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मैडम, अब कोरोना को लेकर डराना बंद कीजिए, जल्दी दवा दीजिए

बेतिया। दिन शनिवार दोपहर के 1105 बजे हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में महिलाओं की भारी भी

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 01:01 AM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 01:01 AM (IST)
मैडम, अब कोरोना को लेकर डराना बंद कीजिए, जल्दी दवा दीजिए
मैडम, अब कोरोना को लेकर डराना बंद कीजिए, जल्दी दवा दीजिए

बेतिया। दिन शनिवार , दोपहर के 11:05 बजे हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में महिलाओं की भारी भीड़ है। अस्पताल भवन के बरामदे में मरीज और उनके परिजन बगैर मास्क लगाए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। ओपीडी कक्ष में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ विजय कुमार चौधरी अकेले ही रोगियों का जांच कर रहे हैं। ओपीडी में पुरुष चिकित्सक होने के चलते महिलाएं खुलकर अपनी समस्याएं नहीं रख पा रही हैं। ओपीडी के बगल में महिला कक्ष में बेड से चादर गायब हैं। यहां भी कोविड से बचाव को लेकर कोई खास इंतजाम नहीं है। मरीज एक- दूसरे से धक्का- धुक्की कर रहे हैं। मास्क तो मरीजों ने पहनना हीं छोड़ दिया है। हालांकि अस्पताल कर्मियों के चेहरे पर मास्क दिख रही है। एक महिला कर्मी से जब बगैर मास्क के मरीजों के संबंध में बात की गई तो उन्होंने कहा कि मरीजों से मास्क के बारे में कहना हीं मैं छोड़ दी हूं। ये लोग झगड़ा करने पर उतारू हो जाते हैं। कहते हैं कि अभी चुनाव में मास्क को लेकर इतनी कड़ाई तो नहीं थी, उस समय कोरोना भाग गया था और अभी फिर आ गया। एक युवक ने यहां तक कह दिया कि कोरोना को डराना बंद कीजिए, जल्दी दवा दीजिए। अब ग्रामीणों के इस सोच का कोई क्या जवाब देगा। इस लिए खुद की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ड्यूटी करती हूं।

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एक चिकित्सक के भरोसे ओपीडी और इमरजेंसी सेवा

अस्पताल में चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मियों की कमी है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत यह है कि यहां प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी के अलावा चिकित्सकों की प्रतिनियुक्ति की गई है लेकिन आपसी तालमेल के कारण एक चिकित्सक के भरोसे ओपीडी व इमरजेंसी सेवा संचालित होती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से क्षेत्र की आबादी को समुचित लाभ न मिल पाने के कारण यहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना हुई। मगर इसे दर्जा मिलने के बाद भी अब तक इसे अस्पताल की वैसी सुविधाएं नहीं मिली।

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मरीजों का भोजन महीनों से बंद

ग्रामीण सहदेव प्रसाद ने बताया कि पूर्व में अल्ट्रासाउंड की सुविधा बहाल हुई थी। उसे बंद कर दिया गया है। इस बारे में कोई कुछ बताता भी नहीं है। महिला मरीज शांति देवी ने बताया कि तीन दिन से अस्पताल में भर्ती हूं। रोगियों का मुफ्त भोजन योजना यहां बंद है। सफाई की हालत ऐसी है कि अगर खुद से साफ नहीं करें तो कचड़ा में ही रहना होगा। ऐसे में मरीज के स्वजन जिस वार्ड में रहते हैं , वहां की सफाई वे खुद हीं करते हैं। ग्रामीण रामबाबू ने बताया कि यहां प्राइवेट जांच घरों के दलाल मंडराते रहते हैं। अस्पताल में जांच की सुविधा नहीं है। मरीजों को जांच घरों में जाना पड़ता है। जहां मरीजों को आर्थिक शोषण के साथ साथ मानसिक शोषण का भी शिकार होना पड़ता है।

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गार्ड को दवा वितरण की जिम्मेदारी

अस्पताल परिसर में दवा वितरण कक्ष है। यहां दवा लेने के लिए मरीज के स्वजनों की लाइन लगी है। दवा वितरण करने वाली एएनएम नहीं है। उनके स्थान पर सुरक्षा गार्ड को दवा वितरण की जिम्मेदारी दी गई है। गार्ड से दवा वितरण कराना कितना उचित है, इसका जवाब प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी के पास भी नहीं है।

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कोट

डॉक्टरों की कमी है। चिकित्सा कर्मियों के भी कई पद खाली हैं। उपलब्ध साधनों में मरीजों का इलाज किया जाता है। चिकित्सकों की प्रतिनियुक्ति के लिए वरीय अधिकारी को को सूचना दी गई है -

डॉ. विजय कुमार चौधरी

प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, मैनाटांड़


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