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देश आजाद होते ही घर-घर में बनने लगी थी मिठाई

बेतिया। लौरिया थाना क्षेत्र के गोबरौरा निवासी पूर्व मुखिया चंद्रशेखर मिश्र कहना है कि वे तीन वर्ष के थे जब देश को आजादी मिली थी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 Jan 2020 11:43 PM (IST)Updated: Tue, 21 Jan 2020 06:16 AM (IST)
देश आजाद होते ही घर-घर में बनने लगी थी मिठाई
देश आजाद होते ही घर-घर में बनने लगी थी मिठाई

बेतिया। लौरिया थाना क्षेत्र के गोबरौरा निवासी पूर्व मुखिया चंद्रशेखर मिश्र कहना है कि वे तीन वर्ष के थे जब देश को आजादी मिली थी। उस समय उन्हें गुलामी और आजादी का फर्क पता नही था। लेकिन बाल्यावस्था में इनकों आजाद भारत की पहली सुबह का आभास गांव के बड़े लोगों द्वारा एक दूसरे को बधाई देते देख कर हुआ था। अंग्रेजों की तानाशाही की कहानी गांव के बुजुर्गो के जुबानी सुनी थी। उनके परिवार के लोगों ने भी आजादी के लिए गोरों से जंग लड़ी थी। आजादी के काफी दिनों बाद तक गांव के लोग भारत माता के जयकारे लगाकर खुशी का इजहार किए थे। गलियों में दौड़-दौड़ कर एक दूसरे को मिठाई खिलाकर बधाई देते थे। लोग नए कपड़े पहनकर गांव के चौपाल पर जाते थे। गांव-गांव में भागवत व रामायण का हुआ था पाठ रामनगर महुई निवासी 80 वर्षीय सेवानिवृत शिवाकांत पाण्डेय बताया कि देश के आजादी के समय उनकी उम्र करीब 10 वर्ष थी। उन्होंने आजादी की पहली सुबह को करीब से महसूस किया है। आजादी के दिन गांव में जश्न का माहौल था। गांव के लोग बताते थे कि आजादी से पूर्व अंग्रेज जबरदस्ती पकड़कर बेगारी कराते थे। इतना दहशत था कि लोग अपने मन के अनुसार कुछ भी नहीं कर पाते थे। अंग्रेजों को भारत से खदेड़ देने के बाद पूरे गांव में मिठाई बनने लगी थी। हर व्यक्ति के चेहरे पर खुशी झलक रही थी। प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त व 26 जनवरी को उत्सव मनाया जाता था। गांव के चौपाल पर रामायण व गीता का पाठ भी होता था। ताकि मेरे देश को किसी किसी की नजर नहीं लगे।

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