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रोजगार के द्वार खोल सकती है बरैला झील

-झील तक पहुंचने के लिए अछी सड़क चारों ओर प्रकाश ठहरने-टहलने की व्यवस्था व सुरक्षा के करेंगे होंगे पुख्ता प्रबंध ---------- विकास की दरकार - अक्टूबर महीने में प्रवासी पक्षियों का शुरू हो जाता है आगमन -समुचित विकास होने पर देश भर से पक्षी प्रेमी व सैलानियों का होगा आगमन ---------- -2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नाव से बरैला झील का किया था भ्रमण -2014 में वन्य प्राणी जीव संस्थान देहरादून को सर्वे की सौंपी गई जिम्मेदारी ----------- फोटो- 40 और 41

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Jul 2020 01:46 AM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2020 06:13 AM (IST)
रोजगार के द्वार खोल सकती है बरैला झील
रोजगार के द्वार खोल सकती है बरैला झील

शैलेश कुमार, बरैला (वैशाली) :

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पातेपुर और जंदाहा प्रखंड में फैली बरैला झील रोजगार के द्वार खोल सकती है। बशर्ते, इसका पर्यटन की दृष्टि से विकास हो। झील तक पहुंचने के लिए अच्छी सड़क, चारों ओर प्रकाश, झील के पास ठहरने-टहलने की व्यवस्था करने के साथ ही सुरक्षा के भी पुख्ता प्रबंध करने होंगे। साथ ही व्यापक पैमाने पर प्रचार-प्रसार की भी जरूरत है। इससे यहां काफी संख्या में देश-विदेश से पक्षी प्रेमी के साथ सैलानी भी आएंगे, जिससे आसपास के गांवों के हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा। खासकर अक्टूबर के महीने में, जब यहां प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है। अक्टूबर से फरवरी के अंत तक मौसम सुहावना रहता है।

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सर्वे से पहले पक्षी आश्रयणी की

जारी हो गई अधिसूचना

स्थानीय लोगों की मानें तो 28 जनवरी 1997 को राज्य सरकार ने झील बरैला को सलीम अली जुब्बा सहनी पक्षी आश्रयणी के रूप में अधिसूचित तो कर दिया, पर करीब डेढ़ दशक तक इसके विकास को लेकर कुछ खास नहीं हो पाया।

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सीएम के भ्रमण करते ही

विकास की सुगबुगाहट तेज

वर्ष 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वैशाली प्रवास के दौरान नाव से बरैला झील का भ्रमण किया तो इसकी खूब चर्चा हुई। झील और आसपास के क्षेत्र के विकास को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई।

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वन्य प्राणी जीव संस्थान

देहरादून को सौंपी जिम्मेदारी

राज्य सरकार की पहल पर 2014-15 में वन्यजीव संस्थान देहरादून को झील और उसके आसपास के क्षेत्र के सर्वे की जिम्मेदारी सौंपी गई। वन्यजीव संस्थान देहरादून से अलग-अलग विशेषज्ञों के नेतृत्व में टीम आती रही और करीब एक साल तक सर्वे का काम होता रहा। विशेषज्ञों की टीम सर्वे में उन तमाम स्टेक होल्डरों को शामिल करती गई, जिसे झील से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से फायदा है। विशेषज्ञों की टीम झील की जैव विविधता, पारिस्थितिकी, झील क्षेत्र के गांवों में निवास करने वालों की सामाजिक संरचना, अर्थव्यवस्था आदि के बारे में जानकारी जुटाती रही। झील क्षेत्र के जंदाहा प्रखंड के गांव लोमा में कैंप लगाया गया और उसी कार्यालय को बेस बनाकर टीम झील क्षेत्र में एक-एक जानकारी जुटाती रही।

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करीब एक सौ गांव लाभान्वित

सर्वे के दौरान वन्यजीव संस्थान देहरादून की टीम ने यह जानकारी जुटाई कि बरैला झील से केवल पास के गांव ही लाभान्वित नहीं होते, बल्कि इसका फलक काफी बड़ा है। तीन लेयर में फैले करीब एक सौ गांव झील से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लाभान्वित होते हैं। कमोवेश इन सभी गांवों की अर्थव्यवस्था इस झील पर निर्भर है। चाहे मछली का व्यवसाय हो, लंबी-लंबी घासों को काटकर बेचने या मवेशियों को खिलाने, पर्व-त्योहार के समय झील में खिले कमल के फूल को बाजारों में बेचकर चार पैसे कमाने हो या सिचाई के लिए पानी की व्यवस्था करनी हो। सर्वे पूरा होने के बाद राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपी गई।

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झील क्षेत्र के पहले

लेयर में हैं सात गांव

बरैला झील क्षेत्र के पहले लेयर में सात गांव हैं। ये सात गांव वे हैं, जो झील के करीब हैं और जिनका सीधा जुड़ाव झील से है। ये गांव हैं लोमा, दुलौर-बुचौली, अमठामा, कवई, मतैया, महथी धर्मचंद और बिझरौली। दूसरे लेयर में करीब 30 गांव हैं, जिनमें पीरापुर, महिसौर, महिपुरा, सोहरथी, चांदे मरुई, कपसारा, तुर्की, बाजितपुर, तिसिऔता, डभैच आदि। तीसरे लेयर में 60 से अधिक गांव शामिल हैं।

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