पहले बैलगाड़ी और साइकिल से होता था चुनाव प्रचार
देश की आजादी के बाद लोगों में लोकतंत्र के प्रति दीवानगी का आलम था। हम छोटे थे लेकिन याद है कि आजादी के कुछ वर्षो बाद तक जब भी मतदान का मौका आता लोग घर छोड़ बूथ की ओर निकल जाते थे।
बगहा । देश की आजादी के बाद लोगों में लोकतंत्र के प्रति दीवानगी का आलम था। हम छोटे थे, लेकिन याद है कि आजादी के कुछ वर्षो बाद तक जब भी मतदान का मौका आता, लोग घर छोड़ बूथ की ओर निकल जाते थे। इसके लिए पहले से तैयारी होती थी। जब मुझे पहली बार मतदान का मौका मिला, तब ऐसा लगा कि अब मैं बड़ा हो गया हूं और फैसले ले सकता हूं। उक्त बातें नगर के वार्ड 27 दीनदयालनगर निवासी 70 वर्षीय वसीम खान ने कहीं। कहा कि गांव हो या शहर कुछ ही लोगों के पास उम्मीदवार जाते थे। लोग बैठकर यह निर्णय लेते थे कि वोट किसे देना है। कांग्रेस, जनसंघ व कम्युनिस्ट ही मुख्य पार्टियां थीं। बीते दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि बगहा अनुमंडलीय अस्पताल परिसर में जगजीवन राम, केदार पांडेय, नरसिंह बैठा व कमलनाथ तिवारी का भाषण चिलचिलाती धूप में खड़ा होकर सुना था। लोग खुद नेता को देखने आते थे। आज की तरह भीड़ नही जुटानी पड़ती थी। चुनाव प्रचार, बैलगाड़ी, साइकिल, जीप, ट्रैक्टर आदि से होता था। आज जात- पात के साथ अगड़े व पिछड़े की राजनीति हो रही है। वोट पैसा से खरीदा जा रहा है। प्रचार पर लाखों रुपये बर्बाद हो रहे हैं। बहुत कुछ बदल गया है।
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