुड़ा होता है। रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर क्वालिटी को ध्यान में रखकर ब्रांडेड दवाइयां मरीज के पर्चे में लिखते हैं। लेकिन इसके साथ यह भी संभव है कि डॉक्टरों के माध्यम से कंपनियां अपने ब्रांड को अलग दिखाकर समान क्वालिटी की दवा से फायदा उठाने का प्रयास करती हैं।