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दिनकर की रचनाएं हर पल समाज का करती हैं मार्गदर्शन: अनिल सुलभ

पद्मनाभ साहित्य परिषद् के तत्वावधान में दिनकर जयंती पर ऑनलाइन कार्यक्रम हुआ। इसमें वक्ताओं ने रामधारी सिंह दिनकर की रचनाओं व उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा की। डॉ. प्रतिभा पराशर के संयोजन और साहित्यकार डॉ. नवल किशोर प्रसाद की अध्यक्षता में कार्यक्रम का आगाज हुआ।

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 08:38 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 08:38 PM (IST)
दिनकर की रचनाएं हर पल समाज का करती हैं मार्गदर्शन: अनिल सुलभ
दिनकर की रचनाएं हर पल समाज का करती हैं मार्गदर्शन: अनिल सुलभ

जागरण संवाददाता, हाजीपुर:

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पद्मनाभ साहित्य परिषद् के तत्वावधान में दिनकर जयंती पर ऑनलाइन कार्यक्रम हुआ। इसमें वक्ताओं ने रामधारी सिंह दिनकर की रचनाओं व उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा की। डॉ. प्रतिभा पराशर के संयोजन और साहित्यकार डॉ. नवल किशोर प्रसाद की अध्यक्षता में कार्यक्रम का आगाज हुआ। इसमें बिहार साहित्य सम्मेलन, पटना के अध्यक्ष अनिल सुलभ , रांची विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जेबी पांडेय, एमडीडीएम कालेज हिन्दी विभाग मुजफ्फरपुर की पूर्व अध्यक्ष प्रो. पुष्पा गुप्ता, पटना के सुप्रसिद्ध कवि आचार्य विजय गुंजन, हाजीपुर के कवि अखौरी चंद्रशेखर, वरिष्ठ साहित्यकार शालिग्राम सिंह अशान्त ने विचार रखे।

अखौरी चंद्रशेखर ने निराला रचित सरस्वती वंदना वर दे वीणावादिनी वर दे गाया। कार्यक्रम का संचालन रांची से डॉ रजनी शर्मा चंदा और डॉ प्रतिभा ने बारी-बारी से किया। वक्ताओं ने दिनकर की रचना रश्मिरथी , कुरुक्षेत्र, उर्वशी और संस्कृति के चार अध्याय पर विशेष रूप से प्रकाश डाला। अनिल सुलभ ने कहा कि दिनकर की रचनाएं हर पल समाज का मार्गदर्शन करती हैं। प्रो. जेबी पाण्डेय ने कहा कि संस्कृति के चार अध्याय सभी को पढ़ना चाहिए। स्वयं दिनकर ने कहा है कि इसे लिखने में उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी। डॉ. पुष्पा गुप्ता ने कहा कि दिनकर की रचनाओं में द्वन्द्व ²ष्टिगोचर होते हैं। वे राग और आग यानी युद्ध और शांति दोनों की बात करते हैं। शालिग्राम सिंह अशांत ने कहा दिनकर जैसा कवि आज तक नहीं हुआ। उनकी रचनाएं कालजयी हैं। आचार्य विजय गुंजन और अखौरी चंद्रशेखर ने काव्य पाठ किया। डॉ प्रतिभा ने उन्हें निडर, वीर ,साहसी और परम प्रतापी कवि बताया। अध्यक्षीय संबोधन में डॉ श्रीवास्तव ने कहा कि दिनकर की रचनाएं देशभक्ति से ओत-प्रोत हैं और उनमें विश्वकवि होने के सारे गुण हैं। वे बहुत ही साहसी व्यक्ति थे। उन्होंने जाति-पाति और अन्याय के विरुद्ध खुलकर लिखा। लेखक हरिशंकर जी ने भी श्रद्धा-सुमन अर्पित किए।


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