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No Cost EMI ऑप्शन देखकर तुरंत न करें खरीदारी का फैसला, समझ लें इसका मतलब

जानिए नो कॉस्ट ईएमआई के बारे में और क्या इस तरह खरीदारी करना समझदारी भरा फैसला है

By Surbhi JainEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 06:35 PM (IST)Updated: Sun, 22 Jul 2018 09:14 PM (IST)
No Cost EMI ऑप्शन देखकर तुरंत न करें खरीदारी का फैसला, समझ लें इसका मतलब
No Cost EMI ऑप्शन देखकर तुरंत न करें खरीदारी का फैसला, समझ लें इसका मतलब

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर शॉपिंग करते समय आपने नो कॉस्ट ईएमआई शब्द जरूर पढ़ा होगा। क्या आप असल में इसका मतलब जानते हैं? इसके साथ कंपनियां डिस्काउंट और आकर्षक ऑफर भी देती है। क्या इस तरह खरीदना समझदारी का फैसला है? जानिए नो कॉस्ट ईएमआई से जुड़ी अहम बात

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क्या होता है नो कॉस्ट ईएमआई-

वर्ष 2013 में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को रिटेल प्रोडक्ट्स पर जीरो फीसद ईएमआई स्कीम पेश करने से बैन कर दिया था। इसलिए बैंकों ने इसका विकल्प निकाला है। सुनने में नो कॉस्ट ईएमआई का मतलब ऐसा जान पड़ता है कि आपको लोन पर कोई ब्याज नहीं देना। लेकिन असल में आपका बैंक दिये गये डिस्काउंट को ब्याज के रूप में वापस ले लेता है।

कैसे काम करती है नो कॉस्ट ईएमआई:

नो कॉस्ट ईएमआई में तीन हिस्सेदार होते हैं- रिटेलर, बैंक और कंज्यूमर। आम तौर पर चुनिंदा बैंक क्रेडिट कार्ड पर नो कॉस्ट ईएमआई का विकल्प देते हैं। अगर आपके पास उस बैंक का क्रेडिट कार्ड नहीं है तो आपको वह डील नहीं मिलेगी। इसके लिए आप नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी से ईएमआई कार्ड का विकल्प चुन सकते हैं। कुछ ईएमआई कार्ड के लिए फीस चुकानी होती है। रिटेलर्स उन प्रोडक्ट्स पर नो कॉस्ट ईएमआई का विकल्प देता जो उसे जल्दी बेचने होते हैं। नो कॉस्ट ईएमआई की स्थिति में रिटेलर्स कंज्यूमर को ब्याज जितनी राशि का डिस्काउंट दे देता है।

क्या नो कॉस्ट ईएमआई का चयन करना चाहिए?

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक लिमिटेड, एक्सिस बैंक लिमिटेड, आइसीआइसीआइ बैंक लिमिटेड, आरबीएल बैंक लिमिटेड, येस बैंक लिमिटेड, स्टैंडर्ड चार्टेड बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर नो कॉस्ट ईएमआई का ऑप्शन देते हैं। आमतौर पर मोबाइल फोन, फ्रिज, टेलीविजन और वाशिंग मशीन जैसे प्रोडक्ट्स पर डिस्काउंट दिया जाता है।

अधिकांश मामलों में नकदी पर डिस्काउंट ईएमआई से ज्यादा नहीं होता है। यह एक तरह से मार्केटिंग का तरीका होता है ताकि पुराना स्टॉक खत्म किया जा सके। सलाहकारों के मुताबिक व्हाइट गुड्स (मोबाइल फोन, फ्रिज, टेलीविजन और वाशिंग मशीन, एसी) के लिए लोन नहीं लेना चाहिए।

इसलिए कोशिश करें कि इस तरह की मार्केटिंग टैक्टिक्स में न फंसे जहां पर आपको जिन चीजों की जरूरत नहीं भी है आप वो खरीद रहे हैं। वो भी ऊंचे दाम पर। साथ ही ईएमआई डिफॉल्ट से बचें।


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