Move to Jagran APP

कोसी में रेल यानी सपनों का खेल

विभाग के पास नहीं है निजी कोचिग का आंकड़ा निजी कोचिग पर नियंत्रण रखने को लेकर विभाग ने 2010 में ही बिहार कोचिग संस्थान नियंत्रण एवं विनिमय अधिनियम को लागू किया। अधिनियम को पारित हुए करीब 1

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 06:14 PM (IST)Updated: Sun, 17 Nov 2019 06:54 PM (IST)
कोसी में रेल यानी सपनों का खेल

सुपौल। 20 जनवरी 2012 को जब सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर पहले चरण का मेगा ब्लाक लिया गया तब कोसी के लोगों को लगा कि अब उनके भी दिन बहुरेंगे और देश के तमाम हिस्सों से वे भी सीधे तौर पर जुड़ जाएंगे। लेकिन सात साल गुजरने के बावजूद कोसी के इस सुदूर इलाके में रेल नहीं दौड़ सकी। इधर चुनावी वर्ष हो या फिर रेलवे के लिए कार्य अवधि पूरी हो गई हो,ऐसा लगता है यह नया साल कोसी वासियों के लिए नया सवेरा लाएगा। काम की गति और अधिकारियों के दौरे और आश्वासन से अब भरोसा जगा है कि निकट भविष्य में ही कोसी में भी दौड़ जाएगी रेल और विकास नई रफ्तार पकड़ लेगा।

loksabha election banner

ललित बाबू की धरती पर भी नहीं चल रही रेल

ललित बाबू एक ऐसा नाम जिन्हें किसी पहचान की जरूरत नहीं। अपने जीवनकाल में इनका राजनीतिक कद काफी उंचा रहा। वे केंद्रीय नेतृत्व के शीर्ष पर रहे। लेकिन रेलवे ने जो उन्हें ख्याति दी उससे वे संपूर्ण राष्ट्र में एक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे। संपूर्ण देश में रेलवे के विस्तार ने उनकी विकास की सोच को परिलक्षित किया। कोसी के दुरूह इलाके में भी उन्होंने रेलवे के जाल बिछाने की परिकल्पना की। सहरसा से सुपौल तक आने वाली रेल को फारबिसगंज तक पहुंचाया। भले ही उनके असमय मृत्यु के कारण उनकी परिकल्पना अधूरी रह गई लेकिन आज भी केंद्र की सरकार उनकी ही परिकल्पनाओं को मूर्त रूप देने में लगी है। लेकिन विडंबना कहिए कि उनके गृह जिला सुपौल में आज स्थिति ऐसी बन गई है जहां वर्तमान समय में एक किमी भी रेल नहीं चलती है।

धीमी पड़ गई निर्माण की रफ्तार

संपूर्ण देश में रेलवे में परिवर्तन की क्रांति शुरू हुई। हर रेलखंड को बड़ी रेल लाईन में परिवर्तित किया गया लेकिन कोसी का यह इलाका उसमें भी फिसड्डी साबित हुआ। देश जब बुलेट ट्रेन की सोचने लगा तब कोसी की बारी आई। 20 जनवरी 2012 को पहली बार सहरसा-फारबिसगंज रेलखंड पर फारबिसगंज और राघोपुर रेलवे स्टेशन के बीच आमान परिवर्तन के मद्देनजर मेगा ब्लाक लिया गया। लेकिन मेगा ब्लाक लेने के बाद संरचनाओं को तोड़ने और पटरी उखाड़ने में जितनी तेजी दिखी निर्माण कार्य उतना ही धीमा पड़ गया। कालक्रम में दो और मेगा ब्लाक लिए गए और 2016 में पूरे रेलखंड पर रेल का परिचालन बंद हो गया। लोगों को उम्मीद जगी कि अब वह दिन दूर नहीं कि यहां के लोगों को भी राजधानी तक जाने में सुविधा मिलेगी और हर शहर से सुपौल की दूरी भी कम हो जाएगी। लेकिन संपूर्ण मेगा ब्लाक के दो साल बाद भी यह सपना पूरा नहीं हुआ। आज स्थिति ऐसी है कि जिले में एक किमी भी रेल की सुविधा उपलब्ध नहीं।

आज भी उपेक्षित है सरायगढ़-फारबिसगंज के बीच रेलखंड

जिले में गढ़ बरुआरी सं सरायगढ तक तो रेलवे कार्यों में काफी गति आ गई है लेकिन आज भी सरायगढ़ से आगे का रेलखंड उपेक्षा का दंश झेल रहा है। कार्य की गति से ऐसा महसूस हो रहा है कि सरायगढ़ से आगे रेल दौड़ने में फिलहाल काफी वक्त लगेगा।

पटरी के इंतजार में कोसी महासेतु

कोसी के इलाके की महत्वपूर्ण रेल परियोजना के तहत कोसी नदी पर पुल बने भी लगभग आठ साल गुजर गए। जबकि 15 साल पूर्व कोसी महासेतु की नींव रखी गई थी। लेकिन आज भी इस रेलखंड को पटरी का ही इंतजार है। कभी बाढ़ बना कारण तो कभी व्यवस्थागत परेशानी, कभी फंड का रोना तो कभी जमीन अधिग्रहण और मुआवजे का चक्कर। निर्माण की रफ्तार की हालत देख कोसी के बूढ़े-बुजुर्ग भरोसा भी छोड़ने लगे हैं, उनका मानना है कि अपने जीते जी हो न हो वे अब देख भी न पाएं।

किस्तों में लिए गए मेगा ब्लाक

- 20 जनवरी 2012 को फारबिसगंज से राघोपुर के बीच लिए गए मेगा ब्लाक

-1 दिसंबर 2015 को राघोपुर से थरबिटिया के बीच मेगा ब्लाक

-25 दिसंबर 2016 को थरबिटिया से सहरसा के बीच मेगा ब्लाक


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.