कालजयी रचानाओं से हिंदी साहित्य को नई बुलंदियों पर पहुंचाने वाले हरिवंश राय बच्चन अपनी एक प्रसिद्ध कविता को पढ़ते हुए गमगीन हो जाते थे। आंखों में आंसू आने के चलते उन्होंने उस कविता को पढ़ना ही बंद कर दिया था। उन्होंने इस बात का खुलासा अपनी आत्मकथा में भी किया है। देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए प्रयासरत रहने वाले हरिवंश राय बच्चन ने अपने बेटे अमिताभ बच्चन का शुरुआती नाम 'इंकलाब' रखा था। आज यानी 18 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि है। आइए जानते हैं डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन की जिंदगी के बारे में।
रचनाएं जो लोगों के दिलों में बसीं-
अपनी कालजयी कविताओं और पुस्तकों के जरिए साहित्य को नई दिशा दिखाने वाले हरिवंश राय बच्चन 1907 में उत्तर प्रदेश राज्य के बाबूपट्टी गांव में जन्मे थे। उनकी लिखी कविता मधुशाला, नीड़ का निर्माण फिर और क्या भूलूं क्या याद करूं को आज भी लोग नहीं भूल सके हैं और इन्हें अकसर गुनगुनाते नजर आते हैं। इन रचनाओं ने हरिवंश राय बच्चन को दुनियाभर में मशहूर बना दिया।
प्यार से लोग कहते थे बच्चन-
कायस्थ परिवार में जन्मे हरिवंश राय बच्चन शुरुआत से ही प्रतिभावान थे। परिवार में सबसे छोटे होने और सौम्य व्यवहार के चलते घरवाले उन्हें प्यार से बच्चन कहकर पुकारा करते थे। किशोरावस्था से ही लेखन करने वाले हरिवंश राय की कविताएं बच्चन के नाम से छपती थीं। यहीं से उनके नाम के आगे बच्चन जीवन भर के लिए जुड़ गया। हरिवंश राय बच्चन ने उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए इलाहाबाद पहुंचे गए।
अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी और विवाह-
इलाहाबाद से हरिवंश राय बच्चन अमेरिका के कैंब्रिज विश्वविद्यालय पहुंचे और यहां से अंग्रेजी कविताओं पर पीएचडी हासिल की। उन्होंने मशहूर अंग्रेजी साहित्यकार डब्ल्यू बी यीट्स की कविताओं पर शोध प्रत्र भी पढ़ा। देश लौटकर वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हो गए। इसके बाद उनकी मुलाकात श्यामा बच्चन से हुई। दोनों के बीच प्रेम हो गया और फिर साल 1926 में दोनों ने विवाह कर लिया।
पत्नी की मृत्यु से सदमे में चले गए-
विवाह से पूर्व ही हरिवंश राय बच्चन कई मशहूर कविताएं और किताबें लिखकर प्रसिद्ध हो चुके थे। वह मुशायरों में प्रमुख कवि रहते थे और अकसर ही उनके घर पर भी दोस्तों और चाहने वालों के लिए कविता पाठ हुआ करता था। विवाह के कुछ सालों बाद ही अचानक श्यामा बच्चन इस दुनिया से चल बसीं। पत्नी के दुख से पीडि़त हरिवंश राय बच्चन की लेखनी से 'क्या भूलूं क्या याद करूं' कविता निकली जो कालजीय रचना साबित हुई।
कविता पढ़ते वक्त बहने लगते थे आंसू-
हरिवंश राय से अकसर ही मुशायरों में लोग 'क्या भूलूं क्या याद करूं' कविता सुनाने की गुजारिश करते थे। लोगों की जिद पर इस कविता को वह पढ़ते और पत्नी की यादों में खो जाते। कई मौकों पर इस कविता को पढ़ते हुए मंच पर ही उनके आंसू बह निकले थे। हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा क्या भूलूं क्या याद करूं में लिखा है कि जब उनके घर पर कुछ दोस्त जुटे और उनकी जिद पर उन्होंने इस कविता को सुनाया तो वह रोने लगे। उस वक्त उनको ढांढस बंधाने वाली तेजी सूरी बाद में हरिवंश राय बच्चन की दूसरी पत्नी बनीं। बाद में उन्होंने मंच पर इस कविता को पढ़ना बंद कर दिया था। अपनी कलम से लोगों में ऊर्जा भरने वाले हरिवंश राय बच्चन ने साल 2003 में आज ही के दिन 95 वर्ष की उम्र में मुंबई में अंतिम सांस ली थी।
कालजयी कविता-
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं
अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी घड़ियों को
किन-किन से आबाद करूं मैं
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं
याद सुखों की आंसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूं जब अपने से
अपने दिन बर्बाद करूं मैं
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं
दोनों करके पछताता हूं,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूं,
सुधियों के बंधन से कैसे
अपने को आज़ाद करूं मैं
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं।