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एप्पल आयरलैंड को देना चाहता है 19 अरब डॉलर, लेकिन वह तैयार नहीं!

अमेरिकी कंपनी एप्पल आयरलैंड को 19 अरब डॉलर का भुगतान करना चाहती है लेकिन आयरलैंड यह पैसा लेना नहीं चाहता है। यह सुनने में बड़ा अजीब लगता है लेकिन एक बार समझने पर पूरा खेल साफ दिखाई दे जाता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 31 Jan 2016 09:40 AM (IST)Updated: Sun, 31 Jan 2016 10:04 AM (IST)
एप्पल आयरलैंड को देना चाहता है 19 अरब डॉलर, लेकिन वह तैयार नहीं!

न्यूयॉर्क। अमेरिकी कंपनी एप्पल आयरलैंड को 19 अरब डॉलर (करीब 129,200 करोड़ रुपये) का भुगतान करना चाहती है लेकिन आयरलैंड यह पैसा लेना नहीं चाहता है। वह किसी भी हालत में यह टालना चाहता है। आम लोगों के लिए यह अजीब स्थिति हो सकती है। लेकिन अगर आप इंटरनेशनल कॉरपोरेट टैक्स की राजनीति समझते हैं तो यह मसला समझ में आ जाएगा। एप्पल को एक जांच के परिणामस्वरूप आयरलैंड को टैक्स भरना पड़ सकता है। यह रकम 8 अरब डॉलर (54,400 करोड़ रुपये) से 19 अरब डॉलर (129,200 करोड़ रुपये) के बीच हो सकती है।

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यूनीवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के अर्थशास्त्री गैब्रियल यूकमैन इंटरनेशनल टैक्स चोरी पर अपनी पुस्तक ‘द हिडन वैल्थ ऑफ नेशंस’ में तर्क देते हैं कि कुछ अमेरिकी कंपनी अपनी व्यावसायिक गतिविधियां कम टैक्स वाले देशों जैसे आयरलैंड में शिफ्ट कर देती हैं ताकि उन्हें कम से कम टैक्स देना पड़े। टैक्नोलॉजी कंपनियां के लिए व्यवसाय शिफ्ट करना और आसान हो जाता है क्योंकि उनका ज्यादातर प्रॉफिट इंटेंगिबल एक्टिविटीज यानि अमूर्त गतिविधियों और सम्पत्तियों से मिलता है। ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना यादातर प्रॉफिट आयरलैंड, लक्जमबर्ग या किसी अन्य देश में स्थित सहायक कंपनियों में शिफ्ट करने के लिए ढांचे में बदलाव करती हैं।
जिससे अमेरिका में उन्हें कम से कम टैक्स भरना पड़े।

अनुमान है कि एप्पल इस तरह 200 अरब डॉलर का प्रॉफिट दूसरे देशों में शिफ्ट कर चुकी हैं। एप्पल जैसी विशाल कंपनियां आयरलैंड जैसे देशों से अपने लिए अलग टैक्स कानून की भी मांग करती हैं। इससे उनके व्यावसायिक ढांचे को कानूनी मान्यता मिल जाती है। आलोचक इसे स्वीट हार्ट डील कहते हैं। जबकि ये कंपनियां इसे लांग टर्म टिकाऊ इंतजाम बताती हैं।

लेकिन एप्पल की टैक्स संबंधी व्यवस्था पर यूरोप के अन्य देश सवाल उठा रहे हैं। वे आयरलैंड, लक्जमबर्ग और टैक्स हेवन बने अन्य देशों की इस व्यवस्था से खुश नहीं हैं। लेकिन यूरोपियन यूनियन के कानून इस मामले में कुछ खास नहीं कर सकते हैं क्योंकि कॉरपोरेट टैक्स के मामले हर देश के स्वविवेक पर निर्भर हैं। हालांकि हाल में यूरोपियन यूनियन की प्रशासनिक संस्था यूरोपियन कमीशन ने बड़ी चतुराई से एक कानूनी तर्क दिया है। इसके अनुसार भले ही कॉरपोरेट टैक्स ईयू कानून में नहीं आते हैं लेकिन उसे सरकारी मदद के खिलाफ कदम उठाने का अधिकार है।

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इसके तहत अगर कोई ईयू का सदस्य देश किसी कंपनी को कोई मदद देता है, जिससे बाजार में खुली स्पर्धा प्रभावित हो रही है तो ईयू कार्रवाई कर सकता है। यूरोपियन कमीशन ने किसी कंपनी विशेष के लिए अलग टैक्स कानून को सरकारी मदद करार दिया है। वह एप्पल की आयरलैंड के साथ स्पेशल टैक्स डील की जांच कर रहा है। अगर यह साबित जाता है तो एप्पल को यादा टैक्स आयरलैंड को देना होगा।

आयरलैंड की अनिछा

यह भी अजीब है कि भारी कर्ज से परेशान और मंदी की गंभीर समस्या से जूझ रहे आयरलैंड को 19 अरब डॉलर की विशाल रकम मिलने पर खुश होना चाहिए, लेकिन वह खुश नहीं है। उसे लगता है कि उसे टैक्स के रूप में बड़ी रकम को मिल जाएगी लेकिन दूसरे देशों के मुकाबले निवेशकों की नजर में उसका आकर्षण कम हो जाएगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियां दूर हो जाएंगी। गूगल भी टैक्स से बचने के लिए आयरलैंड में अपना कारोबार और प्रॉफिट दिखाती है। आयरलैंड ने तय किया है कि वह फिलहाल के टैक्स का लोभ छोड़कर लांग टर्म टैक्स पॉलिसी को यादा वजन देगा।

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अमेरिका भी नाखुश

एक और अजीब पहलू यह है कि अमेरिका भी इससे खुश नहीं है। वहां राष्ट्रपति चुनाव के समय कम टैक्स वाले देशों में कारोबार शिफ्ट होने का मसला उठता है। ऐसे में अमेरिकी अधिकारियों और नेताओं को खुश होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। पहले तो गूगल और एप्पल जैसी कंपनियों का अमेरिकी सत्ता के गलियारों में खासा रुतबा है। दूसरा कारण इससे भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिका को यादा बिल भुगतान करना होगा। यूरोप के कदम से प्रभावित कंपनियां विदेश में भरे टैक्स के लिए अमेरिका में क्रेडिट का क्लेम कर सकती हैं।


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