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नया खिलौना आया है बाज़ार में - गूगल ग्लास, सुना है मेडिकल क्रांति लाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी इस उपकरण की! क्रांति बड़ा ही अनोखा शब्द है, जहाँ एक तरफ यह नयेपन का, बदलाव का पैगाम लाती है वहीँ अपने पहलू में छुपा के लाती है अनगिनित, अनजाने, अक्सर खतरनाक 'साइड इफेक्ट्स' - तरक्की की खोज में हम इन दुष्प्रभावों की परवाह करना भूल जाते हैं, अनदेखा कर देते हैं आने वाले खतरे को और हर चेतावनी हमारे कानो से टकरा कर लौट जाती है. जो होगा देखा जाएगा; जब होगा तब सुल्टेंगे , कल किसने देखा है ...पर हम कल ही तोह देख रहे हैं, कल जो हमारे पिछली पीढ़ियों ने हमारे लिए बनाया!! तकनिकी जगत की उन्नति ने हमारी औसत आयु बढ़ा दी - पर क्या करें इस लम्बी उम्र का जो ३५ के बाद कैंसर, दिल की बिमारी, जोड़ों के दर्द, डायबिटीज, और किडनी के डायलिसिस में तड़प तड़प के बीतती है. मलेरिया अभी पूरा गया नहीं की डेंगू १,२,३,४ आ गया; हर्र मौसम अब बस राम राम करते गुज़रता है- आज स्वाइन फ्लू का प्रकोप है तो कल सार्स का, आज एक दवाई लेते हैं कल पता चलता है की उस दवाई के परिणाम स्वरुप हमारा दिल जवाब दे चुका है. हम प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं, कहीं bt बैंगन बना, कहीं जीव जंतुओं को नुक्सान पहुंचा, कहीं नदियों का रुख मोड़ और कहीं पहाड़ों को काट कर - नतीजा तो सामने है ही! गर ये प्रलय नहीं तो क्या है , जो जापान को तबाह कर गयी और दूर क्यूँ जाएँ ,अपने केदारनाथ को उज्जड बना गयी. हम अपनी तरक्की, अपनी उपलब्धियों, अपनी क्षमता के गुरूर में यूँ तल्लीन हुए की भूल गए - हम अकेले नहीं हैं. हम सहचर हैं इस सृष्टि में और हम केवल भागिदार हैं-स्वामी नहीं! और ताकि हम भूल न जाएँ अपने इस अस्तित्व को , गुमान न करने लगें अपने होने का - यह प्रकृति हमें याद दिलाती रहती है की तू डाल डाल मैं पात पात; तू जिद ना कर, अभिमान न कर; तू आगे बढ़ पर देख ज़रा, थोडा सोच समझ, थोडा धीरज धर!