ठेले पर सवार होकर मधुबनी पहुंचे दर्जन भर मजदूर, व्यवस्था पर सवाल
बगहा। सोमवार को हरियाणा के कुरुक्षेत्र से प्रवासी ठेला गाड़ी से दहवा पहुंचे।
बगहा। सोमवार को हरियाणा के कुरुक्षेत्र से प्रवासी ठेला गाड़ी से दहवा पहुंचे। सभी प्रवासी बगहा प्रखंड के अलग-अलग क्षेत्रों के रहने वाले हैं। जो हरियाणा के कुरुक्षेत्र में सब्जी बेचते थे। बिहारी साह, दीनानाथ साह ,मनोज तुरहा, वीरेंद्र प्रसाद, विजई साह, मुन्ना साह, छोटू साह सहित अन्य ने बताया कि गत 14 मई को हरियाणा के कुरुक्षेत्र से चले थे। 18 मई को लगभग 11:00 बजे दहवा पहुंचे। इन लोगों ने बताया कि लॉकडाउन के कारण काम नहीं मिला। सब्जी बेचने निकले तो स्थानीय लोगों व प्रशासनिक अधिकारियों ने ऐसा करने से मना कर दिया। जिससे वे लोग काफी परेशान थे। इन लोगों ने कहा कि जब इन लोगों का काम धंधा पूरी तरह से बंद हो गया तो वे अपने घर से रुपये मंगा कर तब वहां खाना खाते थे। परिस्थिति जब गंभीर हो गई एवं घर के लोग भी पैसे भेजने बंद कर दिए तो वे लोग वहां से अपने घर आना ही सही समझे और चार ठेला गाड़ी पर 12 मजदूर बैठकर दहवा पहुंचे। रास्ते में सब्जी बेचकर ही अपने खाने का प्रबंध करते थे प्रवासी मजदूर इन प्रवासी मजदूरों ने बताया कि वहां पर इनके द्वारा सब्जी बेचने के क्रम में थोड़ी बहुत सब्जी बची हुई थी ।आलू और प्याज लेकर वह लोग वहां से चल दिए और रास्ते में कहीं कहीं सब्जी बेचकर ही अपना रास्ता का भोजन की पर का प्रबंध किए। इन लोगों ने बताया कि 4 से 5 दिन हरियाणा के कुरुक्षेत्र से बांसी पहुंचने में लगा ।इस दौरान उनके कई साथी जो उनके साथ थे उन लोगों के द्वारा रास्ते में रुक कर 1 घंटे के लिए सब्जी भी बेच दिया जाता था। जिससे उन लोगों के भोजन की व्यवस्था भी हो जाती थी। इन लोगों ने कहा कि आज तक इतनी विकट परिस्थिति जीवन में कभी नहीं आई थी। जिससे खाने खाने के बिना भी प्रवासी लोग बेहाल हो गए थे। नून रोटी खाएंगे लेकिन दूसरे राज्यों में कमाने नहीं जाएंगे। इन प्रवासी मजदूरों ने बताया कि अपने गांव अपने देहात में भले घूमकर ठेला एवं रास्ते पर बैठकर सब्जी बेचने सहित अन्य काम कर लेंगे ।लेकिन कभी भी दूसरे राज्यों में कमाने नहीं जाएंगे। अपने घर पर नमक रोटी खा कर ही अपना गुजर बसर कर लेंगे। लेकिन जिस तरह से दूसरे राज्यों के द्वारा अवहेलना का दंश झेलना पड़ा है ।अब फिर वापस लौट के दूसरे राज्यों में नहीं जाएंगे। इन लोगों की माने तो प्रवासी मजदूरों ने बताया कि अपने घर पर ही खेती बारी सहित अन्य मजदूरी कर अपने राज्य एवं अपने जिला अपने गांव को ही सजाने का काम करेंगे ।अपने परिवार के साथ रहेंगे एवं सुख दुख में एक दूसरे के साथ सह भागी बनेंगे ।प्रवासियों की माने तो कमाने के लिए भले ही वह दूसरे राज्य में गए थे लेकिन जब परिस्थिति बिकट हुई तो वहां कि राज्य सरकार सहित वहां के लोगों के द्वारा भी इन्हें काफी अपमानित और प्रताड़ित किया गया। यहां तक कि वे लोग जिस मकान में किराया देकर रहते थे उस मकान मालिक के द्वारा भी काफी प्रताड़ित किया जा रहा था।