जनधन खातों में 87 हजार करोड़ जमा, जांच शुरू
नोटबंदी के बाद 45 दिनों में प्रधानमंत्री जन धन खातों में जमा राशि करीब दोगुनी बढ़कर 87 हजार 100 करोड़ रुपये हो गई
नई दिल्ली। नोटबंदी के बाद 45 दिनों में प्रधानमंत्री जन धन खातों में जमा राशि करीब दोगुनी बढ़कर 87 हजार 100 करोड़ रुपये हो गई। इससे हैरान आयकर विभाग ने इन खातों में काला धन जमा होने का संदेह जताते हुए इनकी जांच शुरू कर दी है। जन धन खातों में नौ नवंबर तक 45 हजार 637 करोड़ रुपये जमा थे।
आयकर विभाग उन 4.86 लाख जन धन खातों की भी पड़ताल कर रहा है, जिनमें 30 से 50 हजार रुपये के बीच कुल दो हजार करोड़ रुपये जमा हुए हैं। 10 नवंबर से 23 दिसंबर के बीच जन धन के 48 लाख खातों में 41,523 करोड़ रुपये जमा हुए। नौ नवंबर तक इन खातों में 45,637 करोड़ रुपये जमा थे। इस तरह 23 दिसंबर तक जमा की कुल राशि बढ़कर 87,160 करोड़ रुपये हो गई। आयकर विभाग के अधिकारी ने बताया कि जन धन खातों पर मिली इन तमाम सूचनाओं की जांच की जा रही है। अगर पाया गया कि इन खातों में किन्हीं दूसरे लोगों का पैसा जमा किया गया है तो उपयुक्त कार्रवाई की जाएगी। नोटबंदी के बाद इन खातों में पहले हफ्ते में सबसे ज्यादा राशि जमा हुई। यह राशि 20 हजार 224 करोड़ रुपये थी। लेकिन इसके बाद जमा की जाने वाली राशि की रफ्तार में गिरावट आई।
एक पखवाड़े में निकले 3285 करोड़ रुपये
जन धन खातों में जिस तेजी से रुपये जमा हुए, उतनी ही तेजी से निकाले भी जाने लगे हैं। जबकि, ऐसे प्रत्येक खाते से 10 हजार रुपये ही हर माह निकाले जा सकते हैं। बीते एक पखवाड़े में इन खातों से 3285 करोड़ रुपये की राशि निकाली गई है। सात दिसंबर को समाप्त सप्ताह में इन खातों में कुल 74 हजार 610 करोड़ रुपये जमा थे। इसके एक पखवाड़े बाद और नोटबंदी की अंतिम अवधि से दो दिन पहले यानी 28 दिसंबर तक ये तेजी से घटकर 71 हजार 37 करोड़ रुपये रह गए थे। वित्त मंत्रलय के आंकड़ों में यह जानकारी दी गई।
वित्त मंत्री से चर्चा पर आरबीआइ के पास जवाब नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आठ नवंबर को अचानक 500 और 1000 के नोट बंद करने की घोषणा से पहले क्या इस पर वित्त मंत्री या मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) के विचार लिए गए थे? यह सवाल बना हुआ है। वजह यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने सूचना के अधिकार यानी आरटीआइ के तहत पूछे गए इस सवाल का जवाब देने से मना कर दिया है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि कानून के तहत यह दी जाने वाली सूचनाओं की परिभाषा के दायरे में नहीं आता। आवेदक ने पूछा था कि क्या नोटबंदी के एलान से पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम और वित्त मंत्री अरुण जेटली के विचार लिए गए थे?
रिजर्व बैंक ने आरटीआइ के जरिये पूछे गए सवाल के जवाब में कहा, ‘इस तरह का सवाल, जिसमें सीपीआइओ की राय मांगी गई है, आरटीआइ कानून की धारा 2(एफ) के तहत सूचना की परिभाषा में नहीं आता।’ क्या मांगी गई सूचना सीपीआइओ से ‘राय मांगने’ के तहत आती है? इस पर पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त एएन तिवारी ने कहा कि ऐसा नहीं है। आरटीआइ आवेदक ने तथ्य के बारे में जानकारी मांगी है। केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी यानी सीपीआइओ यह नहीं कह सकता कि उससे राय मांगी गई है।
पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने कहा, ‘इसे कैसे राय मांगना कहा जा सकता है? क्या किसी से विचार विमर्श किया गया या नहीं, रिकॉर्ड का मामला है। यदि सवाल यह होता कि क्या विचार लेने चाहिए, तो यह राय मांगना होता।’ उन्होंने रिजर्व बैंक के सीपीआइओ के जवाब पर हैरानी जताई। यह सवाल प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और वित्त मंत्रलय से भी किया गया है। लेकिन, आरटीआइ आवेदन के 30 दिन बाद भी इस पर जवाब नहीं दिया गया है। आवेदक ने यह भी जानना चाहा है कि 500 और 1000 का नोट बंद करने से पहले किन अधिकारियों के साथ विचार विमर्श किया गया है। ये अधिकारी किन पदों पर हैं।