दाल के बाद अब रोटी भी हो सकती है महंगी
आने वाले दिनों में मंहगाई का असर आपकी रोटी पर भी दिखाई पड़ सकता है। सूखे का असर गेहूं का पैदावार पर पड़ा है।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। दाल की किल्लत से बढ़ी महंगाई का असर दूसरे खाद्य उत्पादों के साथ जल्दी ही रोटी पर भी दिखाई पड़ सकता है। सूखे की वजह से अन्य फसलों की तरह गेहूं की पैदावार पर भी असर पड़ा है। यही वजह है कि समर्थन मूल्य में पांच फीसद की वृद्धि के विपरीत गेहूं के दाम में 18 से 23 फीसद तक की तेजी आ चुकी है। गेहूं में महंगाई की इस आशंका से सरकार भले ही आंखे मूंदे बैठी हो लेकिन जमाखोर और बड़े व्यापारियों ने इसे भांप लिया है।
महंगाई की साप्ताहिक समीक्षा करने के लिए गठित सचिवों की समिति में हुई चर्चा के मुताबिक गेहूं की पैदावार 8.8 करोड़ टन है। यह आंकड़ा कृषि मंत्रलय के 9.4 करोड़ टन के मुकाबले बहुत कम है। जिंस बाजार के जानकार इससे पूरी तरह सहमत हैं। पैदावार का असल अनुमान सीजन के दौरान मंडियों में होने वाली आवक व सरकारी खरीद के आंकड़ों से लगाया जाता है। गेहूं की कुल सरकारी खरीद 2.29 करोड़ टन रही है, जो पिछले साल के 2.73 करोड़ टन से कम है।
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दूसरी ओर इसके विपरीत गेहूं की मांग में पर्याप्त इजाफा होने वाला है। इक्का-दुक्का रायों को छोड़कर सभी रायों में खाद्य सुरक्षा कानून लागू हो चुका है, जहां अति रियायती अनाज का उठान शत-प्रतिशत के करीब है। इस मद में 2.50 करोड़ टन गेहूं की जरूरत है। वहीं दूसरी ओर बफर स्टॉक 74 लाख टन रखना अनिवार्य होगा। खुली बिक्री योजना में मांग किसी भी हाल में एक करोड़ टन से कम नहीं होने वाली है। लेकिन सरकार के पास इसके लिए उतना स्टॉक नहीं होगा। लिहाजा मांग आपूर्ति का अंतर बढ़ा तो कीमतें बढ़नी तय है। बीते रबी सीजन में गेहूं के समर्थन मूल्य में 5.17 फीसद की वृद्धि हुई थी, जबकि जिंस बाजार में गेहूं के भाव में विभिन्न शहरों में 18 से 23 फीसद तक की वृद्धि हो चुकी है। किसानों के हित संरक्षण के लिए सरकार ने गेहूं के आयात पर 25 फीसद का प्रावधान कर रखा है।
सरकार की आशंका यह रही कि अंतरराष्ट्रीय बाजार से सस्ता गेहूं घरेलू बाजारों में पट जाएगा जो किसानों के लिए हितकारी नहीं होगा। लेकिन गेहूं की खरीद का सीजन जून में ही समाप्त हो गया है। अब किसानों के बजाय गेहूं का स्टॉक सरकारी गोदामों अथवा व्यापारियों के पास है। गेहूं से आयात शुल्क 30 जून को समाप्त होने वाला था लेकिन सरकार ने इसे और अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया गया है। सरकार के इस फैसले से गेहूं आयातक जहां सकते में आ गये वहीं जमाखोर सक्रिय हो गये। फ्लोर मिल मालिकों ने भी आहट भांपकर खुले बाजार में गेहूं बिक्री योजना का जमकर लाभ उठाना शुरू कर दिया है।
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खुले बाजार की गेहूं बिक्री योजना (ओएमएमएस) के तहत पिछले साल मई में जहां मात्र 5700 टन गेहूं की बिक्री हुई थी, वह चालू सीजन के मई में बढ़कर 1.69 लाख टन पहुंच गई। यही हाल जून का भी रहा जो पिछले साल के 20 हजार टन के मुकाबले 1.95 लाख टन गेहूं की बिक्री हुई।