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उद्योगों को छूट से जीडीपी को नुकसान: बिबेक देबरॉय

देबरॉय के मुताबिक 50 साल पुराने आयकर कानून की समीक्षा के लिए छह सदस्यीय टास्क फोर्स गठित की गई है

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sat, 09 Dec 2017 02:12 PM (IST)Updated: Sat, 09 Dec 2017 02:12 PM (IST)
उद्योगों को छूट से जीडीपी को नुकसान: बिबेक देबरॉय
उद्योगों को छूट से जीडीपी को नुकसान: बिबेक देबरॉय

मुंबई (पीटीआई)। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन बिबेक देबरॉय ने टैक्स में रियायत के लिए दबाव बनाने वाले इंडिया इंक को आड़े हाथ लिया है। उनका कहना है कि उद्योग जगत करों में छूट के लिए लॉबींग करता है, जबकि ऐसी रियायत को खत्म करके ही टैक्स-जीडीपी अनुपात को बढ़ाया जा सकता है। देबरॉय ने उम्मीद जताई कि आयकर की समीक्षा के लिए गठित सरकारी समिति इस पर विचार करेगी।

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बिबेक ने बताया कि विभिन्न तरह की छूटों के चलते सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पांच फीसद के बराबर राजस्व का नुकसान हो जाता है। अगर इन्हें खत्म कर दिया जाए तो टैक्स-जीडीपी अनुपात 22 फीसद तक पहुंच जाएगा। यहां एक सेमीनार में उन्होंने कहा, ‘जब तक हम कर छूट खत्म नहीं करेंगे, जीडीपी में टैक्स की हिस्सेदारी नहीं बढ़ सकती है। अनुपालन लागत (कंप्लायंस कॉस्ट) भी बिना इसके नीचे नहीं आ सकती। यहां कर चोरी होती है। लेकिन टैक्स चोरी से ज्यादा मामले कर से बचने के हैं। टैक्स चोरी अवैध है, लेकिन अलग-अलग तरह की छूटों संबंधी नियमों के चलते कर से बचने के तमाम तरीके पूरी तरह वैध बने हुए हैं।’

देबरॉय के मुताबिक 50 साल पुराने आयकर कानून की समीक्षा के लिए छह सदस्यीय टास्क फोर्स गठित की गई है। यह टास्क फोर्स इस मसले को भी देखेगी। हालांकि प्रत्यक्ष करों में मिलने वाली इन छूटों को लेकर आगामी बजट में कोई प्रावधान हो सकेगा, इस पर संभवत: पर्याप्त सहमति नहीं बनी है। कर छूट को लेकर उद्योगों की लॉबींग पर उन्होंने कहा, ‘प्रत्यक्ष कर में मिलने वाली छूट के लिए मुङो नहीं लगता कि नेताओं या नौकरशाही को दोष देना चाहिए। दोष उद्योग जगत पर लगना चाहिए। आखिर और किस कारण से साल के इन दिनों में उद्योग जगत लॉबींग में जुट जाता है? उनकी इस सारी कोशिश के मूल में यही होता है कि बाकी सबको मिलने वाली छूट खत्म कर दी जाए और उन्हें रियायत मिलती रहे।’

जीएसटी सही दिशा में उठा कदम: वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को देबरॉय ने सही दिशा में उठाया गया कदम बताया है। उन्होंने कहा, ‘माना कि इसमें दरों के कई स्लैब हैं। लेकिन पहले की कई तरह के करों की तुलना में यह व्यवस्था बेहतर है। इसमें छूट के प्रावधान हैं, लेकिन ये पहले की अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था से कम हैं।’


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