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चउका-बरतन बाद में, पहिले वोट दे दिहल जाव..

अन्य दिनों की अपेक्षा आज घर की दिनचर्या थोड़ी बदली-बदली सी थी। अमूमन सूर्योदय के पूर्व भोजन बनाने की तैयारी में जुटी रहने वाली महिलाएं रविवार को चूल्हा -बरतन को लेकर अधिक चितित नहीं थीं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 13 May 2019 12:35 AM (IST)Updated: Mon, 13 May 2019 12:35 AM (IST)
चउका-बरतन बाद में, पहिले वोट दे दिहल जाव..
चउका-बरतन बाद में, पहिले वोट दे दिहल जाव..

बगहा । अन्य दिनों की अपेक्षा आज घर की दिनचर्या थोड़ी बदली-बदली सी थी। अमूमन सूर्योदय के पूर्व भोजन बनाने की तैयारी में जुटी रहने वाली महिलाएं रविवार को चूल्हा -बरतन को लेकर अधिक चितित नहीं थीं। लोकतंत्र के महापर्व में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने का पक्का इरादा था। इसलिए सबकुछ छोड़ महिलाएं बूथ पर जाने के लिए तैयार हो रही थीं। सुबह के 7 बजते-बजते अधिकांश बूथों पर मतदाताओं की भीड़ जुट चुकी थी। इनमें महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों की अपेक्षा अधिक थी। बूथों पर उमड़ी आधी आबादी ने अपनी मजबूत उपस्थित दर्ज कराई और जमकर वोटिग की। महुअर बूथ संख्या 114 पर कतार में खड़ी रोहिणी देवी, सुभावती देवी, माधुरी देवी व कलावती देवी ने कहा कि हर रोज तो काम करते ही हैं। देश का सवाल है। इसलिए चउका बरतन बाद में, पहले वोट देने बूथ पर पहुंची हैं। नक्सल प्रभावित जिमरी नौतनवा पंचायत के जिमरी बूथ संख्या 193 पर सुबह 10 बजे तक 100 से अधिक महिलाएं कतार में थी। रंभा देवी ने कहा कि आज गांव की कोई महिला काम पर नहीं गई है। सुबह में ही हमने खाना बना लिया था। अब वोट देकर घर जाएंगे तो भोजन करेंगे। इसी बूथ पर कतार में खड़ी 90 वर्षीय सुरसती देवी ने कहा कि जवानी में वोट देने का मौका नहीं मिला। बीते 30 साल से हर चुनाव में वोट देती आ रही हूं। सरकार ने हमारी बात मानकर दारू को बंद करा दिया। हमारा फर्ज है कि अच्छी सरकार चुने।

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महिलाओं ने संभाली कमान, जमकर बरसे वोट :-

उच्च विद्यालय बरवल में स्थापित पिक (सखी) बूथ पर सुबह नियत समय से मतदान शुरू हुआ। यहां पीठासीन पदाधिकारी से लेकर अन्य सभी चुनावकर्मी के तौर पर महिला कर्मियों की तैनाती की गई थी। विद्यालय में अवस्थित तीन बूथों क्रमश: 153, 154 और 155 पर मतदाताओं की भारी भीड़ उमड़ी। पर्ची के मिलान से लेकर उंगली पर नीली स्याही का निशान तक लगाने की जवाबदेही महिला कर्मियों ने बखूबी निभाई। दोपहर तक इन बूथों पर आधे मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर लिया था। महिला मतदाता एक तरफ वोट की चोट से अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही थी तो दूसरी ओर जवाबदेही का अनुपालन कर रही महिला कर्मियों ने यह साबित कर दिया था कि वे किसी भी मामले में पुरुषों से पीछे नहीं। वक्त आ गया है कि अब समाज को अपनी सोच बदल लेनी चाहिए।

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