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सियासत की हांडी में नहीं पकी बासमती

भारत-नेपाल का तराई इलाका सदियों से बासमती धान की उत्कृष्ट खेती के लिए जाना जाता है। यहां की मिट्टी पहाड़ों की गोद से निकली झील और झरने का पानी बासमती की खुशबू को और बढ़ा देता है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 01:12 AM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2019 01:25 AM (IST)
सियासत की हांडी में नहीं पकी बासमती
सियासत की हांडी में नहीं पकी बासमती

बगहा । भारत-नेपाल का तराई इलाका सदियों से बासमती धान की उत्कृष्ट खेती के लिए जाना जाता है। यहां की मिट्टी, पहाड़ों की गोद से निकली झील और झरने का पानी बासमती की खुशबू को और बढ़ा देता है। लेकिन, सियासत की मंडी से उम्मीद लगाए धान उत्पादक किसानों का हाल बेजार है। देश-विदेश में अपनी खुशबू का जलवा बिखेरने वाली बासमती अपने ही घर में पहचान की मोहताज है । न कोई बाजार है और नहीं बासमती की गुणवत्ता की पहचान। नतीजा सामने है। अब यहां के किसान बासमती की खेती करने से खुद को किनारा कर रहे हैं। अधिक लागत के बावजूद फसल के औने-पौने दाम ही किसानों को मिलते हैं। चुनावी मौसम में वोटों की खेती करने वाली सियासत ने इन किसानों की कभी भी सुध नहीं ली। धान की खेती करने वाले किसानों की जिदंगी से समृद्धि की खुशबू दूर है। केवल बासमती से नहीं, अन्य प्रजातियों को उगाने वाले किसान भी धान की खेती से किनारा कर रहे हैं। पूरे परिदृश्य की पड़ताल करती बगहा से रपट। दोन की बासमती पहचान की मोहताज चंपारण दोन की बासमती विदेशों में अपनी खुशबू बिखेर रही है। पर, यहां के किसानों की तकदीर नहीं बदल पाई। बासमती धान की खेती करने के लिए किसानों को सरकार की ओर से कोई सहूलियत नहीं मिलती। बावजूद किसान बासमती की खेती करते हैं। सुगंध से दमकती बासमती की खेती करने के लिए किसानों को अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ता है। लागत भी अधिक होती है। जब धान तैयार होता है तो इसके लिए कोई मार्केट नहीं है। क्योंकि सियासी तौर पर अब तक चंपारण में उत्पादित बासमती को पहचान नहीं मिली है। भारत सरकार की ओर से खुशबूदार धान प्रजातियों की सूची जारी की गई है। उस सूची में चंपारण की बासमती का कोई जिक्र नहीं है। चंपारण के दोन इलाके में उत्पादित बासमती की उपस्थिति उस सूची में दर्ज कराने की दिशा में अब तक कोई प्रयास भी नहीं किया गया है। तराई के इलाके में बासमती धान की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने वाले चंपारण एरोमेटिक के सुशील छापोलिया का कहना है कि दोन के इलाके में उत्पादित बासमती की मिठाई और सुगंध का विदेश भी कायल है। लेकिन, सरकार स्तर से इसके निर्यात की अनुमति नहीं मिलने के कारण अब किसानों का मोह बासमती की खेती से कम हुआ है। सरकारी सुविधा भी नहीं मिलती

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इस क्षेत्र से बासमती अब अपनी पहचान खो रही है। जहां हर किसान बासमती की खेती करता था, अभी इलाके में इक्का-दुक्का किसान हिम्मत कर अपने खेत में बासमती लगाते हैं। सिचाई के लिए नहरों में पानी नहीं हैं तो वाजिब मूल्य के लिए मंडी का अभाव। आमदनी दोगुना करने के सरकारी दावों के बीच बासमती उगाने वाले किसान फटेहाली से जूझ रहे हैं। सरकारी स्तर पर पैक्स के माध्यम से धान की खरीद होती है। जहां बासमती को सामान्य कोटि का दाम मिलता है। यहां के किसान विपरीत परिस्थितियों में भी बासमती उगाते हैं। सिचाई के लिए खुद के संसाधन जुटा फसल तैयार करते हैं। धान खरीद नीति से भी बाहर

सूबे में धान खरीद नीति है लेकिन, बासमती इससे बाहर है। धान खरीद नीति के तहत उपज पर समर्थन मूल्य तय किया जाता है। मगर यह धान की सामान्य प्रजाति के लिए होता है। सामान्य से इतर नीति में केवल देहरा प्रजाति का धान ही लेने का उल्लेख है। जो बासमती से मिलती- जुलती है। हालांकि, इसमें वैसे सुगंध नहीं होती। इसकी खरीद समर्थन मूल्य से बीस रुपये अतिरिक्त दर से होती है। चूंकि बाजार में इसका मूल्य भी दोगुना है यानी चार हजार पांच सौ रुपये से ऊपर, इसलिए किसान खरीद केंद्र पर धान भी नहीं बेचते। ये हैं उन्नतशील प्रजातियां - 01 पूसा बासमती

-- 370- बासमती

-- 02 हरियाणा बासमती

-- 22 वल्लभ बासमती

- 105 मालवीय सुगंध

-- 4 -3 मालवीय सुगंध सुगंधित धान की प्रजाति और विशेषता

किस्म- पूसा बासमती- 6 (पूसा- 1401) विशेषताएं- धान की यह सुगंधित मध्यम बौनी किस्म है। जो पकने पर गिरती नहीं है। दानों की समानता और पकाने की गुणवत्ता के हिसाब से यह किस्म पूसा बासमती 1121 से बहुत ही अच्छी है, क्योंकि इसका दाना पकाने पर एक समान रहता है। पैदावार- 55 से 60 क्विटल प्रति हेक्टेयर। किस्म- उन्नत पूसा बासमती- 1 (पूसा- 1460) विशेषताएं- यह अधिक उत्पादन देने वाली, झुलसा रोग प्रतिरोधी प्रजाति है। यह सुगंधित किस्म 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। पकाने में इसके दानों की गुणवत्ता बहुत अच्छी है। खाने में भी स्वादिष्ट लगता है। पैदावार- 50 से 55 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

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किस्म- पूसा बासमती- 1121 विशेषताएं- सुगंधित बासमती धान की यह किस्म 140 से 145 दिनों में पक जाती है। तरावड़ी बासमती से एक पखवाड़ा अगेती है। इसका दाना लंबा (8.0 मिलीमीटर) व पतला है। गुणों में तरावड़ी बासमती से अच्छी है।

पैदावार- 40 से 45 क्विटल प्रति हेक्टेयर । ------------------------------------------------ किस्म- पूसा सुगंध- 5 (पूसा- 2511) विशेषताएं- इसका दाना अच्छी सुगंध वाला और अधिक लंबा होता है। यह किस्म झड़ने के प्रति सहिष्णु है। यह किस्म 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। पैदावार- 60 से 70 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

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किस्म- पूसा सुगंध- 3 विशेषताएं- यह सुगंधित धान की अर्ध बौनी, अधिक उपज देने वाली, बासमती गुणों से परिपूर्ण किस्म है। इसका दाना लंबा, बारीक व सुगंधित होता है। पकाने पर लंबाई में दोगुना बढ़ता है और खाने में मुलायम तथा स्वाद में अच्छा है। पैदावार- 60 से 65 क्विटल प्रति हेक्टेयर। ----------------------------------------------------

किस्म- पूसा सुगंध- 2 विशेषताएं- यह सुगंधित धान की अर्ध बौनी, अधिक उपज देने वाली, बासमती गुणों से परिपूर्ण किस्म है। इसका दाना लम्बा, बारीक तथा सुगंधित है, जो पकाने पर लंबाई में दोगुना बढ़ता है और खाने में मुलायम व स्वाद में अच्छा है। पैदावार- 55 से 60 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

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किस्म- संकर धान पूसा आर एच-10 विशेषताएं- यह सुगंधित बासमती गुणों वाली धान की विश्व में प्रथम संकर किस्म है। इसका दाना अत्यधिक सुगंधित, लंबा, पतला है जो पकाने पर लंबाई में दोगुना बढ़ जाता है और अधिक स्वादिष्ट होता है। पैदावार- 60- 65 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

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किस्म- पूसा बासमती- 1 विशेषताएं- यह सुगंधित बासमती धान की एक मध्यम बौनी किस्म है। इसका दाना अत्यधिक लंबा और पकाने पर मुलायम व सुगंधित होता है। देश में बासमती चावल के निर्यात में लगभग 30 प्रतिशत योगदान इसी किस्म का है। पैदावार- 45 से 50 क्विटल प्रति हेक्टेयर। -----------------------------------------------------------------------------

किस्म- पूसा- 44 विशेषताएं- यह बौनी किस्म 140 से 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने लंबे, इकहरे होते हैं। जिनका छिलका आसानी से उतर जाता है । बासमती के चावल को पकाने के बाद आकार बदलता है। खुशबू भी अधिक रहती है। पैदावार- 40 से 45 क्विटल प्रति हेक्टेयर

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किस्म- पीएनआर- 546 विशेषताएं- यह धान की अच्छे दाने वाली किस्म है। जो 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसका दाना अत्यधिक लंबा और पकाने पर मुलायम व सुगंधित होता है। देश में बासमती चावल के निर्यात में लगभग 10 प्रतिशत योगदान इसी किस्म का है। पैदावार- 50 से 55 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

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किस्म- पूसा- 834 विशेषताएं- यह बौनी किस्म मध्यम से ऊंचाई वाली जमीन में सीधी बुवाई और रोपण पद्धति में भी अच्छी उपज देती है। फसल 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह खाने में काफी स्वादिष्ट लगता है। पैदावार- 40 से 45 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

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किस्म- पी एन आर- 381 विशेषताएं- धान की यह मध्यम बौनी किस्म है। इसके दाने मध्यम लंबे और स्वादिष्ट होते हैं। फसल 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने लम्बे, इकहरे होते हैं, जिनका छिलका आसानी से उतर जाता है । बासमती के चावल को पकाने के बाद आकार बदलता है। पैदावार- 40 से 45 क्विटल प्रति हेक्टेयर

-------------- किस्म- जल्दी धान-13 विशेषताएं- यह मोटे दाने की जल्दी पकने वाली किस्म है। जो 90 से 95 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। फसल 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने लंबे, इकहरे होते हैं। जिनका छिलका आसानी से उतर जाता है । बासमती के चावल को पकाने के बाद आकार बदलता है। पैदावार- 30 व 40 क्विटल प्रति हेक्टेयर

--------------------------------------------------- हाइलाइटर

-- 1975 में फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया से निर्यात की मिली थी अनुमति

-- 1977 में स्थानीय व्यापारियों की मिलावटी के कारण लग गया प्रतिबंध

-- 1980 में बढ़ा अपराध का ग्राफ तो बड़े किसानों ने छोड़ दी बासमती की खेती

-- 2004 से चंपारण एरोमेटिक कॉरपोरेशन ने चलाया अभियान तो आई जागरूकता


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