सपना ही रह गया बरैला पक्षी विहार का सपना
कहते हैं कि जब किसी क्षेत्र विशेष में परिस्थितियां प्रतिकूल होने लगती हैं तो उस ।
वैशाली । कहते हैं कि जब किसी क्षेत्र विशेष में परिस्थितियां प्रतिकूल होने लगती हैं तो उस क्षेत्र से जीव-जन्तु मुंह मोड़ने लगते हैं। ऐसा ही कुछ हो रहा है वैशाली जिले के बरैला झील क्षेत्र में। सलीम अली जुब्बा सहनी पक्षी आश्रयणी के नाम से मशहूर बरैला झील में इधर हाल के वर्षों में आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या में भारी गिरावट आई है। दो दशक पहले की अपेक्षा अब दस प्रतिशत पक्षी ही आ रहे हैं। प्रवासी पक्षियों का शिकार, झील क्षेत्र में पानी की कमी और स्थानीय स्तर पर देसरिया धान (प्रवासी पक्षियों का मुख्य भोजन) के उत्पादन में भारी कमी ऐसे कारण बन रहे हैं जिसके चलते प्रवासी पक्षियों ने बरैला झील क्षेत्र से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है।
अक्टूबर के पहले सप्ताह से ही बरैला में साइबेरिया और यूरोप से नाना प्रकार के पक्षी आने लगते थे। उन पक्षियों को स्थानीय नामों से पहचाना और जाना जाता है। डुम्मर (नेट्टारूफाइन), खेसराज (कूट), घई (शिखी पोचर्ड), पनगुदरी (वैजूलक), लालसर, दिघौच, मैलठा, क्योट, चकवा, चाही, आदि कई प्रजातियों के पक्षी फरवरी के अंत तक इस झील क्षेत्र में प्रवास करते हैं। मार्च से इनका लौटना शुरू हो जाता है।
कहते हैं कि बरैला झील 12 कोस में फैली है। इसके विकास के लिए कई बार योजनाएं बनी पर सभी फाइलों में सिमट कर रह गईं और आज के दिन उनपर धूल की मोटी परत चढ़ गई है। 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने तीन दिवसीय वैशाली प्रवास के दौरान के बरैला झील में नौका विहार किया था। तब झील क्षेत्र में बसे गांवों के लोगों में विश्वास जगा था कि अब इसका विकास होगा। विकास को लेकर कुछ घोषणाएं भी हुई थीं। कुछ पक्षी मित्र भी रखे गए। उनकी जिम्मेदारी प्रवासी पक्षियों को शिकार होने से बचाना था। इस बार भी डीएफओ नंदकुमार मांझी ने पक्षी मित्रों एवं वाच टावर बनाने के लिए प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है।
तय हुआ था कि झील क्षेत्र में आने वाली सरकारी और गैर सरकारी जमीन की पैमाइश करा इसके मुकम्मल विकास की योजना बनाई जाए। बाद में भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के पदाधिकारियों ने झील क्षेत्र के गांव लोमा में कैंप कार्यालय बनाकर आसपास के गांवों का सर्वे किया। फिर कुछ आशा जगी कि कुछ काम होगा। सर्वे रिपोर्ट में यह भी निर्धारित किया गया था कि झील बरैला के विकास में क्षेत्र के आसपास रहने वालों को भी भागीदार बनाया जाए। गांवों में जनजागरूकता अभियान चलाया गया कि प्रवासी पक्षियों का शिकार वर्जित है। अभियान का इतना असर तो जरूर हुआ कि कई गांवों के लोग पक्षियों के शिकार के विरोध में खड़े हो गए। हजारों फीट जाल जब्त किए गए। इधर कुछ वर्षों से बारिश कम होने से झील में पानी काफी कम है। चारो ओर लंबी घासें उगी हैं जो पशुचारे के रूप में इस्तेमाल होती हैं।
दर्जनों गांवों को पालने की क्षमता है बरैला झील में
बरैला झील में दर्जनों गांवों को पालने की क्षमता है। अगर उसमें सालों भर पानी की व्यवस्था कर दी जाए और मछलीपालन हो हो तो हजारों परिवारों की जीविका आसानी से चल चल सकती है। पर्यटन की नजर से भी इसका महत्व है। झील तक पहुंचने के लिए अच्छी सड़क बन जाए, पेयजल और और ठहरने के गेस्ट हाउस बना दिए जाएं, झील में बो¨टग की व्यवस्था हो जाए तो यहां देसी-विदेशी पर्यटक आने शुरू हो जाएंगे।
क्या कहते हैं बरैला जीव रक्षा शोध संस्थान के संस्थापक
1995 से लगातार बरैला झील क्षेत्र के विकास और प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा को लेकर जनजागरूकता चला रहे तथागत महावीर बरैला जीव रक्षा सह शोध संस्थान के संस्थापक व स्थानीय लोमा गांव निवासी पंकज चौधरी का कहना है कि झील क्षेत्र के विकास के लिए समग्र योजना बनाने की जरूरत है। इस संबंध में कई बार राज्य सरकार से पत्राचार किया गया। सीएम ने खुद बरैला को देखा है। अभी वन विभाग के द्वारा समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाया जाता है। यहां बड़े स्तर पर काम करने की जरूरत है।
- पंकज चौधरी, संस्थापक, तथागत महावीर बरैला जीव रक्षा सह शोध संस्थान