सारी कोशिशें हुई धराशाई, कुंआ और पोखरों का हाल बेहाल
बेतिया । तालाबों और कुओं को नई जीवन के लिए सरकार के निर्देश पर जिले में लगातार काम जारी है।
बेतिया । तालाबों और कुओं को नई जीवन के लिए सरकार के निर्देश पर जिले में लगातार काम जारी है। कई तालाब, कुआं और पोखर का जीर्णोद्धार किया जा चुका है। लेकिन इसके लिए अभी लंबा सफर तय करना है। ग्रामीण इलाकों में कुओं और तालाबों का अस्तित्व समाप्त होते जा रहा है। जिले में चिन्हित 879 में से मात्र 315 कुओं का ही लोक स्वास्थ्य प्रमंडल के द्वारा जीर्णोद्धार कराया जा सका है। पोखरो के जीर्णोद्धार की स्थिति और भी खराब है। 1130 तालाब और पोखर में से 125 पोखर और 29 तालाब का ही अब तक जीर्णोद्धार हो सका है। ग्रामीण इलाकों में कभी तालाब, कुआं और पोखर जीवन का अभिन्न हिस्सा हुआ करते थे। आधुनिकता के दौर में इनकी उपेक्षा होती गई। समय बीतने के साथ-साथ धीरे-धीरे इनका अस्तित्व खत्म होता गया। आज ग्रामीण क्षेत्रों के कई तालाब, पोखर और कुओं का नामोनिशान मिट चुका है। -----------------------------
सरकारी पहल के बाद जीर्णोद्धार के काम में तेजी
हालांकि सरकारी पहल के बाद तलाब, पोखरा और कुओं को चिन्हित करने का काम शुरू हुआ। चिन्हित कर इनके जीर्णोद्धार का काम भी तेजी से चल रहा है। ग्रामीण इलाके के लोगों का मानना है कि अभी इसमें और तेजी लाने की जरूरत है। इनका अस्तित्व बचा कर ही जल संरक्षण की परिकल्पना की जा सकती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक लघु जल संसाधन के द्वारा 29 तालाब, 4 पईन, लोक स्वास्थ्य प्रमंडल द्वारा 315 कुआं, मत्स्य विभाग द्वारा 125 पोखर का जीर्णोद्धार का काम पूरा हो चुका है। जबकि अभी काफी काम बाकी है। नए वित्तीय वर्ष के लिए विभाग अभी लक्ष्य तय नहीं कर सका है।
------------------------------
²ढ़ इच्छा शक्ति से ही पोखर और तालाबों का बचेगा अस्तित्व
ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब, पोखर, और कुएं जल स्त्रोत का सबसे बेहतर साधन है। किसान खेतों की सिचाई में भी इनका उपयोग करते हैं। लेकिन इनके अस्तित्व समाप्त होने का असर ग्रामीण जीवन शैली पर भी पड़ रही है। ग्रामीणों का मानना है कि इनके अस्तित्व को बचा कर ही जल संरक्षण किया जा सकता है। ²ढ़ इच्छाशक्ति से काम करके ही इनके अस्तित्व को बचाया जा सकता है। ग्रामीण प्रोफेसर शंभू आलोक, अजय कुशवाहा, दिनेश कुमार, मोहन पटेल ने कहा कि खस्ताहाल हो रहे पोखर, तालाब और कुएं को नया जीवन देने में बहुत परेशानी नहीं है। थोड़ी सी मेहनत करके इनके अस्तित्व को बचाया जा सकता है।