वीटीआर के भेड़िहारी वन परिसर में लगी आग, सदाबहार जंगल नष्ट
जैव विविधता का खजाना कहे जाने वाले वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना का वन क्षेत्र आग की लपटों की चपेट में बार-बार आ रहा है । दुर्लभ वन्य जीवों व वनस्पतियों वाले इस जंगल में आग से भारी नुकसान की खबर है।
बगहा । जैव विविधता का खजाना कहे जाने वाले वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना का वन क्षेत्र आग की लपटों की चपेट में बार-बार आ रहा है । दुर्लभ वन्य जीवों व वनस्पतियों वाले इस जंगल में आग से भारी नुकसान की खबर है। बढ़ती अगलगी की घटना के बावजूद वन विभाग ने सबक नहीं लिया। वन क्षेत्रों को आग से बचाने के लिए फायर वाचरो की तैनाती के बाद भी जंगलों की हिफाजत चुनौती साबित हो रही है। पर्यटन नगरी का एतिहासिक वन क्षेत्र मंगलवार की दोपहर आग की चपेट में आ गया। सूत्रों के अनुसार शरारती तत्वों ने आग लगा दी। वीटीआर के भेडि़हारी वन परिसर के कक्ष संख्या एम 24 के जंगल में सूखे पत्ते ने हवा के झोंके में चिगारी भड़काने का काम कर दिया। देखते ही देखते विकराल आग की लपटों ने दो एकड़ वन क्षेत्र का क्षेत्रफल चपेट में ले लिया। आग के बेकाबू होने से बड़ी संख्या में वन्य जीवों को क्षति होने की आशंका है। वनकर्मियों की तत्परता से आग पर काबू पाया जा सका । लेकिन, तब तक आग दो एकड़ में लगे वन संपदा खाक कर चुकी थी। रेंजर के अनुसार दोबारा वन क्षेत्र में आग न भड़के, पैनी नजर रखी जा रही है। राहगीरों के साथ ही घूमने निकले लोगों पर भी कड़ी निगाह रखी जा रही है। जानकारों की मानें तो वीटीआर के वनों में कई तरह की जैव विविधता मिलती है। लेकिन, ईधन, चारे, लकड़ी की बढ़ती हुई मांग, वनों के संरक्षण के अपर्याप्त उपाय और वन भूमि के गैर-वन भूमि में परिवर्तित होने से वे खत्म होते जा रहे हैं। जंगल में आग लगना एक आम बात है और पुराने समय से ही ऐसा होता रहा है। जंगल के पर्यावरण में घुसपैठ से असंतुलन बनने और आग नियंत्रण का समुचित प्रशिक्षण न होने से आज इस तरह की घटनाएं बहुत बढ़ गई हैं। वन क्षेत्र के लिए वित्तीय आवंटन में कमी और वन आग नियंत्रण की व्यवस्था को कोई प्राथमिकता न दिया जाना भी आग को रोकने में हमारी असफलता का कारण रहा है। आग से होने वाले बहुत से अप्रत्यक्ष नुकसान भी हैं जिनमें जमीन की उत्पादकता में गिरावट, वनों की सालाना वृद्धि दर में कमी, भूमि में कटाव और कई तरह की वन संपदा का नुकसान शामिल है। जंगल में आग लगना एक स्थाई समस्या है। बावजूद इसके इससे निपटने के लिए कभी कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया। वन विभाग के पास इस आग से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। जंगलों में आग लगने से पानी के प्राकृतिक स्त्रोत भी सूख जाते हैं। इससे गर्मियों में पहाड़ी क्षेत्रों में भी पेयजल संकट पैदा हो जाता है। जंगलों को आग से बचाने के लिए ज्वलनशील पदार्थो को हमेशा जंगल से दूर रखना चाहिए और जंगली रास्तों से गुजरते समय जलती हुई माचिस की तीली व बीड़ी, सिगरेट जंगल में नहीं डालनी चाहिए। जंगल पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं, इनकी रक्षा करना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है।
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