AJAY AMITABH SUMAN UVACH
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न वक्त का मारा हुआ, न तख़्त उतारा हुआ,
बा-मुश्किल हीं उठता, एतबार का हारा हुआ।
वो दुश्मनों की फौज पे अड़ा रहा था ठीक था,
घर भी देख लेता था क्या क्या बिगाड़ा हुआ।
रोशनी से ईश्क थी जुगनू से रखता वास्ता,
अपना भी कोई तो क्या जो दूर सितारा हुआ।
नजरें मिलानी खुद से, हुई पड़ी थी मुश्किल,
कहो हँसे भी कैसे , तिरस्कार का मारा हुआ।
शोहरत ए ओहदा आई न किसी काम की कि,
तकदीर का था मालिक, नजरों का हारा हुआ।
जीत कर भी दुनिया हासिल हुआ क्या उसको,
अपने नहीं थे उसके न वो उनका सहारा हुआ।
अजय अमिताभ सुमन