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वीटीआर के शाकाहारी जानवरों की देहरादून में गिनती

बगहा (प.चंपारण) :मांसाहारी जीवों के अस्तित्व के लिए शाकाहारी जीवों का रहना आवश्यक है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 09:33 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 09:33 PM (IST)
वीटीआर के शाकाहारी जानवरों की देहरादून में गिनती
वीटीआर के शाकाहारी जानवरों की देहरादून में गिनती

बगहा (प.चंपारण) :मांसाहारी जीवों के अस्तित्व के लिए शाकाहारी जीवों का रहना आवश्यक है। इसलिए बिहार के इकलौते व्याघ्र परियोजना वीटीआर (वाल्मीकि टाइगर रिजर्व) में बाघों के बाद अब शाकाहारी जीवों की गिनती के लिए नवंबर से ट्रांजिट लाइन सर्वेक्षण हो रहा है। इसके जरिए संकलित नमूने भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून भेजे जाएंगे। वहां एक्सपर्ट जानवरों के मल-मूत्र और पग मार्क के आधार पर यहां शाकाहारी जानवरों की वास्तविक संख्या बताएंगे। सर्वे से यह पता लगाया जाएगा कि जंगल की खाद्य श्रृंखला कितनी मजबूत है। वनस्पतियों का भी अध्ययन हो रहा है।

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बनाई गई छह ट्रांजिट लाइन : वीटीआर में एक बीट को दो यूनिट मानकर छह बीटों में ट्रांजिट लाइनें बनाई गई हैं। एक ट्रांजिट लाइन में दो से तीन किलोमीटर का एरिया है। गिनती करने वाले कर्मी इस ट्रांजिट लाइन पर तीन बार पैदल चलते हैं। इस बीच वन्यजीवों की गिनती के साथ उनके मल, गोबर आदि के नमूने लेते हैं। बफर जोन में ट्रांजिट लाइन सर्वे हो चुका है। शाकाहारी जानवरों के अलावा भालू, भेड़िया, लकड़बग्घा, सियार, लोमड़ी आदि की भी गिनती होगी।

भोजन से तय होगा चार वर्ष में बाघों की कितनी होगी संख्या : केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय बाघों की संख्या का अंदाजा लगाने के लिए देश के सभी वीटीआर में ट्रांजिट लाइन का सहारा ले रहा है। शाकाहारी जीवों की संख्या और वनस्पतियों की उपलब्धता के आधार पर यह पता लगाया जा सकेगा कि अगले चार वर्ष में बाघों की संख्या कितनी बढ़ेगी। बता दें कि पिछले सर्वेक्षण में वीटीआर में बाघों की संख्या 28 थी। एक साल पहले हुए सर्वेक्षण में यह संख्या 40 से ज्यादा बताई गई। अगले चार वर्षो में संख्या बढ़ने की बात कही जा रही। हालांकि कितनी बढ़ेगी, यह देहरादून से मिलने वाली रिपोर्ट पर निर्भर करेगा।

बाघों की गिनती हर चार साल बाद बाघ संरक्षण प्राधिकरण के दिशा-निर्देश के अनुसार होती है। पहले पगचिन्ह के आधार पर गिनती होती थी। अब इसमें भी ट्रांजिट लाइन का सहयोग लिया जा रहा। इसके तहत पहले चरण में पगचिन्ह, मल-मूत्र और पेड़ों पर बाघों के खरोंच के आंकड़े जुटाए जाते हैं। इसके बाद कैमरे लगाकर तस्वीरें ली जाती हैं। कैमरे एक ही स्थान पर करीब 30 दिन लगे रहते हैं।

यह है ट्राजिट लाइन

विशेषज्ञों के अनुसार वनकर्मी जंगल में जाकर एक लाइन खींचते हैं। उस लाइन में वनकर्मी चलते हुए जानवरों के पदचिन्ह और निशान दर्ज करते हैं।

-बयान

ट्रांजिट लाइन के जरिए सर्वेक्षण मार्च तक पूरा होना है। इसकी रिपोर्ट देहरादून से जारी होगी। इससे शाकाहारी जानवरों की संख्या पता चलेगी। यह भी स्पष्ट होगा कि चार साल में बाघों की संख्या कितनी बढ़ेगी।

-अजय शंकर सिन्हा, रेंजर वाल्मीकिनगर

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