NPA को बट्टे खाते में डालने से चमक रहे बैंकों के खाते, बकाये कर्जे को माफ करके कम किया जा रहा है एनपीए: RBI रिपोर्ट
आरबीआइ ने कहा है कि वर्ष 2018 के बाद से राइट-आफ ही एनपीए को कम करने का सबसे अहम जरिया बना हुआ है। अगर सरकारी बैंकों की बात करें तो वर्ष 2020-21 में सकल एनपीए (जीएनपीए) वर्ष 2019-20 के मुकाबले 30 प्रतिशत कम हुआ है
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। मंगलवार को रिजर्व बैंक द्वारा जारी सालाना बैंकिंग रिपोर्ट 2020-21 में कहा गया है कि भारतीय बैंकिंग सेक्टर पर फंसे कर्ज यानी नान परफॉर¨मग एसेट्स (एनपीए) का बोझ कम हो रहा है। हालांकि इसी रिपोर्ट में एनपीए प्रबंधन को लेकर कुछ दूसरे तथ्य भी हैं जो बताते हैं कि बाहरी दबाव में एनपीए कम हुआ है। असलियत में पुराने बकाया कर्जो को बट्टे खाते में (राइट-आफ करके) डालकर बैंक अपनी खाता-बही चमका रहे हैं। वर्ष 2020-21 में 2.08 लाख करोड़ रुपये की राशि को बट्टे खाते में डाला गया है। इतनी राशि किसी एक वर्ष में कभी भी बैंकों ने बट्टे खाते में नहीं डाली है।
आरबीआइ ने कहा है कि वर्ष 2018 के बाद से राइट-आफ ही एनपीए को कम करने का सबसे अहम जरिया बना हुआ है। अगर सरकारी बैंकों की बात करें तो वर्ष 2020-21 में सकल एनपीए (जीएनपीए) वर्ष 2019-20 के मुकाबले 30 प्रतिशत कम हुआ है, लेकिन इसमें 19.8 प्रतिशत हिस्सा पुराने बकाया कर्ज को बट्टे खाते में डालने से हुआ है। जबकि दूसरी वजहों (यानी वसूली आदि) से सिर्फ 11 प्रतिशत राशि कम हुई है। बताते चलें कि पिछले दिनों आरबीआइ ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में एक मीडिया हाउस को बताया था कि पिछले 10 वर्षों में भारतीय बैं¨कग सेक्टर में 11.68 लाख करोड़ रुपये की राशि को बट्टे खाते में डाला गया है। इसमें पिछले सात वर्षों में 10.72 लाख करोड़ रुपये की राशि राइट-आफ की गई है।
केंद्रीय बैंक ने बनाया फंसे कर्जो को बट्टे खाते में डालने का नियम बकाये कर्जे को माफ करने या बट्टे खाते में डालने का नियम आरबीआइ की तरफ से ही बनाया गया है। इसके मुताबिक बैंक जब किसी खाते को कर्ज वापसी नहीं होने के बाद एनपीए घोषित करते हैं तो उस ग्राहक पर बकाये राशि के एक बड़े हिस्सा का समायोजन अपने मुनाफे की राशि से चार वर्षों में करनी होती है। चार वर्ष बाद बैंक इस एनपीए खाते को बट्टे खाते में डाल सकते हैं यानी उसे अपने हिसाब किताब से बाहर कर देते हैं। बैंकों का कहना है कि बट्टे खाते में डालने के बाद भी वो कर्ज वसूली की कोशिश करते हैं लेकिन इसका उदाहरण बहुत ही कम देखने को मिलता है। उल्लेखनीय बात यह है कि यूपीए-एक व दो के कार्यकाल में एनपीए को बट्टे खाते में डालने को भाजपा ने राजनीतिक मुद्दा बनाया था। अब कांग्रेस भी मौजूदा बट्टे खाते की राशि का मुद्दा उठा रही है।
कर्ज वसूली के लिए स्थापित तंत्रों का नहीं हो रहा खास असर
बट्टे खाते में डालने से ही एनपीए कम होने का सबूत इस तथ्य से भी मिलता है कि कर्ज वसूली के लिए स्थापित सारे तंत्र खास काम नहीं कर पा रहे। लोक अदालत की बात करें तो वर्ष 2020-21 में इसके जरिये जितनी राशि (एनपीए की) वसूली के लिए रखी गई थी, उसका महज चार प्रतिशत ही वसूला जा सका। ऋण वसूली प्राधिकरण के जरिये सिर्फ एनपीए के मामलों में 3.6 प्रतिशत राशि वसूल की जा सकी। सरफाएसी कानून अपेक्षाकृत ज्यादा बेहतर काम कर रही है। पिछले वित्त वर्ष इसमें 67,510 करोड़ रुपये के मामले ले जाया गया था जिसका 41 फीसद (27,686 करोड़ रुपये) वूसला गया। नया दिवालिया कानून के जरिये वसूली का स्तर एक वर्ष में 46.3 फीसद से घट कर 20.2 फीसद हो गया था।