शहरनामा सुपौल : हर कोई चेयरमैन की दौड़ में
अभी-अभी ये वाला समाचार बड़ी चर्चा में चल रहा है कि नगर परिषद के चेयरमैन का चुनाव अब सीधे तौर पर मतदाताओं के हाथ में होगा।
भरत कुमार झा, सुपौल : अभी-अभी ये वाला समाचार बड़ी चर्चा में चल रहा है कि नगर परिषद के चेयरमैन का चुनाव अब सीधे तौर पर मतदाताओं के हाथ में होगा। अभी भले इससे संबंधित कोई पत्र आया है कि नहीं ये नहीं मालूम लेकिन चेयरमैन में खड़े होने को हर कोई आतुर दिख रहे हैं। ऐसे हर शख्स को महसूस हो रहा है कि शहर में उनकी जो पर्सनालिटी है, वह निर्विवाद है। वैसे दूसरी तरह से भी आकलन हो रहा है जो हमारे यहां चुनाव का मुख्य आधार हुआ करता है। लोग अपने कुनबे के वोटों के आकलन में भी जुट गए हैं। नजर इस पर भी है कि अपने कुनबे से अपना ही नाम चर्चा में आवे। फिर तो पौ बारह है। पहले वाले चुनाव में तो पार्षदों को गोलबंद करना होता था जिसमें पोटली भी ढीली होती थी और महारथियों के आशीर्वाद की भी दरकार होती थी।
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चलता ही रहता है चोर-सिपाही का खेल
पहले ग्रामीण परिवेश में चोर-सिपाही का खेल बड़ा मशहूर था। बैठे-बैठे खेलने वाले इस खेल की उस वक्त कोई सानी नहीं थी। बच्चे इस खेल को बड़े शौक व ईमानदारी से खेला करते थे। बदलते जमाने में भले ही बच्चों के बीच अब ये खेल बिसरा दिया गया है लेकिन वास्तविकता में हमारे यहां आज भी यह खेल चल रहा है। अब देखिए न, पहले की तुलना में अपराध हमारे यहां भले ही बढ़ते जा रहे हों, लेकिन पुलिस भी पीछा कहां छोड़ रही है। अपराधी भी दबोच लिए जा रहे हैं और कांड का पर्दाफाश भी कर लिया जा रहा है। भले अपराधी घटना को फिर से अंजाम दे दे तो पुलिस पीछे पड़ जाती है। हाल ही में बड़े-बड़े कांडों का पर्दाफाश कर पुलिस ने उपलब्धियां अपने नाम कीं। लेकिन अपराध भी उसी रफ्तार से बढ़ता ही जा रहा है। यानी अपने-अपने काम में सब लगे हुए हैं।
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यहां तो हैं दो-दो थानेदार
करने से तो कुछ भी हो सकता है। बस, इच्छाशक्ति होनी चाहिए। हमारे यहां देखिए न एक ही थाने में दो-दो थानेदार हैं। हाल ही की बात है। बड़े साहबों का बड़े पैमाने पर सूबे में ट्रांसफर पोस्टिग का दौर चला। परिवर्तन यहां भी हुआ। इसी दौर में ऊपरवाले साहब का जिले में निरीक्षण हुआ। थाने में जहां उस पद पर इंसपेक्टर रैंक के लोगों की पोस्टिग होनी थी सब इंसपेक्टर बैठाए गए थे। तुरंत आदेश हुआ और बड़े बाबू बदल दिए गए। नए वाले इंस्पेक्टर हैं तो बड़ा बाबू बने और पहले वाले को भी उसी थाने में छोड़ दिया गया तो वे भी बड़े बाबू थे तो अब अपर थानाध्यक्ष कहलाने लगे हैं। अब नियम कायदे में इसका कोई जिक्र कहीं है कि नहीं, मालूम नहीं लेकिन चर्चा में उनका पद तो है और व्यवहार में भी देखा जा रहा है।
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बुरा हो इस कोरोना का
इस कोरोना ने तो कहीं का नहीं छोड़ा है। कभी कर्फ्यू, कभी लाकडाउन कभी शादी-ब्याह पर पाबंदी तो कभी भोज-काज पर। इस बार तो गणतंत्र दिवस पर भागीदारी में भी पाबंदी लगा दी गई है। सरकारी फरमान है कि गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में आम लोग भागीदार नहीं हो सकते। झंडोत्तोलन तो हर जगह होना है लेकिन लोगों का जमावड़ा नहीं लग सकता। इस पर्व पर भी आप कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं कर सकते। कई जगह साहबों ने तो हर संस्थान में झंडोत्तोलन का एक ही समय निर्धारित कर दिया ताकि आदमी एक जगह इकट्ठा नहीं हो सके। जबकि इस पर्व का महीनों पहले से तैयारी की जाती थी। बच्चे परेड की तैयारी करते और अपने बेहतर परफारमेंस के लिए चितित रहा करते थे। यही मौका होता था जब विभिन्न विधाओं में अपनी प्रतिभा दिखाने का बच्चों को कहीं न कहीं मंच मिल जाया करता था लेकिन इस कोरोना ने तो..।