‘एक ही पत्थर लगे हैं हर इबादत गाह में गढ़ लिए एक बुत के सबने अफसाने कई'
नाजीर बनारसी साहब की लिखी हुई ये गजल धर्म के नाम पर लड़ने वाले लोगों को एक आईना दिखाती है.
दुनिया में ऐसा कौन-सा इंसान है, जिसने कभी ‘सब रब दे बंदे’, ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम’ ये बातें न सुनी हो, लेकिन यहां बातों को अमल करने वालों की संख्या न के बराबर है, लेकिन इन बातों से परे दुनिया में अभी भी ऐसे कई किस्से और घटनाएं हैं जिनपर धर्म पर छिड़ रहे युद्ध का कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
ऐसी ही एक पुरानी प्रथा है मध्यप्रदेश के भांदर की. यहां मोहर्रम पर निकलने वाले ताजिया जुलूस से पहले मुस्लिम समुदाय के लोग वहां श्रीकृष्ण मंदिर में जाकर उनकी पूजा करते हैं. फिर इसके बाद ताजिया का जुलूस निकलता है. माना जाता है लगभग 200 सालों से यहां ये परम्परा रही है.
श्रीकृष्ण को सलामी देकर आगे बढ़ता है ताजिया
हर साल ताजिया कृष्ण भगवान के मंदिर के सामने रुकता है और सलामी देकर ही आगे बढ़ता है. गौरतलब है कि जब कृष्ण भगवान की सवारी निकलती है, तब भी यही परंपरा निभाई जाती है और हर मुस्लिम परिवार का कोई न कोई सदस्य आकर उस सवारी को कंधा जरूर देता है.
एक मुस्लिम ने बनवाया था ये मंदिर
मंदिर की तीसरी पीढ़ी के पुजारी रमेश पांडा के मुताबिक इस मंदिर को हजारी नाम के एक स्थानीय मुस्लिम ने बनवाया था. जैसाकि हम लोगों को बताया गया है, हजारी ने सपने में चतुर्भुज (कृष्ण) भगवान को देखा था. भगवान कृष्ण ने कहा था कि मैं एक तालाब के आस-पास हूं. जब सुबह वह तालाब के पास गया तो कृष्ण की मूर्ति देखकर आश्चर्यचकित हो गया.
इस मूर्ति का वजन 4 टन था, बावजूद इसके हजारी मूर्ति को अपने घर लेकर आया. कुछ दिन बाद हजारी के सपने में फिर भगवान कृष्ण आए और उन्होंने कहा कि उन्हें घर में न रखा जाए. इसके तुरंत बाद हजारी ने मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया.'
जब देशभर में सांप्रदायिकता और असहनशीलता की बात हो रही थी तो भी इस मंदिर में ये प्रथा कायम थी. देश में ऐसे उदाहरण ‘विविधता में एकता’ वाली बात को साबित करते हैं..Next
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