यहां तो मौसम की मार से धरतीपुत्र हो गए हैं लाचार
सुपौल। जीतोड़ मेहनत एवं खून-पसीने की कमाई से लगाई गई फसलों का जब पकने का समय आता है तो धरती पुत्रो
सुपौल। जीतोड़ मेहनत एवं खून-पसीने की कमाई से लगाई गई फसलों का जब पकने का समय आता है तो धरती पुत्रों की खुशी देखने लायक होती है। लेकिन इसबार गेंहू कटाई से ऐन पहले मौसम ने जो करवट ली है, उसने किसानों की खुशी को फीका कर दिया है। गत मार्च महीने से ही आंधी, ओलावृष्टि एवं रुक-रुककर हो रही बारिश ने पहले गेंहू की फसल को बर्बाद किया और अब किसानों की पककर तैयार मक्का एवं सूर्यमुखी की फसल को बेहद नुकसान पहुंचा रही है। साथ ही गहरी जमीन में पानी जमा होने से लहलहाती मूंग की फसल को भी बारिश निगल रही है। मौसम के बदलते करवट से किसानों के चेहरों पर मायूसी साफ देखी जा सकती है। इधर दो-तीन दिनों से बारिश की मार से किसानों की फसल बर्बाद हो रही है। हालत यह है कि इस क्षेत्र के किसान आर्थिक तरक्की करने के बदले दिन ब दिन पीछे ही जा रहे हैं। खासकर इस वर्ष मौसम की मार ने किसानों को बदहाल कर दिया है। पहले तेज आंधी व तूफान ने गेहूं एवं सरसों की फसल को बर्बाद कर दिया। इसके बाद अब बारिश ने किसानों की तैयार मक्का तथा सूर्यमुखी की फसल को भी बर्बाद कर दिया है। इस बार पहले तो ठंड की मार से मक्का की फसल खराब हुई तो दूसरी ओर अब मक्का की कम कीमत किसान को आर्थिक रूप से कमजोर कर रही है। इस बार किसानों को अपनी लागत पूंजी भी फसल उत्पादन से पूरा करना एक चुनौती बनी हुई है। इस क्षेत्र के लोग मुख्य रूप से खेती पर ही आश्रित हैं। इससे ही किसानों के पूरे साल परिवार का भरण-पोषण होता है। वहीं अपनी बेटियों की शादी एवं बच्चे की पढ़ाई भी फसल से होने वाले फायदे से ही करते हैं। लेकिन मौसम ने किसानों के सारे अरमानों को धाराशायी कर दिया है।
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खर्च अधिक मुनाफा कम
किसानों को मक्के की खेती में कम से 20 से 25 हजार रुपए एक बीघा में खर्च हो जाती है। लेकिन इस बार किसानों को कम मुनाफा के कारण मानों कमर ही टूट गई है। इतना ही नहीं, जिन किसानों की फसल ठंड के चलते एवं आंधी में क्षतिग्रस्त हुई वैसे किसानों को लागत पूंजी भी वापस नहीं हो पाई है।
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औने-पौने कीमत में बेच रहे हैं मक्का :
लगातार हो रही बारिश के कारण किसानों को पहले गेहूं और अब औने-पौने कीमत पर अपना मक्का बेचना पड़ रहा है। किसानों ने बताया कि अभी 950 सौ रुपये से 1000 रुपए प्रति ¨क्वटल की दर से मक्का बिक रही है। इसमें भी बारिश में खराब हुए मक्के की कीमत और कम हो गई है। मौसम की बेरूखी के कारण किसान भी जो ही कीमत मिले वही लेकर मक्का को बेचने पर विवश है। क्षेत्र के किसानों ने बताया कि अगर मक्का बेचेंगे नहीं तो करेंगे क्या? क्योंकि इसबार लगातार हो रही बारिश के कारण तैयार मक्का भी पूरी तरह से सूख नहीं पा रहा है। खेतों में तोड़ कर रखी मक्का एवं सूर्यमुखी की फसल पूरी तरह भींग चुकी है अब उसे तैयार कर सुखाना किसी चुनौती से कम नहीं है।